रंगभरी एकादशी 2023: रंगभरी एकादशी 2023 कब है, जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त और महत्व

रंगभरी एकादशी 2023: हिंदू धर्म में जिस एकादशी को भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए जाना जाता है, बाबा विश्वनाथ की नगरी में क्यों होती है धूम, जानिए मसाने में खेली जाने वाली रंगभरी एकादशी तिथि की पूजा का क्या महत्व और शुभ मुहूर्त।
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सनातन परंपरा में होली से कुछ दिन पहले पड़ने वाली आमलकी या रंगभरी एकादशी का बड़ा महत्व है। वैसे तो एकादशी भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए जानी जाती है, लेकिन फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि हरि (Lord Vishnu) और हर (Lord Shiva) दोनों की पूजा के लिए जानी जाती है। यह साल की एकमात्र एकादशी है जिसमें शिव की विशेष पूजा की जाती है। यही वजह है कि रंगभरी एकादशी के दिन बड़ी संख्या में भोले के भक्त बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी पहुंचते हैं और माता गौरी और महादेव के साथ होली खेलते हैं। आइए रंगभरी एकादशी के धार्मिक महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से जानते हैं।Read Also;-काम की खबर : ऐसे मिलेगा सरकार की उज्ज्वला योजना का लाभ, ये है इसकी प्रक्रिया....

 

रंगभरी एकादशी की पूजा का शुभ मुहूर्त कब 
भगवान शिव और विष्णु की कृपा बरसाने वाली रंगभरी एकादशी तिथि इस वर्ष 03 मार्च 2023 शुक्रवार को पड़ रही है। हालांकि पंचांग के अनुसार इस व्रत को करने वालों के लिए नियम 02 मार्च 2023 की शाम से ही शुरू हो जाएंगे। पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 02 मार्च 2023 को प्रात: 06:39 से प्रारंभ होकर अगले दिन 03 मार्च 2023 को प्रातः 09:11 बजे तक रहेगी।Read Also:-महंगाई का एक और झटका, गैस सिलेंडर हुआ 50 रुपये महंगा, व्यावसायिक (Commercial) सिलेंडर के दाम में 350 रुपये की बढ़ोतरी, जानिए आज से 3 बड़े बदलाव

 

महादेव मां गौरी के साथ नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं 
बाबा विश्वनाथ की नगरी में रंगभरी एकादशी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा होती है, जिसके बाद भगवान शिव माता पार्वती के साथ चांदी की चौकी पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन बाबा की चलती फिरती मूर्ति के दर्शन होते हैं। ऐसे में भोले के भक्त इस पावन तिथि पर अपने देवी-देवताओं के साथ जमकर होली खेलते हैं।

 

पौराणिक मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन महादेव माता पार्वती को अपने साथ गौना करवा कर काशी लाए थे। जिसके बाद उनके भक्तों ने उनका फूल, गुलाल आदि से स्वागत किया। तब से लेकर आज तक यह पावन परंपरा चली आ रही है। आज भी भगवान शिव का तिलक लगाया जाता है और वे विधि-विधान से गौरा की पूजा करवाकर उसे अपने साथ ले जाते हैं।

 

रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर रंगों के इस पावन पर्व को महादेव की नगरी काशी ही नहीं बल्कि कृष्ण की ब्रज मंडली में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।  इस पावन पर्व पर वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण को केसर से बने रंग से रंगा जाता है।

 

कैसे करें रंगभरी एकादशी की पूजा
रंगभरी एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें और स्नान और ध्यान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और इस शुभ व्रत का संकल्प करें। इसके बाद भगवान शिव को तांबे के लोटे में गंगाजल चढ़ाएं और फिर फल, फूल, शमी और बेलपत्र, अबीर-गुलाल, धूप-दीप, चंदन-इत्र आदि से उनकी पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। देवताओं को रुद्राक्ष की माला से।

 

(यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और लोक मान्यताओं पर आधारित है, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे आम जनहित को ध्यान में रखते हुए यहां प्रस्तुत किया गया है।)
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