हिंदू विवाह की वैधता के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य नहीं, जानिए हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

हिंदू विवाह के दौरान कन्यादान की रस्म आमतौर पर हर हिंदू परिवार में निभाई जाती देखी जाती है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक मामले में अहम फैसला देते हुए कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक, हिंदू विवाह संपन्न होने के लिए कन्यादान की रस्म अनिवार्य नहीं है। इससे किसी भी केस के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 
 | 
LKO HIGH COURT
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक मामले में फैसला लेते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के मुताबिक हिंदू विवाह में कन्यादान की रस्म निभाना जरूरी नहीं है। एक्ट के मुताबिक अगर किसी शादी में कन्यादान की रस्म नहीं निभाई गई तो वह शादी अधूरी नहीं मानी जाएगी। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने 22 मार्च को एक मामले में फैसला सुनाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह में कन्यादान कोई आवश्यक रस्म नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि कोई युवक-युवती हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 के प्रावधानों के तहत विवाह करते हैं तो उनका विवाह वैध होगा, भले ही कन्यादान की रस्म न भी की गई हो। Read Also:-UP : मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की अपराधियों को चेतावनी, कहा-जो समाज के लिए खतरा बनेगा उसका ...'राम नाम सत्य', निश्चित, देखें VIDEO.....

 

यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर समीक्षा याचिका में दिया गया, जहां याचिकाकर्ता ने कन्यादान को हिंदू विवाह का अनिवार्य हिस्सा माना और इसके लिए कोर्ट में गवाह पेश करने को कहा। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस बात की जांच के लिए गवाहों को पेश किया जाना चाहिए कि विवाह में कन्यादान की रस्म पूरी की गई थी या नहीं, जिस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह की समाप्ति के लिए कन्यादान की रस्म आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कन्यादान हुआ है या नहीं, इसका किसी केस के फैसले पर असर नहीं पड़ेगा। 

 

हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 के अनुसार, किसी भी हिंदू विवाह को वैध होने के लिए उसे सप्तपदी के अनुसार संपन्न किया जाना चाहिए। हिंदू विवाह में, जैसे ही सप्तपदी अनुष्ठान पूरा हो जाता है, विवाह वैध और बाध्यकारी हो जाता है। एक हिंदू विवाह तभी संपन्न होता है जब युवक और युवती विवाह के दौरान अग्नि के सामने सात फेरे लेते हैं और वचनों के साथ एक-दूसरे के साथ बंध जाते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में विवाह संपन्न कराने के लिए कन्यादान की रस्म का कोई उल्लेख नहीं है।

 KINATIC

कन्यादान की रस्म क्यों निभाई जाती है?
आपने अपने आस-पास होने वाली लगभग हर हिंदू शादी में कन्यादान की रस्म देखी होगी। दुल्हन के माता-पिता भी इस रस्म को लेकर काफी भावुक होते हैं क्योंकि उन्हें अपनी बेटी यानी दुल्हन का कन्यादान करना होता है। इस रस्म के तहत पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में देता है और मंत्र पढ़ने के बाद वह दुल्हन को पूरी तरह से स्वीकार कर लेता है और उसकी सभी जिम्मेदारियां खुद पूरी करने का वादा करता है।
sonu

देश दुनिया के साथ ही अपने शहर की ताजा खबरें अब पाएं अपने WHATSAPP पर, क्लिक करें। Khabreelal के Facebookपेज से जुड़ें, Twitter पर फॉलो करें। इसके साथ ही आप खबरीलाल को Google News पर भी फॉलो कर अपडेट प्राप्त कर सकते है। हमारे Telegram चैनल को ज्वाइन कर भी आप खबरें अपने मोबाइल में प्राप्त कर सकते है।