20 हजार साल पहले भी चीन, जापान समेत पूर्वी एशिया में कहर बरपा चुका है कोरोना, यहां के लोगों के जीन्स में मिले सबूत

एक्सपर्ट्स ने मानव के बदलते DNA पर शोध किया था। इन्होने पाया कि एक वक्त में मानव के डीएनए में वैसे ही बदलाव आए थे जैसे अभी कोविड की वजह से आ रहे हैं। उन्होंने पाया कि कैसे इस वायरस को बॉडी ने अपने आप बेअसर कर दिया था
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कोरोना वायरस (SARS-COV-2) दुनिया में अब तक 18 करोड़ से ज्यादा लोगों को बीमार और 39 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है। बीते डेढ़ साल से दुनिया में तबाही मचा रहा कोरोना वायरस 20 हजार साल पहले भी ऐसा ही मौत का तांडव मचा चुका है। साइंस जर्नल 'करंट बायोलॉजी' में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार 20 हजार साल पहले भी चीन, जापान, वियतनाम और पूर्वी एशिया में कोरोना ने कई सालों तक प्रकोप बरपाया था।

 

रिपोर्ट के मुताबिक वायरस इतना खतरनाक था कि आज भी चीन, जापान, वियतनाम और पूर्वी एशिया और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के डीएनए में इसके सबूत मिले हैं।इन क्षेत्रों में मौजूदा आबादी के 42 जीन्स में कोरोना वायरस से बचने के लिए किए गए बदलाव के सबूत मिले हैं। रिचर्स की अगुआई करने वाले एरिजोना यूनिवर्सिटी के इवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट डेविड एनार्ड का कहना है, कोरोना वायरस को अगर वैक्सीनेशन से जल्द ही नियंत्रित नहीं किया गया तो वह कई पीढ़ियो तक कहर बरपा सकता है। इससे हमें चिंतित होना चाहिए। 

 

यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड (University Of Queensland) के एक्सपर्ट्स ने मानव के बदलते DNA पर शोध किया था। इन्होने पाया कि एक वक्त में मानव के डीएनए में वैसे ही बदलाव आए थे जैसे अभी कोविड की वजह से आ रहे हैं। उन्होंने पाया कि कैसे इस वायरस को बॉडी ने अपने आप बेअसर कर दिया था। रिसर्च में सामने आया कि 20 हजार साल पहले ये महामारी पूर्वी एशियाई लोग में फैली थी, जिनमें अब चीन, जापान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और ताइवान शामिल है। इस वायरस ने तब भी काफी तबाही मचाई थी। समय के साथ इंसान की बॉडी ने इसे एडाप्ट कर लिया और ये बेअसर हो गया। इसकी दवा तब भी नहीं बन पाई थी। इस स्टडी की पूरी डिटेल वर्तमान जीवविज्ञान पत्रिका में प्रकाशित की गई।

 

वायरस के साथ इंसानों के जीन भी करते हैं म्यूटेशन
जिस तरह वायरस खुद को बचाए रखने के लिए म्यूटेशन यानी बदलाव करते रहते हैं, ठीक उसी तरह इंसानों के जीन भी म्यूटेशन करते रहते हैं। मतलब यह कि वायरस भी पीढ़ियों से इंसान के जीनोम में भारी बदलाव करते आए हैं। किसी वायरस के खिलाफ जीन में एक म्यूटेशन जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर पैदा कर सकता है। यह बदलाव आगे की पीढ़ियों में भी ट्रांसफर होता जाता है।

 

ऐसा कोई म्यूटेशन इंसान की प्रतिरोधक प्रणाली को किसी वायरस के प्रोटीन को उससे अलग करने यानी उसे मार देने की क्षमता पैदा कर सकता है। दूसरी तरफ वायरस भी खुद में बदलाव करते हैं। वो अपने मेजबान की रक्षा प्रणाली से बचने के लिए अपने प्रोटीन का आकार बदल लेते हैं। इसके जवाब में मेजबान भी अपने जीन में म्यूटेशन यानी बदलाव कर सकते हैं। डॉ. डेविड एनार्ड और उनके साथियों ने पिछले कुछ सालों में इंसानों के जीनोम में बदलाव के इन सिलसिलों (pattern) को दोबारा बनाकर (reconstruct) देखा।

 

26 तरह की आबादी से 2500 डीएनए की तुलना
जब कोरोना फैला तो उन्होंने सोचा कि क्या किसी पुराने कोरोना वायरस ने इंसानी जीनोम पर छाप छोड़ी है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर दुनिया भर की 26 अलग-अलग आबादी के 2500 से ज्यादा लोगों के डीएनए (DNA) की तुलना की।

