Uttarakhand High Court : यह नियम गर्भवती महिलाओं को सरकारी नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं मानता, HC ने खारिज किया; जानिए क्या है पूरा मामला?
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने फैसले में उस नियम को खारिज कर दिया जो गर्भवती महिलाओं को सरकारी नौकरियों के लिए उपयुक्त मानने से रोकता था। सुनवाई के दौरान जस्टिस ने कहा, 'मातृत्व प्रकृति का वरदान और आशीर्वाद है। इसके चलते महिलाओं को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।
Feb 25, 2024, 22:31 IST
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लोकतंत्र में संविधान सर्वोच्च है. विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका इसके स्तंभ हैं। सरकार जहां संविधान का ख्याल रखती है वहीं विपक्ष समय-समय पर संविधान की दुहाई देता रहता है। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। बदलते समय की जरूरतों के मुताबिक संविधान में बदलाव भी किये गये। मोदी सरकार ने ही ब्रिटिश काल से चले आ रहे सैकड़ों नियम-कायदों को बदल दिया है। इसके बावजूद आज भी भारत में कुछ ऐसे नियम हैं जो संविधान से मेल नहीं खाते। ऐसे ही एक मामले में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए एक नियम को रद्द कर दिया। READ ALSO:-केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को दिया निर्देश, कक्षा 1 में दाखिले के लिए ये होनी चाहिए उम्र....
मातृत्व प्रकृति का वरदान है: Uttarakhand High Court
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उस नियम को रद्द कर दिया जो गर्भवती महिलाओं को सरकारी नौकरियों के लिए उपयुक्त मानने से रोकता था। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा, 'मातृत्व प्रकृति का वरदान और वरदान है, इस वजह से महिलाओं को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।' कोर्ट का यह फैसला मीशा उपाध्याय की उस याचिका के जवाब में आया है, जिसमें उन्हें गर्भवती होने के कारण बीडी पांडे अस्पताल, नैनीताल में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर तैनाती देने से इनकार कर दिया गया था।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उस नियम को रद्द कर दिया जो गर्भवती महिलाओं को सरकारी नौकरियों के लिए उपयुक्त मानने से रोकता था। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा, 'मातृत्व प्रकृति का वरदान और वरदान है, इस वजह से महिलाओं को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।' कोर्ट का यह फैसला मीशा उपाध्याय की उस याचिका के जवाब में आया है, जिसमें उन्हें गर्भवती होने के कारण बीडी पांडे अस्पताल, नैनीताल में नर्सिंग ऑफिसर के पद पर तैनाती देने से इनकार कर दिया गया था।
जानिए क्या था पूरा मामला
दरअसल महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की ओर से ज्वाइनिंग लेटर जारी होने के बावजूद अस्पताल प्रशासन ने फिटनेस सर्टिफिकेट का हवाला देकर उन्हें ज्वाइनिंग देने से इनकार कर दिया था। प्रबंधन ने उसे भारत सरकार के गजेटियर नियम के तहत शामिल होने के लिए अस्थायी रूप से अयोग्य पाया था, भले ही उसे गर्भवती होने के अलावा कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं थी।
यह निश्चित रूप से अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है: Uttarakhand High Court
न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकल पीठ ने शुक्रवार को अस्पताल प्रशासन को तुरंत यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता नर्सिंग अधिकारी मीशा, जो 13 सप्ताह की गर्भवती है, जल्द से जल्द अपनी नौकरी ज्वाइन कर ले। कोर्ट ने इस नियम को लेकर भारत के राजपत्र में दर्ज (Extraordinary) नियमों पर भी गहरी नाराजगी जताई। जिसमें 12 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली महिलाओं को 'अस्थायी रूप से अयोग्य' करार दिया गया है।
न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकल पीठ ने शुक्रवार को अस्पताल प्रशासन को तुरंत यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता नर्सिंग अधिकारी मीशा, जो 13 सप्ताह की गर्भवती है, जल्द से जल्द अपनी नौकरी ज्वाइन कर ले। कोर्ट ने इस नियम को लेकर भारत के राजपत्र में दर्ज (Extraordinary) नियमों पर भी गहरी नाराजगी जताई। जिसमें 12 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था वाली महिलाओं को 'अस्थायी रूप से अयोग्य' करार दिया गया है।
इस पर जोर देते हुए कोर्ट ने कहा, 'सिर्फ इस वजह से किसी महिला को रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता; जैसा कि राज्य द्वारा कहा गया है। इस सख्त नियम की वजह से इस काम में अब और देरी नहीं की जा सकती। यह निश्चित तौर पर अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है।
'मातृत्व अवकाश मौलिक अधिकार है'
हाई कोर्ट ने सरकारी नियम के तहत राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई को संवैधानिक अनुच्छेद का उल्लंघन बताया और इसे महिलाओं के खिलाफ बेहद संकीर्ण सोच वाला नियम माना। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा, 'मातृत्व अवकाश को संविधान के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। गर्भावस्था के आधार पर किसी को रोजगार से रोकना एक विरोधाभास है।
हाई कोर्ट ने सरकारी नियम के तहत राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई को संवैधानिक अनुच्छेद का उल्लंघन बताया और इसे महिलाओं के खिलाफ बेहद संकीर्ण सोच वाला नियम माना। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा, 'मातृत्व अवकाश को संविधान के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। गर्भावस्था के आधार पर किसी को रोजगार से रोकना एक विरोधाभास है।
जस्टिस पंकज पुरोहित ने कहा, 'मान लीजिए कि एक महिला नौकरी ज्वाइन करती है और ज्वाइनिंग के तुरंत बाद गर्भवती हो जाती है, फिर भी उसे मातृत्व अवकाश मिलता है, तो एक गर्भवती महिला नई नियुक्ति पर अपनी ड्यूटी क्यों नहीं ज्वाइन कर सकती?
हाई कोर्ट के फैसले का स्वागत है
कोर्ट के इस फैसले का समाज के हर वर्ग और महिला संगठनों ने स्वागत किया है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन सकता है। ताकि सरकारी नियमों के तहत भविष्य में किसी अन्य महिला के साथ उसकी गर्भावस्था की स्थिति के आधार पर भेदभाव न किया जा सके।
कोर्ट के इस फैसले का समाज के हर वर्ग और महिला संगठनों ने स्वागत किया है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन सकता है। ताकि सरकारी नियमों के तहत भविष्य में किसी अन्य महिला के साथ उसकी गर्भावस्था की स्थिति के आधार पर भेदभाव न किया जा सके।
