आज रात 9 बजे से 9.54 बजे तक है रक्षाबंधन का सर्वोत्तम मुहूर्त, दो दिन मनाया जाएगा त्योहार, गुरुवार को सुबह 6.30 से 7.37 बजे तक बांधी जाएगी राखी

 ज्योतिष के अनुसार रक्षाबंधन का सबसे अच्छा समय 30 अगस्त की रात 9 बजे से 9.54 बजे तक है, लेकिन राखी 11.13 बजे तक बांधी जा सकती है। वहीं, 31 तारीख को सुबह 6.30 बजे से 7.37 बजे तक रक्षाबंधन मनाया जा सकता है। 
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रक्षाबंधन का सबसे अच्छा समय 30 अगस्त को रात 9 बजे से 9.54 बजे तक है, लेकिन रात 11.13 बजे तक राखी बांधी जा सकती है. वहीं, 31 तारीख को सुबह 6.30 बजे से 7.37 बजे तक रक्षाबंधन मनाया जा सकता है. बीएचयू के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री का कहना है कि रक्षाबंधन का सबसे अच्छा समय 30 अगस्त की रात 9 बजे से 9.54 बजे तक है, लेकिन राखी 11.13 बजे तक बांधी जा सकती है। वहीं, 31 तारीख को सुबह 6.30 बजे से 7.37 बजे तक रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।READ ALSO:-UP : अंग्रेजी माध्यम के बच्चों के स्कूलों की तरह चमकेंगी उत्तर प्रदेश की आंगनबाड़ियां, योगी सरकार उपलब्ध कर वा रही धनराशि

 

इस पर्व पर एक दुर्लभ संयोग बन रहा है. 30 तारीख को बुधादित्य, गजकेसरी, वासर्पति, भ्रातृवृद्धि और शश योग रहेगा। इस तरह सूर्य, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि मिलकर पंच महायोग बना रहे हैं। रक्षाबंधन पर तिथि, वार, नक्षत्र और ग्रह स्थिति का ऐसा संयोग पिछले 700 वर्षों में नहीं बना।

 

30 तारीख को पूरा दिन खरीदारी के लिए शुभ रहेगा
ज्योतिषियों का कहना है कि 30 अगस्त को सितारों के शुभ संयोग के कारण पूरे दिन खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा। इसमें वाहन, संपत्ति, आभूषण, फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक सामान और अन्य चीजों की खरीदारी दीर्घकालिक लाभ देगी। साथ ही यह दिन किसी भी शुरुआत के लिए बहुत अच्छा रहेगा।

 

रक्षाबंधन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। राजा अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए विजय अभियान चलाकर शत्रुओं पर आक्रमण करते थे, इसलिए शत्रुओं से रक्षा के लिए सावन माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने की परंपरा शुरू हुई।

 

सावन माह की पूर्णिमा को कुल पुरोहित और गुरु दिन के तीसरे-चौथे पहर में रक्षा मंत्रों का उच्चारण करते हुए रक्षा पोटली बनाते थे। जिसमें सूती या रेशमी कपड़े में सरसों, चावल, सोना, केसर, दूर्वा और चंदन होता था।

 

यह रक्षासूत्र राजा और प्रजा की रक्षा के लिए पूजा के बाद सभी को बांधा जाता था। बाद में यह परंपरा बदल गई। फिर घर के बड़े सदस्य ने परिवार के सभी छोटे सदस्यों को रक्षासूत्र बांधना शुरू कर दिया। इसके बाद अब यह बहन-भाई का त्योहार बन गया है।

 

भविष्य पुराण में कहा गया है कि इस तरह बांधा गया रक्षासूत्र सुख, समृद्धि और विजय दिलाता है। यह पूरे साल बीमारियों और परेशानियों से भी बचाता है।

देशभर में रक्षाबंधन की अलग-अलग परंपराएं
यह त्यौहार सावन पूर्णिमा पर देशभर में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। राखी सिर्फ भाई-बहन का ही त्योहार नहीं है, बल्कि यह मछुआरों का भी त्योहार है और कहीं न कहीं यह नई शुरुआत का दिन भी है।

 

कजरी पूर्णिमा: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों पर इस दिन को कजरी पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन माताएं अपने सिर पर जौ निकालती हैं और उसे किसी तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है।

 

नारली पूर्णिमा: महाराष्ट्र में राखी के साथ-साथ नारली पूर्णिमा भी मनाई जाती है। राज्य के कोली समुदाय के लोग समुद्र देवता को नारियल चढ़ाते हैं। इसके साथ ही मछली पकड़ने की शुरुआत भी हो जाती है. वहीं, गुजरात में इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है, जिसे पवित्रोपना उत्सव कहा जाता है।

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गम्हा पूर्णिमा: उड़ीसा में इसे गम्हा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है जिसमें पालतू गायों और बैलों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश क्षेत्र में इस दिन को अवनियाविट्टम और उपाकर्म के रूप में मनाया जाता है। यह दिन वैदिक पाठ प्रारंभ करने के लिए शुभ माना जाता है।

 

जनाई पूर्णिमा: नेपाल में राखी को जनाई पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन नेवार समुदाय के लोग मेंढकों को खाना खिलाते हैं। मान्यताओं के अनुसार इन्हें वर्षा देवता का दूत माना जाता है।

 

बग्वाल मेला: उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में हर साल राखी पर 'बग्वाल' मेले का आयोजन किया जाता है। वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में स्थानीय जनजातियों द्वारा पत्थरों से युद्ध खेला जाता है।
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