 

इस दौरान पांच जगह की आबादी में 42 जीन में कोरोना वायरस से निपटने के हिसाब से बदलाव के सबूत मिले। इसे अनुकूलन कहते हैं। जीन में यह अनुकूलन केवल पूर्वी एशिया की आबादी में मिला। बाकी दुनिया की आबादी में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला। रिसर्चर्स का मानना है कि इन जीन्स में वायरस के खिलाफ यह म्यूटेशन यानी बदलाव 20 हजार से 25 हजार साल पहले हुआ होगा।

 

फेफड़ों के खास प्रोटीन से जुड़े जीन्स में किया था बदलाव
वायरस एक ऐसी जैविक संरचना है, जो अन्य जीवों की तरह प्रजनन करने के बजाय दूसरे जीवों की कोशिकाओं पर हमला कर उसके जैनेटिक मटेरियल का इस्तेमाल करके अपनी ज्यादा से ज्यादा कॉपियां बनाता है। वायरस मेजबान कोशिका से पैदा हुए विशिष्ट प्रोटीन के साथ संपर्क करता है और उससे जुड़ता है, जिसे हम वायरल इंटरैक्टिंग प्रोटीन (VIP) कहते हैं।

 

ताजा रिसर्च में कोरोना वायरस से बचाव के लिए जिन 42 जीन में बदलाव के निशान मिले हैं, वे सभी जीन फेफड़ों में पाए जाने वाले वायरल इंटरैक्टिंग प्रोटीन (VIP) से संबंधित हैं। यानी इंसानी जीन ने इन प्रोटीन में बदलाव किया ताकि वे कोरोना वायरस से बच सकें।

 

कोरोना का प्राचीन इतिहास नहीं जान पाए थे रिसर्चर्स
रिसर्चर्स अब तक कोरोना वायरस परिवार का पुराना इतिहास नहीं जान पाए थे। जबकि पिछले 20 सालों में ही तीन कोरोना वायरस ने इंसानों को संक्रमित कर उनमें सांस से जुड़ी गंभीर बीमारी पैदा करने के लिए खुद में बड़े बदलाव (अनुकूलन या adaptation) किए हैं। ये वायरस हैं कोविड-19 (covid-19), सार्स (SARS) और मर्स (MERS)।

 

20वीं सदी में तीन वायरस मचा चुके हैं तबाही
ऑस्ट्रेलिया में एडिलेड यूनिवर्सिटी में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्चर और इस रिसर्च की सह लेखक यासिने सौइल्मी और रे टॉबलर का कहना है कि वायरस का इतिहास इंसानी सभ्यता से भी पुराना है। अकेले 20वीं सदी में इन्फ्लूएंजा वायरस के तीन प्रकार- स्पैनिश फ्लू (1918-20), एशियन फ्लू (1957-58) और हांगकांग फ्लू (1968-69) करोड़ों लोगों की जान ले चुके हैं। इन महामारियों के हिसाब से शरीर के ढलने के बाद कई जेनेटिक निशान बचे रह जाते हैं।

 

इंसान के डीएनए से खुलासा
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के पेपर लेखक और सिंथेटिक जीवविज्ञानी किरिल अलेक्जेंड्रोव ने बताया कि आधुनिक मानव के डीएनए के जरिये हजारों साल पहले से हुए डेवलपमेंट का पता लगाया जा सकता है। इसे अच्छे से समझने के लिए उन्होंने बताया कि पेड़ के तनों में मौजूद छल्लों से उसकी उम्र से लेकर उसमें मौजूद किसी बीमारी तक का पता लगाया जा सकता है। उसी तरह इंसान के डीएनए भी कई रहस्य सुलझा देते हैं। इस स्टडी में टीम ने 1000 जींस के डेटा का उपयोग किया। इसमें उन्होंने पाया कि एक समय मानव का डीएनए वैसे ही बदला था, जैसे कोविड से इन्फेक्ट होने पर बदलता है।

 

कोरोना वायरस की दवा खोजने में भी मिलेगी मदद
यासिने सौइल्मी का कहना है कि मौजूदा कोरोना वायरस के लिए दवा खोज रहे साइंटिस्ट इन 42 जीन्स को स्टडी करना चाहेंगे। इनसे यह पता चल सकेगा कि मौजूदा कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोध को कैसे तैयार किया जा सकता है।

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