सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कहा- यह राज्य तय करें Reservation कैसे मिले
सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST के लिए आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आवधिक समीक्षा के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST के लिए आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आवधिक समीक्षा के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित करनी चाहिए आरक्षण देने के फैसले को फिर से नहीं खोला जाएगा, क्योंकि ये राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं।कोर्ट ने कहा कि समय समय पर सरकार को यह रिव्यू करना चाहिए कि प्रमोशन में आरक्षण के दौरान दलितों को उचित प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं।
जस्टिस नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, पहले के फैसलों में तय आरक्षण के प्रावधान और पैमानों को हल्का नहीं किया जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने कहा, केंद्र और राज्य अपनी अपनी सेवाओं में एससी एसटी के लिए आरक्षण के अनुपात में समुचित प्रतिनिधित्व को लेकर तय समय अवधि पर रिव्यू जरूर करेंगे। प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है।
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों- कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इससे पहले केंद्र ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह जीवन की सच्चाई है कि आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है, लेकिन अब समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को रिक्तियों को भरने के लिए एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए कुछ ठोस आधार देने चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह SC और ST को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं।