सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 'नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं' वाले फैसले पर लगाई रोक
जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह की बेंच ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को 'असंवेदनशील और अमानवीय' बताया, केंद्र और यूपी सरकार से मांगा जवाब
Mar 26, 2025, 11:52 IST
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है।Read also:-अप्रैल में बैंकों में रहेगी 15 दिन की छुट्टी, RBI ने जारी की जानकारी, जानें कब और कहां रहेंगे बैंक बंद
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजे मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश में की गई टिप्पणियों को "पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय नजरिया" बताया। बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम तब उठाया जब कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने हाईकोर्ट के इस फैसले का कड़ा विरोध किया। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले के विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला:
सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने एक फैसले सुनाते हुए कहा था कि किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या 'अटेम्प्ट टु रेप' (बलात्कार का प्रयास) के दायरे में नहीं आता है। जस्टिस मिश्रा ने इस मामले में दो आरोपियों पर लगी बलात्कार की धाराओं को बदल दिया था, जबकि तीन अन्य आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन को स्वीकार कर लिया था।
तीन साल पुराना मामला:
यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज का है। 12 जनवरी, 2022 को एक महिला ने कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। महिला का आरोप था कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ अपनी देवरानी के घर गई थी। शाम को जब वे घर लौट रही थीं, तो रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिले।
शिकायत के अनुसार, पवन ने लड़की को बाइक पर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर विश्वास करके बेटी को बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।
लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर उन्हें धमकाया और फरार हो गए।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपियों पर से ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटा दिया था और उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया था।
पुलिस की निष्क्रियता और कोर्ट का हस्तक्षेप:
पीड़ित बच्ची की मां जब आरोपी पवन के घर शिकायत करने गई, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गाली-गलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में एफआईआर दर्ज कराने गई, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद महिला ने अदालत का रुख किया।
21 मार्च 2022 को कोर्ट ने महिला के आवेदन को शिकायत के रूप में मानते हुए मामले की सुनवाई शुरू की। शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज किए गए। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 354 (महिला पर हमला), 354बी (महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत मामला दर्ज किया गया। वहीं, आरोपी अशोक पर आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया।
आरोपियों ने समन आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जिस पर जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने विवादित फैसला सुनाया था।
सुप्रीम कोर्ट का पूर्व का फैसला:
गौरतलब है कि 19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह के एक अन्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के फैसले को पलट दिया था। उस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को बिना त्वचा से त्वचा के संपर्क के टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को रद्द करते हुए कहा था कि यौन इरादे से बच्चे के यौन अंगों को छूना या शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य POCSO एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा, जिसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।