बागपत : पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की भारत से खत्म होंगी सारी निशानी, नीलाम हो रही पारिवारिक संपत्ति
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का नामोनिशान भारत की धरती से मिटने वाला है। बागपत में मुशर्रफ के परिवार के नाम दर्ज शत्रु संपत्ति की नीलामी की जा रही है।
Sep 1, 2024, 00:00 IST
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बागपत के कोटाना गांव में स्थित पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के परिवार के नाम दर्ज 13 बीघा शत्रु संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्रशासन ने इस संपत्ति की नीलामी के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो 5 सितंबर तक पूरी हो जाएगी। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद संपत्ति खरीदार के नाम पर दर्ज हो जाएगी।READ ALSO:-सुप्रीम कोर्ट ने बैंक ऋण वसूली एजेंट फर्म को 'गुंडों का समूह' बताया, पीड़ित को मुआवजा देने का दिया आदेश
कोटाना से पाकिस्तान तक का सफर
गांव वालों के मुताबिक, परवेज मुशर्रफ का परिवार बंटवारे से पहले कोटाना गांव में रहता था। 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके परिवार के सदस्य पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन और हवेली यहीं रह गई। इन्हें 'शत्रु संपत्ति' के तौर पर दर्ज किया गया। अब प्रशासन ने इस शत्रु संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसका अंतिम नतीजा 5 सितंबर को घोषित किया जाएगा।
गांव वालों के मुताबिक, परवेज मुशर्रफ का परिवार बंटवारे से पहले कोटाना गांव में रहता था। 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके परिवार के सदस्य पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन और हवेली यहीं रह गई। इन्हें 'शत्रु संपत्ति' के तौर पर दर्ज किया गया। अब प्रशासन ने इस शत्रु संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसका अंतिम नतीजा 5 सितंबर को घोषित किया जाएगा।
जनरल परवेज मुशर्रफ की पुश्तैनी जमीन और हवेली
बताया जाता है कि परवेज मुशर्रफ के पिता मुशर्रफुद्दीन और मां बेगम जरीन कोटाना गांव के रहने वाले थे। उनकी शादी भी इसी गांव में हुई थी, लेकिन 1943 में परिवार दिल्ली आ गया, जहां परवेज मुशर्रफ और उनके भाई डॉ. जावेद मुशर्रफ का जन्म हुआ। बंटवारे के समय 1947 में उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। दिल्ली के अलावा कोताना में उनकी हवेली और कृषि भूमि भी मौजूद थी।
बताया जाता है कि परवेज मुशर्रफ के पिता मुशर्रफुद्दीन और मां बेगम जरीन कोटाना गांव के रहने वाले थे। उनकी शादी भी इसी गांव में हुई थी, लेकिन 1943 में परिवार दिल्ली आ गया, जहां परवेज मुशर्रफ और उनके भाई डॉ. जावेद मुशर्रफ का जन्म हुआ। बंटवारे के समय 1947 में उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। दिल्ली के अलावा कोताना में उनकी हवेली और कृषि भूमि भी मौजूद थी।
हालांकि बाद में परवेज मुशर्रफ की जमीन बिक गई, लेकिन उनके भाई डॉ. जावेद मुशर्रफ और परिवार के अन्य सदस्यों की 13 बीघा से अधिक कृषि भूमि बच गई। इसके अलावा कोताना की हवेली उनके चचेरे भाई हुमायूं के नाम दर्ज हो गई।
जमीन शत्रु संपत्ति में दर्ज और नीलामी प्रक्रिया शुरू
करीब पंद्रह साल पहले डॉ. जावेद मुशर्रफ और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की जमीन शत्रु संपत्ति में दर्ज हो गई थी। अब बागपत प्रशासन ने इस शत्रु संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। नीलामी प्रक्रिया में पांच सितंबर तक आधी जमीन की नीलामी पूरी कर अभिलेखों में नया नाम दर्ज कर दिया जाएगा।
करीब पंद्रह साल पहले डॉ. जावेद मुशर्रफ और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की जमीन शत्रु संपत्ति में दर्ज हो गई थी। अब बागपत प्रशासन ने इस शत्रु संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। नीलामी प्रक्रिया में पांच सितंबर तक आधी जमीन की नीलामी पूरी कर अभिलेखों में नया नाम दर्ज कर दिया जाएगा।
इसके बाद बागपत से पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के भाई और परिवार का नामोनिशान मिट जाएगा। इस प्रक्रिया के जरिए भारत सरकार शत्रु संपत्ति के तहत दर्ज संपत्तियों का नए सिरे से निर्धारण कर रही है, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक रिश्तों की नई कहानी लिखी जा रही है।
शत्रु संपत्ति का क्या मतलब है?
शत्रु संपत्ति से तात्पर्य उन संपत्तियों से है जो भारत-चीन युद्ध (1962) और भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965, 1971) के बाद चीन और पाकिस्तान गए लोगों द्वारा छोड़ी गई हैं। केंद्र सरकार के अनुसार, देशभर में 12 हजार 611 संपत्तियां ऐसी हैं जिन्हें शत्रु संपत्ति घोषित किया गया है। शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसके अनुसार शत्रु संपत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा।
सरल भाषा में शत्रु संपत्ति का सीधा मतलब शत्रु संपत्ति होता है। शत्रु संपत्ति। फर्क सिर्फ इतना है कि शत्रु किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि किसी देश का होता है। जैसे पाकिस्तान, चीन। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा 1947 में हुआ था। पाकिस्तान गए लोग अपने साथ सबकुछ नहीं ले गए। बहुत कुछ पीछे छोड़ गए। मकान, हवेलियाँ, जमीन, गहने, कम्पनियाँ आदि सब कुछ सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया।