क्या उत्तर प्रदेश का मदरसा कानून संवैधानिक है? सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है, जानिए अभी तक के बड़े अपडेट....
उत्तर प्रदेश के हज़ारों मदरसा छात्रों के भविष्य का आज फैसला हो गया है। आज सुप्रीम कोर्ट में मदरसा एक्ट 2004 पर सुनवाई हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस एक्ट को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक और धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करने वाला बताया था।
Nov 5, 2024, 12:57 IST
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट 2004 को संवैधानिक घोषित कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट 2004 को असंवैधानिक घोषित किया था। सीजेआई जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया है। उत्तर प्रदेश के हजारों मदरसा छात्रों के भविष्य का आज फैसला हो गया है। यूपी में 2004 में बने मदरसा कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। Read also:-उत्तर प्रदेश के वाहन स्वामियों के लिए मौका: इस तरह जमा करेंगे बकाया टैक्स तो नहीं देना होगा जुर्माना, परिवहन निगम ला रहा ये योजना
यह कानून बरकरार रहेगा। इस बात की जानकारी मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस कानून को निरस्त कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता का हनन करने वाला है। हाईकोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि मदरसा के छात्रों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जाए। शिक्षा को मुख्यधारा में लाया जाए। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि पूरे कानून को खत्म करना बच्चे को नहाने के पानी के साथ बाहर फेंकने जैसा है। इससे कई खामियां पैदा होंगी और मदरसा शिक्षा अनियमित हो जाएगी। अल्पसंख्यकों की पुरानी संस्कृति को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। वे कई सौ सालों से देश का हिस्सा हैं।
बाल अधिकार आयोग ने किया था विरोध
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा था कि धार्मिक निर्देश सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं हो सकते। ये हिंदू, ईसाई और सिखों पर भी लागू होते हैं। भारत में संस्कृतियों और सभ्यताओं के साथ धर्मों का मिश्रण भी जरूरी है। इन सभी को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी मदरसा शिक्षा का विरोध किया था।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा था कि धार्मिक निर्देश सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं हो सकते। ये हिंदू, ईसाई और सिखों पर भी लागू होते हैं। भारत में संस्कृतियों और सभ्यताओं के साथ धर्मों का मिश्रण भी जरूरी है। इन सभी को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी मदरसा शिक्षा का विरोध किया था।
आयोग ने दलील दी थी कि मदरसा शिक्षा संविधान के अनुरूप नहीं है। धार्मिक शिक्षा मुख्यधारा के अनुरूप नहीं हो सकती। इसके उलट यूपी सरकार ने कानून का समर्थन करते हुए कहा था कि हाईकोर्ट को पूरे कानून को असंवैधानिक नहीं मानना चाहिए। बता दें कि इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेशों पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद यूपी के मदरसों को अपना काम जारी रखने की इजाजत दे दी गई।