क्या समलैंगिक विवाह को मिलेगी कानूनी मान्यता? केंद्र ने SC में दाखिल किया हलफनामा,

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है। 
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Allahabad high court
केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है।  न्यूज एजेंसी के मुताबिक, केंद्र ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर हलफनामा दाखिल किया। समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दायर याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। इससे पहले केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सरकार उसके पक्ष में नहीं है।Read Also:-H3N2 Virus : दिल्ली-एनसीआर में 40 फीसदी बढ़े खांसी-जुकाम के मरीज, जानिए H3N2 के लक्षण

 

केंद्र ने रविवार को कोर्ट में 56 पन्नों का हलफनामा दाखिल किया। इसमें कहा गया है कि समलैंगिक विवाह भारतीय परंपरा के अनुसार नहीं है। यह पति-पत्नी और उनसे होने वाले बच्चों की अवधारणा से मेल नहीं खाता। हलफनामे में समाज की वर्तमान स्थिति का भी जिक्र है। केंद्र ने कहा- मौजूदा समय में समाज में कई तरह की शादियां या रिश्ते अपनाए जा रहे हैं। इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है।

 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को लेकर दिल्ली समेत अलग-अलग हाईकोर्ट में दायर सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का फैसला किया था। छह जनवरी को कोर्ट ने इस मसले से जुड़ी सभी याचिकाएं अपने पास ट्रांसफर कर ली थीं। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की खंडपीठ सोमवार को मामले की सुनवाई करेगी।

 


योग्यता के आधार पर याचिका को खारिज करना उचित है
हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या को स्पष्ट किया है। इन फैसलों के आधार पर भी इस याचिका को खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि इसमें सुनवाई लायक कोई तथ्य नहीं है। योग्यता के आधार पर भी उसे बर्खास्त करना जायज है।

 

कानून में उल्लेख के अनुसार भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इसमें पति-पत्नी की परिभाषा जैविक रूप से दी गई है। तदनुसार, दोनों के पास कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति-पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जा सकता है?

 

समलैंगिक यौन संबंध को अपराधमुक्त किया गया
2018 में, जस्टिस चंद्रचूड़ उस उच्च न्यायालय की बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने सहमति से समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पिछले साल नवंबर में केंद्र को इस संबंध में नोटिस जारी किया था और सॉलिसिटर जनरल आर.के. वेंकटरमणी की मदद मांगी थी।

 

6 सितंबर, 2018 को, शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक फैसले में देश में एक निजी स्थान पर वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक या विषमलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। .

 

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली सभी याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित या दायर याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके लिए 13 मार्च तक लिस्टिंग करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
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