शादी के बाद ससुराल में रहना जरूरी नहीं, माता-पिता के साथ रह कर भी विधवा ससुर से ले सकती है गुजारा भत्ता, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विधवा महिला के लिए शादी के बाद ससुराल में रहना जरूरी नहीं है। वह अपने माता-पिता के साथ रहते हुए भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।
Sep 7, 2024, 00:55 IST
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के एक परिवार से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गुजारा भत्ता पाने के लिए विधवा का ससुराल में रहना जरूरी नहीं है। विधवा होने पर महिला अपने माता-पिता के साथ रह सकती है और इस स्थिति में भी वह अपने ससुर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम 1956 के तहत ससुर से गुजारा भत्ता पाने के लिए विधवा बहू का ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं है। READ ALSO:-अप्राकृतिक सेक्स और समलैंगिकता पर आयोग का फैसला रद्द, मेडिकल कोर्स में होना था बदलाव, क्या होती है सोडोमी-समलैंगिकता?
विधवा के ससुर ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर कहा था कि उसकी बहू ने उसके साथ रहने से इनकार कर दिया है। इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इसके विपरीत फैसला सुनाया।
क्या था मामला?
आगरा की रहने वाली भूरी देवी के पति की 1999 में हत्या कर दी गई थी। महिला ने अपने खर्च के लिए गुजारा भत्ता मांगा था। उसने अपनी अपील में कहा था कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। आगरा फैमिली कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विधवा के ससुर उसे हर महीने 3000 रुपये देंगे। महिला के ससुर ने विरोध करते हुए कहा कि बहू अपने माता-पिता के साथ रहती है। इसलिए उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए। विधवा ने अपने ससुराल वालों के साथ रहने से इनकार कर दिया है। उसे गुजारा भत्ता पाने का कोई अधिकार नहीं है।
आगरा की रहने वाली भूरी देवी के पति की 1999 में हत्या कर दी गई थी। महिला ने अपने खर्च के लिए गुजारा भत्ता मांगा था। उसने अपनी अपील में कहा था कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। आगरा फैमिली कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विधवा के ससुर उसे हर महीने 3000 रुपये देंगे। महिला के ससुर ने विरोध करते हुए कहा कि बहू अपने माता-पिता के साथ रहती है। इसलिए उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए। विधवा ने अपने ससुराल वालों के साथ रहने से इनकार कर दिया है। उसे गुजारा भत्ता पाने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट का फैसला
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की बेंच ने कहा कि समाज और संस्कृति विधवा के अपने माता-पिता या ससुराल वालों के साथ रहने के फैसले को प्रभावित करती है। कोर्ट ने कहा, "सिर्फ़ इसलिए कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई है और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।"
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की बेंच ने कहा कि समाज और संस्कृति विधवा के अपने माता-पिता या ससुराल वालों के साथ रहने के फैसले को प्रभावित करती है। कोर्ट ने कहा, "सिर्फ़ इसलिए कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई है और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि विधवा बहू का भरण-पोषण पाने का अधिकार उसके वैवाहिक घर में रहने पर निर्भर नहीं करता है, क्योंकि सामाजिक संदर्भ में विधवाओं का अपने माता-पिता के साथ रहना आम बात है और उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि पति की मौत के बाद कई महिलाएं ससुराल में सहजता से नहीं रह पाती हैं, इसलिए कानून को संवेदनशीलता के साथ लागू किया जाना चाहिए।