कलकत्ता हाईकोर्ट ने लड़कियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की दी थी सलाह, सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट केस में पलटा हाईकोर्ट फैसला
कोलकाता हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पोक्सो एक्ट से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए की थी। कोर्ट ने पाया था कि आरोपी और कथित पीड़िता के बीच सहमति से संबंध बने थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है।
Aug 20, 2024, 13:18 IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोलकाता हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर आपत्ति जताई। हाईकोर्ट ने एक मामले में अपना फैसला सुनाते हुए किशोरों को 'अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने और दो मिनट के आनंद के पीछे न भागने' की सलाह दी थी। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने पोक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offenses Act) से जुड़े एक मामले में रिहा हुए एक व्यक्ति से जुड़े कोलकाता हाईकोर्ट के एक फैसले को पलट दिया।READ ALSO:-UP : 'मेरे प्राइवेट पार्ट को छूते थे मास्टर साहब', नाबालिग छात्रा की शिकायत पर प्रधानाध्यापक को पुलिस ने किया गिरफ्तार, परिजनों ने की चप्पल से पिटाई
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट के क्रियान्वयन को लेकर शीर्ष अदालत ने अपने दिशा-निर्देश दिए हैं। साथ ही यह भी बताया है कि ऐसे मामलों में फैसला सुनाते समय जजों को किन बातों का ध्यान रखना है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता हाईकोर्ट की टिप्पणी पर स्वत: संज्ञान लेते हुए 8 दिसंबर को कहा था कि जजों को किसी भी मामले में कानून और तथ्यों के आधार पर फैसला देना चाहिए। साथ ही कानूनी प्रक्रियाओं में ज्ञान साझा करने से बचना चाहिए। हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी और पोक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार आरोपियों की रिहाई को रद्द कर दिया।
फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची बंगाल सरकार
पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले साल 18 अक्टूबर 2023 को कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
पश्चिम बंगाल सरकार ने पिछले साल 18 अक्टूबर 2023 को कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणियों पर स्वत: संज्ञान लिया
इससे पहले देश की शीर्ष अदालत ने पिछले साल 8 दिसंबर को हाई कोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की थी। साथ ही इसे हाई कोर्ट की बिल्कुल आपत्तिजनक और पूरी तरह से अवांछित टिप्पणी करार दिया था।
इससे पहले देश की शीर्ष अदालत ने पिछले साल 8 दिसंबर को हाई कोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की थी। साथ ही इसे हाई कोर्ट की बिल्कुल आपत्तिजनक और पूरी तरह से अवांछित टिप्पणी करार दिया था।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को बता दिया है कि फैसला कैसे लिखना है। हमने जेजे एक्ट की धारा 19 (6) को लागू करने के लिए सभी राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। हमने तीन विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति भी बनाई है। कोर्ट ने आगे कहा, "हमने धारा 376 के तहत दोषसिद्धि को बहाल कर दिया है। विशेषज्ञ समिति सजा पर फैसला करेगी। हम इस फैसले को निरस्त कर रहे हैं। साथ ही हमने राज्यों को निर्देश दिया है कि जेजे एक्ट की धारा 46 के साथ धारा 19 (6) का पालन किया जाए।"
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के दौरान की गई कुछ टिप्पणियों पर स्वत: संज्ञान लिया था और इसे रिट याचिका के रूप में सुनवाई शुरू की थी। तब शीर्ष अदालत ने कहा था कि जजों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे फैसला लिखते समय उपदेश दें।