एम्स के पूर्व डायरेक्टर्स समेत 45 विशेषज्ञों का दावा- स्वदेशी वैक्सीन सुरक्षित, देश के वैज्ञानिकों पर भरोसा करें

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कोरोनावायरस के खिलाफ शनिवार को वैक्सीनेशन शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के इस सबसे बड़े अभियान की शुरुआत की। प्रधानमंत्री के साथ इस दौरान वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये भारत के सभी राज्‍यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों के 3006 टीकाकरण केन्‍द्र आपस में जुड़े। प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए "दवाई भी, कड़ाई भी का नारा देते हुए कहा कि टीके की दो खुराक बेहद जरूरी है। साथ ही असावधानी बरतने वालों को आगाह करते हुए उन्होंने अपील की कि हमें अपने व्यवहार में फिलहाल बदलाव नहीं करना है। मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहना है। Read Also : Corona Vaccine : देश में 3,006 साइट पर वैक्सीनेशन शुरू, Delhi AIIMS निदेशक रणदीप गुलेरिया ने टीका लगवाया

जिन दो वैक्सीन का इस्तेमाल होने वाला है, उनकी इफेक्टिवनेस पर भी सवाल उठ रहे हैं। इन्हीं संदेहों का जवाब एम्स के पूर्व डायरेक्टर्स समेत 45 विशेषज्ञों के ग्रुप ने दिया है। इस ग्रुप का दावा है कि भारत में बनी वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित हैं। ग्रुप ने यह भी कहा कि जो लोग इनकी आलोचना कर रहे हैं, वे भारतीय वैज्ञानिक बिरादरी की विश्वसनीयता पर संकट खड़ा कर रहे हैं।

क्यों हो रही है भारतीय वैक्सीन की आलोचना?

  • कोवीशील्ड और कोवैक्सिन को 3 जनवरी को केंद्र ने इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया है। भारत में इसे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बना रही है। कोवैक्सिन को हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक बना रही है। इसे उसने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी (NIV) के साथ मिलकर विकसित किया है।
  • कुछ वैक्सीन विशेषज्ञों और राजनेताओं ने कोवैक्सिन को इमरजेंसी अप्रूवल देने का विरोध किया था। कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए पूरे देश में 25 साइट्स पर 25,800 वॉलंटियर्स को एनरोल किया गया है। पर इसकी एफिकेसी के नतीजे सामने नहीं आए हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि वैक्सीन को अप्रूवल नहीं दिया जाना चाहिए था।

इन आलोचनाओं पर क्या है वैज्ञानिकों के समूह का दावा?

  • 45 मेडिकल प्रोफेशनल्स और साइंटिस्ट के साइन के साथ बयान जारी हुआ है। इसमें कहा गया है कि कुछ लोग गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं। यह राजनीति और स्वार्थ से प्रेरित हैं। इनकी आलोचना की वजह से दुनियाभर में अपनी काबिलियत का डंका बजाने वाली भारतीय वैज्ञानिक बिरादरी पर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो रहा है।
  • इस बयान पर साइन करने वालों में एम्स के पूर्व डायरेक्टर टीडी डोगरा और एमसी मिश्रा के साथ ही CSIR-IICT हैदराबाद के पूर्व चीफ साइंटिस्ट ए. गंगाग्नी राव और मणिपाल एजुकेशन एंड मेडिकल ग्रुप के बोर्ड चेयरमैन डॉ. रंजन पई भी शामिल हैं। उनका कहना है कि यह वैक्सीन मानवता के लिए गिफ्ट है।
  • स्टेटमेंट कहता है कि आरोप लगाने वालों को पता होना चाहिए कि भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना जीवन खपा दिया और देश को सबसे बड़ा वैक्सीन सप्लायर बनाया है। आज भारत से 188 देशों में वैक्सीन जाती है। 2019 में भारतीय वैक्सीन मार्केट 94 अरब रुपए का था। भविष्य में यह और भी बढ़ सकता है।

इस पर सरकार का क्या कहना है?

  • सरकार और उसके अधिकारी बार-बार कह रहे हैं कि उन्होंने अब तक हुए ट्रायल्स के डेटा की अच्छी तरह पड़ताल करने के बाद ही दोनों वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दिया है। इस वजह से घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

क्या है कोवैक्सिन की सक्सेस को लेकर दावे?

  • स्वदेशी वैक्सीन का बचाव करने वालों का दावा है कि कोवैक्सिन को वेरो सेल प्लेटफॉर्म पर बनाया है। इस टेक्नोलॉजी का सेफ्टी और एफिकेसी के संबंध में पूरी दुनिया में जबरदस्त ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।
  • कोवैक्सिन के फेज-1 और फेज-2 क्लीनिकल ट्रायल्स 800 वॉलंटियर्स पर किए गए। नतीजे बताते हैं कि वैक्सीन सेफ और इफेक्टिव है। यह मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स देती है। 25,800 वॉलंटियर्स ने फेज-3 स्टडी के लिए एनरोल किया। भले ही एफिकेसी डेटा फिलहाल उपलब्ध न हो, लेकिन यह सेफ्टी पैरामीटर्स पर खरी उतरी है।
  • विशेषज्ञों का दावा है कि इस वैक्सीन में पूरे वायरस को टारगेट किया गया है। अगर वायरस में बदलाव होता है और इसके नए-नए रूप सामने आते हैं तब भी कोवैक्सिन उसके खिलाफ कारगर होगी। यह मल्टीपल एंटीजन के खिलाफ सक्सेसफुल रहेगी।

क्या कोवीशील्ड के डेटा पर पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं?

  • हां। कोवीशील्ड को लेकर भारत से और डेटा की जरूरत है। इसके बाद भी दुनियाभर में इसके फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स हुए हैं और इसने सेफ्टी, इम्युनोजेनेसिटी और एफिकेसी दिखाई है। इसकी ओवरऑल इफेक्टिवनेस 70.42% रही है।
  • ब्रिटेन में इस वैक्सीन को पहले अप्रूवल दिया गया और उसके बाद भारतीय ड्रग रेगुलेटर ने इसे मंजूरी दी। इसमें चिम्पांजी में पाए जाने वाले एडेनोवायरस वेक्टर का इस्तेमाल किया गया है। इस वजह से इसे चिम्पांजी वेक्टर वैक्सीन भी कहते हैं।

इन दोनों वैक्सीन पर स्वतंत्र विशेषज्ञों की क्या राय है?

  • इंडियन एकेडमी ऑफ पब्लिक हेल्थ और इंडियन अलायंस ऑफ पेशेंट्स ग्रुप के चेयरपर्सन, यूनिसेफ के पूर्व सीनियर एडवायजर डॉ. संजीव कुमार का कहना है कि सरकार ने बहुत अच्छी योजना बनाई है। सिस्टम को परखने के लिए तीन ड्राई रन भी किए हैं। मुझे लगता है कि वैक्सीनेशन भारत में कोरोना को फैलने से रोकने में मददगार साबित होगा।
  • डॉ. संजीव कुमार आईआईएचएमआर के डायरेक्टर भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने चेचक के साथ ही पोलियो के खिलाफ भी प्रभावी अभियान चलाया और इन दोनों ही बीमारियों को रोकने में सफलता हासिल की। हमें पूरा भरोसा है कि हमारा सिस्टम कोरोना को रोकने में भी कारगर रहेगा।
  • गुरुग्राम में फोर्टिस हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ. टीएस क्लेर ने कहा कि इस बात की खुशी है कि हमारे पास कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि वैक्सीन ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद है। इसके बाद भी मैं सरकार से चाहूंगा कि वह वैक्सीनेट किए गए प्रत्येक व्यक्ति की सख्ती से मॉनिटरिंग करें। ताकि अगर भविष्य में कोई साइड इफेक्ट आता है तो तत्काल कार्रवाई की जा सके।

क्या सरकार भी वैक्सीन का डेटा रिकॉर्ड करेगी?

  • हां। स्वास्थ्य मंत्रालय ने तय किया है कि वह विभिन्न पैरामीटर्स पर कोवीशील्ड और कोवैक्सिन की तुलना करने वाली है। इसके लिए वैक्सीन प्लेटफॉर्म, विशेषज्ञता, डोज, कोल्ड चेन की जरूरतों और टीकाकरण के बाद साइड इफेक्ट्स पर नजर रखी जाएगी।

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