मलेरिया मुक्त हुआ चीन, 70 साल की कोशिश के बाद पाई सफलता, यहां हर साल 3 करोड़ मामले सामने आते थे

मलेरिया से निपटने के लिए चीन ने 2012 में 1-3-7 की रणनीति लागू की। स्वास्थ्य कर्मियों के लिए टार्गेट तय किए किए। रणनीति के मुताबिक, 1 दिन के अंदर मलेरिया के मामले को रिपोर्ट करना अनिवार्य किया गया।

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malaria

दुनियाभर में हर साल मलेरिया से 4 लाख से अधिक मौतें होती हैं। 2019 में यह आंकड़ा 4,09,000 था। दुनिया की आधी आबादी को मच्छर से फैलने वाली इस बीमारी का खतरा है। दुनियाभर में हर 30 सेकंड में एक बच्चे की मौत मलेरिया से हो रही है। एक तरह से कहा जाए तो मलेरिया भी महामारी से कम नहीं है, लेकिन चीन ने कोरोना के साथ ही इस गंभीर बीमारी पर भी काबू पा लिया है। 4 साल में यहां मलेरिया का एक भी मामला नहीं मिला है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चीन के मलेरिया मुक्त होने की घोषणा की है। चीन ने देश को मलेरिया मुक्त करने के लिए 70 साल तक लगातार कोशिश की। चीन में 40 के दशक में हर साल मलेरिया के 3 करोड़ मामले सामने आते थे। मलेरिया मुक्त होने वाला चीन वेस्टर्न पेसिफिक रीजन का पहला और दुनिया का 40वां देश है जिसने मलेरिया पर काबू पाया है। 2021 में एल सल्वाडोर और अल्गेरिया, 2019 में अर्जेंटीना और 2018 में पराग्वे और उज्बेकिस्तान मलेरियामुक्त हुआ। दुनिया में 61 देश ऐसे हैं जहां मलेरिया के मामले नहीं हैं, हालांकि 21 देशों की आधिकारिक घोषणा डब्ल्यूएचओ ने नहीं की है।

वो चीनी रणनीति जिससे मलेरिया पर काबू पाया

मलेरिया से निपटने के लिए चीन ने 2012 में 1-3-7 की रणनीति लागू की। स्वास्थ्य कर्मियों के लिए टार्गेट तय किए किए। रणनीति के मुताबिक, 1 दिन के अंदर मलेरिया के मामले को रिपोर्ट करना अनिवार्य किया गया। 3 दिन के अंदर इस मामले की पड़ताल करना और इससे होने वाले खतरे का पता लगाना जरूरी किया गया। वहीं, 7 दिन के अंदर इस मामले को फैलने से रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने की बात कही गई थी।

मलेरिया के खिलाफ चीन ने कब-कब कदम उठाए

  • 1950: तेजी से फैल रहे मलेरिया के मामलों को रोकने के लिए मलेरिया की दवाओं पर काम करना शुरू किया। घरों में कीटनाशक का छिड़कने की रणनीति बनाई।
  • 1967: चीन ने मलेरिया का नया इलाज ढूंढने के लिए अभियान शुरू किया। नतीजा, यह हुआ कि 1970 में आर्टिमिसनिन दवा की खोज हुई जो अब तक की मलेरिया की सबसे असरदार दवा साबित हुई है।
  • 1980: चीन ऐसा पहला देश बना जिसने मलेरिया को रोकने के लिए लगातार बड़े स्तर पर जांच शुरू की और कीटनाशक से लैस मच्छरदानी का इस्तेमाल शुरू किया।
  • 1988: देशभर में 25 लाख मच्छरदानी बांटी गईं। मलेरिया की जांच और सावधानियों के कारण धीरे-धीरे इसके मामले कम होने शुरू हुए।
  • 1990: 90 के दशक के अंत तक मलेरिया के मामले घटकरा 1,17,00 रह गए। मौत के आंकड़े में 95 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

40वां बड़ा देश जिसने लक्ष्य पूरा किया

2019 में दुनियाभर में मलेरिया के 22 करोड़ मामले सामने आए थे। वर्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, दुनियाभर में इसके मामले घट रहे हैं खासकर अफ्रीकी देशों में, जहां सबसे ज्यादा इस बीमारी से मौतें होती थीं। मलेरिया से होने वाली 90 फीसदी मौतें अफ्रीका में हुई हैं, इसमें 2,65,000 से अधिक बच्चे थे। 2000 में मलेरिया के 7,36,000 मामले थे जो 2018 में घटकर 4,11,000 हो गए। वहीं, 2019 में मलेरिया के 4,09,000 मामले ही सामने आए।

भारत में मलेरिया से हर साल 2 लाख मौतें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में मलेरिया से हर साल 2,05,000 मौतें मलेरिया से होती हैं। मलेरिया के कारण 55,000 बच्चे जन्म के कुछ ही सालों के भीतर काल के मुंह में समा जाते हैं। 30 हजार बच्चे 5 से 14 साल के बीच मलेरिया से दम तोड़ते हैं। 15 से 69 साल की उम्र के 1,20,000 लोग भी इस बीमारी से बच नहीं पाते हैं। आम तौर पर मलेरिया संक्रमित मच्छर के काटने से होता है।

भारत में मामले घटे लेकिन खतरा कम नहीं
WHO की 2019 में जारी रिपोर्ट कहती है, भारत में मलेरिया के मामले घट रहे हैं। 2017 की तुलना में 2018 में यहां मलेरिया के मामले 28 फीसदी तक घटे हैं। भारत मलेरिया से प्रभावित दुनिया के 4 प्रमुख देशों की लिस्ट से बाहर आ गया है। एक्सपर्ट्स कहते हैं, मामले घटे हैं लेकिन लगातार बचाव करने और अलर्ट रहने की जरूरत है, क्योंकि इसकी वैक्सीन अभी तक आई नहीं है। इसका खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है।

 जहां गर्भवती महिलाएं और बच्चे वहां खतरा ज्यादा
WHO के मुताबिक, मलेरिया का संक्रमण ऐसे क्षेत्रों में अधिक फैलता है जहां गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे हैं। इनमें संक्रमण जल्दी फैलता है और हालत नाजुक होती है। नतीजा मौत के आंकड़े बढ़ते हैं।

हर पांचवा मरीज इलाज के बावजूद दम तोड़ रहा
वैज्ञानिकों के मुताबिक, मलेरिया से जूझने वाला हर पांचवा मरीज इलाज के बावजूद दम तोड़ रहा है। जो मरीज इलाज के बाद जान बचाने में कामयाब रहते हैं उनमें ब्रेन से जुड़े साइडइफेक्ट देखने को मिलते हैं। अलग-अलग उम्र के मरीजों में ब्रेन पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए पिछले 100 साल वैज्ञानिक जुटे हैं। इस बीमारी की वजह मलेरिया प्लाजमोडियम फेल्सिपेरम परजीवी है जो मच्छरों के काटने पर इंसान में पहुंचता है।

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