मृतक पति की पेंशन के लिए पहुंची हाईकोर्ट
लाइव लॉ की खबर के मुताबिक गुवाहाटी हाईकोर्ट ने यह फैसला एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया। इस मामले में याचिकाकर्ता महिला दीपमणि कलिता एक मुस्लिम पुरुष शहाबुद्दीन अहमद की दूसरी पत्नी है। शहाबुद्दीन अहमद की मृत्यु पर पेंशन और अन्य पेंशन लाभ न मिलने से व्यथित होकर दीपमणि कलिता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। दीपमणि कलिता के साथ शहाबुद्दीन अहमद ने दूसरी शादी की थी, दीपमणि का 12 साल का बच्चा भी है। शहाबुद्दीन कामरूप (ग्रामीण) के उपायुक्त के ऑफिस में लाट मंडल के पद पर तैनात थे। जुलाई 2017 में शहाबुद्दीन की मौत हो गई थी। जिसके बाद दीपमणि ने पेंशन और अन्य लाभ पाने के लिए आवेदन किया था, जिसे अफसरों ने खारिज कर दिया था।
अनुच्छेद 226 के तहत याचिका लगाई थी
दूसरी शादी के समय पहली पत्नी जिंदा थी
इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस कल्याण राय सुराना ने अधिनियम की धारा चार और मोहम्मद सलीम अली (मृत) बनाम शमशुदीन (मृत) सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र करते हुए कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 एक मुसलमान पुरुष द्वारा अनुबंधित दूसरी शादी का बचाव नहीं करती है। जिस समय शहाबुद्दीन अहमद ने दीपमणि के साथ दूसरी शादी की थी, उस समय उनकी पहली पत्नी जिंदा थी। इसमें कोई विवाद नहीं है।
यह सिर्फ अनियमित विवाह है
जस्टिस ने कहा कि शहाबुद्दीन का उनकी पत्नी के साथ रिश्ता खत्म होने का सबूत देने वाला कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘इस्लामी कानून से यह स्पष्ट है कि एक मुस्लिम पुरुष का मूर्तिपूजक महिला के साथ निकाह न तो मान्य है और न ही शून्य है. यह सिर्फ अनियमित विवाह है।’ महिला के दावे को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का नाबालिग बेटा अब भी पेंशन और अन्य पेंशन लाभों पर अपने हिस्से का हकदार होगा।
न्यायमूर्ति कल्याण राय सुराणा ने कहा
"ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम कानून के सिद्धांतों के तहत मूर्ति पूजा करने वाले के साथ मुस्लिम व्यक्ति का विवाह न तो वैध है और न ही शून्य विवाह है, बल्कि केवल एक अनियमित विवाह है। मुल्ला द्वारा मुस्लिम कानून के सिद्धांतों की धारा 22 के अनुसार (20वां संस्करण) विवाह की क्षमता स्वस्थ दिमाग के प्रत्येक मुसलमान से संबंधित है जिसने विवाह अनुबंध में प्रवेश किया था। याचिकाकर्ता मुसलमान नहीं होने के कारण मुस्लिम कानून के तहत मुस्लिम व्यक्ति से विवाहित नहीं मानी जा सकती। वर्तमान मामले में यह देखा गया कि याचिकाकर्ता की शादी प्रथागत मुस्लिम कानून के अनुसार नहीं हुई थी, लेकिन उसकी शादी विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत हुई थी और उक्त अधिनियम की धारा 4 (ए) के प्रावधान विवाह को शून्य बताते हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता अभी भी अपने हिंदू नाम का उपयोग कर रही है। इसके साथ ही यह दिखाने के लिए कोई रिकॉर्ड भी नहीं है कि याचिकाकर्ता ने शादी के बाद इस्लाम धर्म अपना लिया था।"
कोर्ट के इस कथन के बचाव में याचिकाकर्ता ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पहली पत्नी की ओर से याचिकाकर्ता और उसके पति के बीच विवाह को अमान्य घोषित करना अनिवार्य है। जिसपर कोर्ट ने कहा, "एक हिंदू महिला ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत मुसलमान पुरुष से शादी की थी। विवाह के समय विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 (ए) लागू नहीं होती है। इसलिए, विवाह अमान्य होगा।"