जब कानूनन एक सेक्स वर्कर को ना कहने का हक़ है तो पत्नी को क्यों नहीं? दिल्ली हाईकोर्ट का गंभीर सवाल

 दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई करते हुए बेहद गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जब सेक्स वर्कर को सेक्स से इंकार करने का अधिकार है तो पत्नी मना क्यों नहीं कर सकती।
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DELHI HIGH COURT
दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई करते हुए बेहद गंभीर टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जब सेक्स वर्कर को सेक्स से इंकार करने का अधिकार है तो पत्नी मना क्यों नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (बलात्कार) के तहत किए गए अपवाद को हटाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।ये भी पढ़े:- Corona havoc: उत्तर प्रदेश को पाबंदियों की गिरफ्त में ले रहा है कोरोना, सरकार ने 16 जिलों में बढ़ाई पाबंदियां

जस्टिस शकधर ने कहा कि रेप कानून सेक्स वर्कर के साथ जबरन संबंध बनाने के मामले में कोई छूट नहीं देता है. “हमारी अदालतों ने यहां तक ​​​​कहा है कि वे किसी भी स्तर पर ना नहीं कह सकते। तो क्या पत्नी को इससे निचले स्तर पर रखा जा सकता है?"

जस्टिस राज शेखर राव ने कहा कि एक विवाहित महिला को बिना सहमति के संभोग के खिलाफ कम सुरक्षा देने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि उन्हें विभिन्न तबकों से सुझाव मिले हैं। हालांकि, जस्टिस शंकर ने माना कि वैवाहिक संबंधों के मामले में सेक्स एक सेक्स वर्कर के समान नहीं है।

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अधिकांश तर्क कानून के बजाय आक्रोश पर थे और राव को कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा, "हम एक अदालत हैं। हमें न केवल पत्नियों के गुस्से और दुर्दशा को दिखाकर इसे कम करना चाहिए, बल्कि हमें कानूनी पहलुओं को भी देखना होगा।"

इस बीच, केंद्र ने गुरुवार को उच्च न्यायालय को बताया कि वह वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मुद्दे पर एक रचनात्मक दृष्टिकोण पर विचार कर रहा है। केंद्र ने राज्य सरकारों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सांसदों और अन्य से पूरे आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन पर सुझाव मांगे हैं।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने खुलासा किया कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिन में उनसे इस मामले का जिक्र किया। केंद्र सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा ने पीठ को बताया कि केंद्र आपराधिक कानून में संशोधन के लिए व्यापक काम कर रहा है, जिसमें आईपीसी की धारा 375 शामिल है। अदालत इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रखेगी।

dr vinit

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