काम की खबर : ध्यान दें अल्ट्रासाउंड करवाना हो सकता है खतरनाक, शरीर के ऊपर लगाने वाले 'अल्ट्रासाउंड जैल' में निकले खतरनाक बैक्टीरिया
अगर आप कहीं से अल्ट्रासाउंड कराने जा रहे हैं या अल्ट्रासाउंड करवा कर आये हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। आईवीआरआई (IVRI) वैज्ञानिकों के शोध में अल्ट्रासाउंड जैल में खतरनाक बैक्टीरिया पाए गए।
Sep 8, 2022, 17:43 IST
अगर आप आए हैं कहीं से अल्ट्रासाउंड करवा कर या कराने जा रहे हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। आईवीआरआई (IVRI) वैज्ञानिकों के शोध में अल्ट्रासाउंड के दौरान शरीर पर लगाए जाने वाले जैल में खतरनाक बैक्टीरिया पाए गए हैं। ये बैक्टीरिया मानव शरीर में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। वे कई प्रकार के संक्रामक रोगों का कारण हैं। उन्हें केवल उच्च एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा समाप्त किया जाता है।Read Also:-UP : मेरठ, बरेली, प्रयागराज और झांसी में खुलेगा लाइट मेट्रो चलने का आसान हुआ रास्ता, अब नए सिरे से होगा सर्वे
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के रिसर्च स्कॉलर डॉ. रविचंद्रन कार्तिकेयन ने प्रधान वैज्ञानिक डॉ. भोजराज सिंह के निर्देशन में देश के 17 राज्यों की 15 कंपनियों से अल्ट्रासाउंड जैल के 63 सैंपल लिए। ये नमूने मई 2021 से दिसंबर तक आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई ऐसे अस्पतालों से मई 2021 से दिसंबर तक, जहां मरीजों का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। अस्पतालों से पैक्ड और खुले में रखे गए जैल के सैंपल लिए गए। इन नमूनों का प्रयोगशाला में गहन परीक्षण किया गया। जांच में 32 सैंपल में खतरनाक बैक्टीरियम हाइन बुकहोल्डरिया सेपसिया ग्रुप के बैक्टीरिया समेत पांच अन्य तरह के बैक्टीरिया पाए गए।
डॉ. भोजराज ने बताया कि कभी-कभी बुचहोल्डरिया सेपेसिया समूह के बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण के इलाज में छह महीने से अधिक समय लग जाता है। हालांकि, वैज्ञानिक का यह भी कहना है कि ज्यादातर डॉक्टर इस तरह के संक्रमण से बचने के लिए अल्ट्रासाउंड जैल का इस्तेमाल करने से पहले मरीज और खुद को मेडिकेटेड क्रीम लगाकर सैनिटाइज करते हैं।
सरल एंटीबायोटिक इन जीवाणुओं पर अप्रभावी
वैज्ञानिकों का कहना है कि बुचहोल्डरिया सेपेसिया समूह के बैक्टीरिया इतने जिद्दी होते हैं कि अक्सर साधारण एंटीबायोटिक्स का उन पर कोई असर नहीं होता है। अत्यधिक महंगी एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग अक्सर उपचार के लिए किया जाता है। जिन रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उनमें उनका विकास अधिक तेजी से होता है। इन्हीं बैक्टीरिया की वजह से कई बार मरीजों के फेफड़ों में पानी भर जाता है। ऐसे में अगर सही समय पर इलाज नहीं कराया गया तो मरीजों की जान भी जा सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बुचहोल्डरिया सेपेसिया समूह के बैक्टीरिया इतने जिद्दी होते हैं कि अक्सर साधारण एंटीबायोटिक्स का उन पर कोई असर नहीं होता है। अत्यधिक महंगी एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग अक्सर उपचार के लिए किया जाता है। जिन रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उनमें उनका विकास अधिक तेजी से होता है। इन्हीं बैक्टीरिया की वजह से कई बार मरीजों के फेफड़ों में पानी भर जाता है। ऐसे में अगर सही समय पर इलाज नहीं कराया गया तो मरीजों की जान भी जा सकती है।
बीमार और उनके परिजन इस तरह बरतें सावधानी
प्रधान वैज्ञानिक डॉ भोजराज का कहना है कि कई बार सावधानी बरतने पर भी मरीज और उनके परिजन बड़े संक्रमण से बच सकते हैं। जब वे अल्ट्रासाउंड के बाद वापस आएं, तो उन जगहों को अच्छी गुणवत्ता वाले और झाग वाले साबुन से अच्छी तरह धो लें। साबुन से धोने से ज्यादातर मामलों में बैक्टीरिया मर जाते हैं। इसके साथ ही प्रशासन को अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले अल्ट्रासाउंड जैल की उचित गुणवत्ता की जांच करानी चाहिए। और निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद ऐसे संक्रमित सामान को समय से बाजार से हटा लें।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ भोजराज का कहना है कि कई बार सावधानी बरतने पर भी मरीज और उनके परिजन बड़े संक्रमण से बच सकते हैं। जब वे अल्ट्रासाउंड के बाद वापस आएं, तो उन जगहों को अच्छी गुणवत्ता वाले और झाग वाले साबुन से अच्छी तरह धो लें। साबुन से धोने से ज्यादातर मामलों में बैक्टीरिया मर जाते हैं। इसके साथ ही प्रशासन को अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले अल्ट्रासाउंड जैल की उचित गुणवत्ता की जांच करानी चाहिए। और निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद ऐसे संक्रमित सामान को समय से बाजार से हटा लें।