Taliban History: आखिर कौन है तालिबान और किसके कारण अफगानिस्तान का यह हाल हुआ, पढ़ें

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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को पूरी दुनिया ने देखा है। मुस्लिम लोगों पर अत्याचार विशेषकर महिला, छोटी बच्चियों पर जुर्म के खिलाफ आवाज उठाने वाले इंटरनेशनल संगठन, कार्यकर्ता मूकदर्शक बने रहे। किसी ने भी तालिबान के विरोध में बोलने की जहमत नहीं की। सब कुछ खत्म होते देख राष्ट्रपति भी देश छोड़कर पड़ोसी मुल्क तजिकिस्तान पहुंच गए। राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि उनके सांसद, मुख्य सलाकहार सहित कई अधिकारी दूसरे देशों में शिफ्ट हो गए। अब अफगान के लोगों में भय है वह जल्द से जल्द तालिबान के जुर्म से बचने के लिए देश छोड़कर जाना चाहते हैं। इस डर के चलते काबुल ऐयरपोर्ट पर वतन छोड़कर जाने वालों की भारी भीड़ के चलते ऐयरपोर्ट को बंद करना पड़ा। हालांकि ऐयरपोर्ट अमेरिकी सेना के कब्जे में हैं। पूरी दुनिया में वर्तमान में यह सबसे बड़ी घटना है। आप तालिबान, अफगानिस्तान, कब्जा आदि शब्दों को सुन रहे होंगे। आखिर अफगानिस्तान में ऐसे कैसे हुआ और तालिबान कौन है जिसने यह कब्जा किया। 

 

इस सब के बारे में हम आज आपको विस्तार से जानकारी देंगे। आपको पता होगा जब 15 अगस्त(रविवार) को भारत अपनी आजादी का जश्न मना रहा था। वहीं, तालिबान काबुल पर कब्जा कर रहा था।  मशीनगनों, रॉकेट लॉन्चर से लैस तालिबान लड़ाके काबुल शहर को घेरते चले गए, तालिबानियों के लड़ाकों ने बगराम एयरबेस, बगराम जेल पर कब्जा कर लिया। हालात देख अफगानी सैन्य कमांडर ने आत्मसमर्पण कर दिया। कुछ ही घंटों में  तालिबान का कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बारादर दोहा से काबुल पहुंच गया। वह सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचा और सत्ता स्थानांतरण को लेकर अफगान राष्ट्रपति  अशरफ गनी से इस्तीफा लिखवा लिया। अगने कुछ घंटों में राष्ट्रपति के देश छोड़कर खबरें सामने आई। राजधानी काबुल की सड़कों पर भारी ट्रेफिक जाम देखा गया। क्योंकि काफी संख्या में लोग भी देश छोड़कर जाते दिखे। 

 

आखिर क्यों भाग रहे वहां के नागरिक ?

 

तालिबान के अफगानिस्तान के कब्जे पर पूरा विश्व पटल कुछ बोलने को तैयार नहीं है। अफगान के लोग जल्द से जल्द देश छोड़कर जाना चाहते हैं। क्योंकि 20 साल पहले भी अफगान में तालिबान का राज था। उस समय के लोगों ने तालिबान के अत्याचारों, प्रतिबंधों को देखा और सहन किया है। उस समय की स्थिति को देखकर वह यहां से जाना चाहते हैं। अफगान के उपराष्ट्पति ने भी ट्विटर पर लिखा कि तालिबान के साथ काम करना असंभव है। उन्होंने लिखा कि तालिबान के राज में काम करने से बहतर मरजाना ही है। इसके अलावा इस समय सोशल साइट पर लोग अफगान के बारे में चर्चा करते दिख रहे हैं। 

 

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 तालिबान कौन? इसे ताकत कहां से मिली जो देश कब्जा लिया 

 

वास्तव में देखा जाए तो अफगानिस्तान के यह हालात अमेरिका- रूस के बीच कोल्ड वार के कारण हुए।  उस वक्त रूस के समर्थन से चल रहे जहीर शाह के शासन वाला अफगानिस्तान आधुनिकता की ओर बढ़ रहा था। यह अमेरिका को बर्दाश्त नहीं थी। इस दौरान ही  अफगानिस्तान में अंतरर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के बाद रूस ने अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया। तभी उत्तरी पाकिस्तान से तालिबान की शुरूआत देखी गई। बताया जाता है कि शुरुआती दौर में अफगानिस्तान में रूसी प्रभाव खत्म करने के लिए तालिबान के पीछे अमेरिकी ने समर्थन दिया। लेकिन 9/11 के हमले ने अमेरिका को कट्टर विचारधार की आंच महसूस कराई और वो खुद इसके खिलाफ जंग में उतर गया। वैसे पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है 'छात्र' होता है। ऐसा छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों। कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी। तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया था। शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद था। बताया जाता है कि शुरू में तो लोगों ने सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी। बात में तालिबान इतना ताकतवर बन गया कि उसका खत्म होना असंभव सा हो गया। हालांकि  9/11 के हमले के बाद अमेरिकी और नाटो देशों की सेनाओं ने तालिबान के शासन से मुक्ति दिलाई।

 

कौन हैं तालिबान के मुख्य लीडर ?

