वाराणसी: महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं का नृत्य, अगले जन्म को सुधारने की कामना
350 साल पुरानी परंपरा निभाने मणिकर्णिका घाट पहुंचीं नगरवधुएं, जलती चिताओं के बीच भोलेनाथ से मांगी अगली जन्म में मुक्ति की कामना
Apr 5, 2025, 13:59 IST
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वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चैत्र नवरात्र की षष्ठी तिथि, शुक्रवार की रात एक अद्भुत और अनूठी परंपरा देखने को मिली। यहां जलती चिताओं के बीच नगर वधुओं ने जमकर नृत्य किया। इस नृत्य के माध्यम से उन्होंने अपने अगले जन्म को बेहतर बनाने और मुक्ति की कामना की। नगर वधुओं के इस नृत्य को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटी रही और पूरी रात जागरण चलता रहा।READ ALSO:-विवादित प्रश्न ने मचाया बवाल: CCSU मेरठ के पेपर में RSS को आतंकी संगठनों से जोड़ने पर हंगामा
बनारस की यह परंपरा 350 वर्षों से भी अधिक पुरानी है। मान्यता है कि महाश्मशान वह स्थान है जहां राख मुक्ति की ओर ले जाती है। काशी में इस स्थान से कई विशेष परंपराएं जुड़ी हैं, जिनमें से एक नगर वधुओं द्वारा श्मशान घाट पर नृत्यांजलि प्रस्तुत करना है।
इस परंपरा की शुरुआत के पीछे एक कहानी है। कहा जाता है कि जब राजा मानसिंह काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करा रहे थे, तो उन्होंने मंदिर के प्रांगण में संगीत कार्यक्रम आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की। हालांकि, कोई भी इस पवित्र स्थान पर नृत्य करने के लिए तैयार नहीं हुआ। यह बात जब काशी की नगर वधुओं तक पहुंची, तो उन्होंने राजा मानसिंह को संदेश भिजवाया कि यदि उन्हें अवसर मिले तो वे अपने आराध्य, संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंलि अर्पित करना चाहती हैं।
नगर वधुओं का संदेश पाकर राजा मानसिंह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें आमंत्रित किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दूसरी ओर, नगर वधुओं का मानना है कि इस परंपरा को निभाते रहने से उन्हें अपने इस नारकीय जीवन से मुक्ति मिलेगी और इसलिए वे चैत्र नवरात्रि की सप्तमी को, वे कहीं भी हों, स्वयं ही काशी के मणिकर्णिका घाट पर पहुंच जाती हैं।
शुक्रवार को पूरी रात मणिकर्णिका घाट पर जागरण चला। जलती चिताओं के पास स्थित मंदिर में अपने निर्धारित स्थान से इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग महाश्मशान में उपस्थित रहे। नगर वधुएं भगवान भोलेनाथ के समक्ष अपनी प्रस्तुति देकर खुद को भाग्यशाली मान रही थीं। उन्होंने बताया कि वे इसी उम्मीद के साथ यहां आती हैं कि उनका यह जन्म मुक्ति के साथ समाप्त हो और उन्हें अगले जन्म में एक सौभाग्यशाली और संपन्न जीवन मिले, जहां वे एक अच्छे परिवार में जन्म ले सकें।
नगर वधुओं का कहना है कि वे अपने इस नरक भरे जीवन से मुक्ति की कामना के साथ भगवान भोलेनाथ के आगे अपना नृत्य प्रस्तुत करती हैं और उनसे प्रार्थना करती हैं कि उन्हें इस कष्टमय जीवन से छुटकारा दिलाकर उनका अगला जीवन सुखमय और अच्छा बनाएं।
विश्लेषण: जब नृत्य बन जाए मुक्ति का माध्यम
नगर वधुओं का यह आयोजन न केवल एक परंपरा का निर्वहन है, बल्कि एक सामाजिक और आत्मिक पुकार भी है — एक ऐसी पुकार जो स्वीकृति, करुणा और पुनर्जन्म की आशा से भरी हुई है।
यह आयोजन हमें यह भी सिखाता है कि समाज के हाशिए पर खड़े लोग भी अपनी आस्था और कला से ईश्वर के करीब हो सकते हैं।
