दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करेंगे (LG) एलजी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-यह सुनिश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में न चला जाए
पीठ ने 18 जनवरी को केंद्र और दिल्ली की सरकार की ओर से क्रमशः सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी की पांच दिनों की दलील सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रखा था।
May 11, 2023, 12:42 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली में सिविल सेवकों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। CJI डीवाई चंद्रचूड़ फैसला सुना रहे थे। CJI ने कहा कि हम सभी जज इस बात पर सहमत हैं कि ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए।Read Also:-WhatsApp Video Call Scam: फोन उठाते ही लड़कियां करने लगती हैं अश्लील हरकतें, फंसें तो यहां कर सकते हैं शिकायत
हम जस्टिस भूषण के 2019 के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार का संयुक्त सचिव स्तर से ऊपर के अधिकारियों पर कोई अधिकार नहीं है। भले ही एनसीटीडी पूर्ण राज्य नहीं है, लेकिन इसके पास कानून बनाने का अधिकार है।
फैसला बड़ा
- केंद्र और राज्य दोनों के पास कानून बनाने की शक्ति है, लेकिन इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि केंद्र इतना दखल न दे कि वह राज्य सरकार का काम अपने हाथ में ले ले। इससे संघीय ढांचा प्रभावित होगा।
- अगर किसी अधिकारी को लगता है कि सरकार उसे नियंत्रित नहीं कर सकती तो उसकी जिम्मेदारी कम हो जाएगी और उसका काम प्रभावित होगा। उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर ही काम करना होगा।
Satyamev Jayate
— Raghav Chadha (@raghav_chadha) May 11, 2023
Delhi wins✌️
Hon'ble Supreme Court's landmark judgement sends a stern message that officers working with Govt of Delhi are meant to serve people of Delhi through the elected government & not unelected usurpers parachuted by Centre to stall governance, namely LG.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था
दरअसल दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार को लेकर खींचतान चल रही थी। दिल्ली सरकार का कहना है कि उपराज्यपाल को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए। और दिल्ली सरकार ने इसे लेकर एक याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के लिए दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और माना कि नौकरशाहों पर उसका नियंत्रण होना चाहिए। pic.twitter.com/aIBspkbgLn
— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 11, 2023
सुप्रीम कोर्ट की 5-जजों की संविधान पीठ- सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने फैसला सुनाया। इससे पहले कोर्ट ने 18 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला 6 मई 2022 को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को रेफर किया गया था।
केंद्र ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग की थी
जनवरी में सुनवाई के दौरान केंद्र ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर करने की मांग की थी। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए। इतिहास शायद हमें यह याद न दिलाए कि हमने देश की राजधानी को पूरी अराजकता के हवाले कर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में देरी आदर्श नहीं होनी चाहिए।
जनवरी में सुनवाई के दौरान केंद्र ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर करने की मांग की थी। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- मामला देश की राजधानी का है। इसलिए इसे बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए। इतिहास शायद हमें यह याद न दिलाए कि हमने देश की राजधानी को पूरी अराजकता के हवाले कर दिया था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में देरी आदर्श नहीं होनी चाहिए।
इस पर CJI ने कहा- जब सुनवाई पूरी होने ही वाली है तो ऐसी मांग कैसे की जा सकती है? केंद्र ने इस पर पहले बहस क्यों नहीं की? इसके बाद कोर्ट ने उनकी मांग ठुकरा दी।
दिल्ली सरकार ने किया था विरोध
केंद्र की मांग पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों के संबंध में अधिसूचना की बात है। यह मामले को टालने का तरीका है, जिसे केंद्र सरकार अपना रही है।
केंद्र की मांग पर आपत्ति जताते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों के संबंध में अधिसूचना की बात है। यह मामले को टालने का तरीका है, जिसे केंद्र सरकार अपना रही है।
जानिए पूरा विवाद
- आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की यह लड़ाई 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई थी। अगस्त 2016 में हाईकोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए राज्यपाल के पक्ष में फैसला सुनाया था।
- आप सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और जुलाई 2016 में आप सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि मुख्यमंत्री दिल्ली के कार्यकारी प्रमुख हैं। उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता है।
- इसके बाद सेवाओं यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मामलों को सुनवाई के लिए दो सदस्यीय नियमित पीठ के समक्ष भेजा गया। फैसले में दोनों जजों की राय अलग-अलग थी।
- इसके बाद मामला 3 सदस्यीय बेंच के पास गया। उन्होंने केंद्र की मांग पर पिछले साल जुलाई में इसे संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
- संविधान पीठ ने जनवरी में पांच दिनों तक मामले की सुनवाई की और 18 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। आज अदालत फैसला सुनाएगी।