 

इसके अधिकांश लड़ाके और कमांडर पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सीमा इलाकों में स्थित कट्टर धार्मिक संगठनों में पढ़े लोग, मौलवी और कबाइली गुटों के चीफ हैं। 2016 के बाद मौलवी हिब्तुल्लाह अखुंजादा तालिबान का चीफ है। वह तालिबान के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों का सुप्रीम कमांडर भी है। वहीं, हिब्तुल्लाह अखुंजादा कंधार में एक मदरसा चलाता था और तालिबान की जंगी कार्रवाईयों के हक में फतवे जारी करता था। 2001 से पहले अफगानिस्तान में कायम तालिबान की हुकूमत के दौरान वह अदालतों का प्रमुख भी रहा था वहीं, तालिबान का कमांडर मुल्ला अब्दुल गनी बारादर दूसरे स्थान पर आता है।

 

पाकिस्तान की मदद ने तालिबान को जिंदा रखा?

 

जहां भी गलत कार्यों का जिक्र होता है वहां पाकिस्तान का नाम जरूर आता है। बताया जाता है। अमेरिकी सेना ने अफगान से तालिबान का राज खत्म कर दिया। परंतु उत्तरी पाकिस्तान से सटे भागों में पाकिस्तान और आईएसआई ने तालिबान को जिंदा रखने का काम रखा। उन्हें हथियार से लेकर खाना व अन्य चीजें भी वह लंबे समय तक देता रहा।  2012 में नाटो बेस पर हमले के बाद से फिर तालिबान का उभार शुरू हुआ। 2015 में तालिबान ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण कुंडूज के इलाके पर कब्जा कर फिर से वापसी के संकेत दे दिए। अब जब 2021 में चुनाव जीतने के बाद जो बिडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्हें 4 अप्रैल को ऐलान कर दिया कि अफगानिस्तान से वह अमेरिकी सेना को वापस बुला रहे हैं और सिंतबर 2021 तक ही उनकी सेना पूरी तरह वहां से आ जाएगी। फिर क्या था यह ऐलान सुनने के बाद तालिबान ने फिर से अपनी कमर कस ली। पिछले तीन महीनों में 90 हजार लड़ाकों वाले तालिबान ने छोटे-छोटे शहर, प्रांतों को कब्जाना शुरू कर दिया। तालिबान द्वारा कब्जे की बात इंटरनेशनल स्तर पर खूब उड़ी परंतु किसी ने भी तालिबान के इस कृत्य पर कुछ नहीं बोला। अब 15 अगस्त को तालिबान ने फिर से अफगानिस्तान को कब्जे में ले लिया। वहीं, अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी, उनके प्रमुख सहयोगियों, तालिबान से लड़ रहे प्रमुख विरोधी कमांडर अब्दुल रशीद दोस्तम और कई वॉरलॉर्ड्स को ताजिकिस्तान और ईरान में शरण लेनी पड़ी।

 

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आखिर लोगों को तालिबान से क्या डर?

 

20 साल बाद सत्ता में लौटे तालिबान को लेकर लोगों में खौफ क्यों है। इसे समझने के लिए हमें करीब 23 साल पीछे जाना होगा। जानकारी के अनुसार 1998 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर देश पर शासन शुरू किया तो कई फरमान जारी किए। पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया गया और न मानने वालों को सरेआम सजा देना शुरू किया। विरोधी लोगों को चौराहों पर लटकाया जाने लगा। हत्या और यौन अपराधों से जुड़े मामलों में आरोपियों की सड़क पर हत्या की जाने लगी। चोरी करने के आरोप में पकड़े गए लोगों के शरीर के अंग काटना, लोगों को कोड़े मारने जैसे नजारे सड़कों पर आम हो गए। इस के अलावा मर्दों को लंबी दाढ़ी रखना और महिलाओं को बुर्का पहनने और पूरा शरीर ढंक कर निकलना अनिवार्य कर दिया गया। घरों की खिड़कियों के शीशे काले रंग से रंगवा दिए गए। टीवी, संगीत और सिनेमा बैन कर दिए गए। 10 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई। बामियान में बुद्ध की ऐतिहासिक मूर्ति को तोड़कर तालिबान ने धार्मिक कट्टरता भी दुनिया को दिखाई।

 

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अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनवाई गई संसद भवन और सलमा बांध का फाइल फोटो।

 

भारत को सबसे बड़ा नुकसान

 

तालिबान के कब्जे से सबसे ज्यादा नुक्सान भारत को है। क्योंकि भारत ने पिछले 20 साल में अरबों डॉलर अफगानिस्तान के विकास में निवेश कर चुका था। स्कूल, अस्पताल, बिजली-गैस संयंत्रों समेत कई बड़ी परियोजनाओं पर भारत ने काफी खर्च किया लेकिन अब तालिबान शासन आने से ये सब खत्म समझा जा रहा है। 

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