चंद्रयान-3, लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल से लैस पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा, 40 दिन बाद चांद पर उतरेगा; ISRO प्रमुख बोले- शुरू हो गया चंद्रमा का सफर   

चंद्रयान-3 ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक नया अध्याय लिखा। यह हर भारतीय के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को ऊपर उठाते हुए ऊंची उड़ान भर रहा है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। मैं उनके जज्बे और प्रतिभा को सलाम करता हूं!
 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने शुक्रवार (14 July 2023) को चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। चंद्रयान को दोपहर 2.35 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से LVM3-M4 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया है। 16 मिनट बाद रॉकेट ने चंद्रयान को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया। इस सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान 3 ने चंद्रमा की ओर अपनी यात्रा शुरू कर दी है।Read also:-UP में जबरदस्त बारिश और बाढ़ का प्रकोप, कालिंदी कुंज और डीएनडी पर डायवर्जन, 71 ट्रेनें हुई रद्द, दिल्ली का पुराना लोहा पुल बंद, नोएडा में हुई स्कूलों की छुट्टी

 

चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान में तीन लैंडर/रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं। करीब 40 दिन बाद यानी 23 या 24 अगस्त को लैंडर और रोवर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे। ये दोनों चांद पर 14 दिनों तक प्रयोग करेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर पृथ्वी से आने वाले विकिरण का अध्ययन करेगा। मिशन के जरिए इसरो यह पता लगाएगा कि चंद्रमा की सतह कितनी भूकंपीय है, मिट्टी और धूल का अध्ययन किया जाएगा।

 

 

 

 

अब चंद्रयान मिशन से जुड़े कुछ अहम सवालों के जवाब...

 

इस मिशन से भारत को क्या मिलेगा?

  • इसरो के पूर्व वैज्ञानिक मनीष पुरोहित का कहना है कि इस मिशन के जरिए भारत दुनिया को बताना चाहता है कि उसके पास चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और वहां रोवर चलाने की क्षमता है। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ेगा जिससे व्यापारिक कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। भारत अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान लॉन्च करेगा। भारत पहले ही इस वाहन की क्षमता दुनिया को दिखा चुका है।

 

  • पिछले दिनों अमेज़न के संस्थापक जेफ बेजोस की कंपनी 'ब्लू ओरिजिन' ने इसरो के LVM3 रॉकेट का उपयोग करने में अपनी रुचि दिखाई थी। ब्लू ओरिजिन LVM3 का उपयोग वाणिज्यिक और पर्यटन उद्देश्यों के लिए करना चाहता है। LVM3 के माध्यम से, ब्लू ओरिजिन अपने क्रू कैप्सूल को नियोजित लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाएगा।

 

मिशन दक्षिणी ध्रुव पर ही क्यों भेजा जा रहा है?
  • चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से काफी भिन्न हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंच पाती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है।  ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वहां अभी भी बर्फ के रूप में पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।

 

  • इस मिशन की लैंडिंग साइट चंद्रयान-2 जैसी ही है। 70 डिग्री अक्षांश पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास। लेकिन इस बार रकबा बढ़ा दिया गया है। चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर X 500 मीटर थी। अब, लैंडिंग साइट 4 किमी X 2.5 किमी है।

 

  • अगर सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला अंतरिक्ष यान बन जाएगा। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे हैं।

 

इस बार लैंडर में 5 की जगह 4 इंजन क्यों?
  • इस बार लैंडर के चारों कोनों पर चार इंजन (थ्रस्टर) होंगे, लेकिन पिछली बार बीच के पांचवें इंजन को हटा दिया गया है। अंतिम लैंडिंग दो इंजनों की मदद से ही की जाएगी, ताकि आपात स्थिति में दो इंजन काम कर सकें। चंद्रयान 2 मिशन में आखिरी वक्त पर पांचवां इंजन जोड़ा गया। इंजन को हटा दिया गया है ताकि अधिक ईंधन साथ ले जाया जा सके।

 

14 दिन का ही क्यों होगा मिशन?
  • मनीष पुरोहित ने बताया कि चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक रोशनी रहती है। जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। चंद्रयान के लैंडर और रोवर अपने सौर पैनलों से बिजली पैदा करेंगे। इसलिए वे 14 दिनों तक बिजली उत्पादन करेंगे, लेकिन रात होते ही बिजली उत्पादन प्रक्रिया बंद हो जायेगी। यदि बिजली उत्पादन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भीषण ठंड का सामना नहीं कर पाएंगे और खराब हो जाएंगे।