कोविड से लेकर बर्ड फ्लू तक...कैसे इंसानों में तेजी से फैल रही हैं जानवरों की बीमारियां? जानिए ऐसा क्यों हो रहा है?

देश में पिछले कुछ समय में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के मामलों में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। इस रिपोर्ट में जानिए ऐसा क्यों हो रहा है, कौन-कौन सी हैं ये बीमारियाँ और इनसे बचने के क्या-क्या उपाय हैं।
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कोविड-19 महामारी के बाद से ही दुनिया के अलग-अलग कोनों में संक्रमण के अलग-अलग मामलों को लेकर हाई अलर्ट जारी किए गए हैं। बर्ड फ्लू सबसे पहले अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और उप-अंटार्कटिक द्वीपों में देखा गया था। इसके बाद साल 2021 में H5N1 के कई वेरिएंट सामने आए, जिसमें एक स्ट्रेन H9N2 भारत के पश्चिम बंगाल में भी पाया गया। इसके अलावा साल 2022 में मंकीपॉक्स फैलना शुरू हुआ, जिसे अब एम्पॉक्स के नाम से जाना जाता है और इस समय यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गया है। गौरतलब है कि ये वायरस पहले जानवरों में पाए जाते थे लेकिन अब ये इंसानों तक भी पहुंचने लगे हैं, जिससे वैज्ञानिक चिंतित हैं। Read also:-मंकीपॉक्स को लेकर भारत में कोरोना जैसा अलर्ट! केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए जारी की गाइडलाइन

 

जानवरों से इंसानों में वायरस के संक्रमण को जूनोसिस कहा जाता है और इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है। ये संक्रमण एक रोगजनक के कारण होता है जो बैक्टीरिया, कवक या परजीवी हो सकता है जो संक्रमित जानवरों के साथ निकट संपर्क के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है। सबसे आम जूनोसिस में इबोला और साल्मोनेलोसिस शामिल हैं, जिनका कई बार प्रकोप हुआ है। एचआईवी जैसी कुछ बीमारियाँ जूनोसिस के रूप में शुरू हुईं, लेकिन बाद में ऐसे स्ट्रेन में बदल गईं जो केवल मनुष्यों को प्रभावित करते हैं। ऐसी जूनोटिक बीमारियाँ अब सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय बनती जा रही हैं। मनुष्यों और जानवरों के बीच बढ़ते संपर्क ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।

जूनोटिक बीमारियाँ कहाँ से शुरू होती हैं?
विशेषज्ञों के अनुसार, जूनोटिक बीमारियाँ कई तरह के जानवरों से उत्पन्न हो सकती हैं। इन जानवरों में चमगादड़, पक्षी और कुछ स्तनधारी शामिल हैं। पिछले 20-25 सालों में देखा गया है कि मनुष्यों में कई गंभीर संक्रमण जानवरों की वजह से होने लगे हैं। ये रोगाणु अपने प्राकृतिक मेजबान को भले ही ज़्यादा नुकसान न पहुँचाएँ, लेकिन मनुष्यों के लिए स्थिति को गंभीर बना सकते हैं। इसका एक उदाहरण कोरोनावायरस महामारी है। 

 

चमगादड़ों से उत्पन्न इस बीमारी ने एक समय पूरी दुनिया की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दिया था। इस महामारी का असर पूरी दुनिया में देखने को मिला। इसके अलावा तेज़ी से फैलने वाली एम्पॉक्स बीमारी पहले बंदरों में होती थी, लेकिन अब मनुष्य भी इसका शिकार हो रहे हैं।

ये मामले तेज़ी से क्यों बढ़ रहे हैं?
जूनोटिक बीमारियाँ कोई नई बात नहीं हैं। ये सदियों से मौजूद हैं। लेकिन अब जानवरों और इंसानों के बीच बढ़ते संपर्क ने इन बीमारियों का दायरा बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों के विनाश, औद्योगिकीकरण और इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते संपर्क ने जानवरों से इंसानों तक रोगाणुओं के पहुंचने की संभावना बढ़ा दी है। 

 


जैसे-जैसे इंसानों की आबादी जानवरों के घर यानी जंगलों तक पहुंची, उनके जूनोटिक बीमारियों से प्रभावित होने की संभावना भी उसी गति से बढ़ी है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन ने भी जूनोटिक बीमारियों के प्रसार को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसके अलावा, प्राकृतिक आवास का विनाश, मौसम के मिजाज में बदलाव और जानवरों की कई प्रजातियों के विलुप्त होने ने स्थिति को और खराब करने का काम किया है।

 

कौन सी बीमारियां जूनोटिक हैं?
एक और बात ध्यान में रखने वाली है कि जानवरों से फैलने वाली हर बीमारी जूनोटिक नहीं होती। उदाहरण के लिए, मलेरिया और डेंगू मच्छरों के ज़रिए इंसानों में फैलते हैं, लेकिन इन्हें जूनोटिक बीमारियों के बजाय वेक्टर जनित बीमारियां कहा जाता है। 

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जूनोटिक बीमारियों को 2 मानदंडों को पूरा करना होता है। पहला, उनकी उत्पत्ति जानवरों से हुई हो और दूसरा, एक बार जब कोई इंसान जूनोटिक बीमारी से संक्रमित हो जाता है, तो बीमारी एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलनी चाहिए। SARS-CoV-2, जो COVID-19 का कारण बनता है, एक जूनोटिक बीमारी का उदाहरण है जो इन दोनों मानदंडों को पूरा करता है। जैव विविधता का नुकसान और पर्यावरण को नुकसान ने भी जूनोटिक बीमारियों के स्तर को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

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खुद को कैसे सुरक्षित रखें? जानिए टिप्स
जूनोटिक बीमारियां वैश्विक मुद्दा बन गई हैं, लेकिन लोग खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, साफ-सफाई, नियमित रूप से हाथ धोना और आसपास की सफाई रखना जरूरी है। यह सलाह सुनने में आसान लग सकती है, लेकिन कई लोगों के लिए इसका नियमित पालन करना मुश्किल है। इसके अलावा, लोगों को जानवरों के साथ बातचीत के दौरान सतर्क रहना चाहिए। 

 

जूनोटिक बीमारियों को दूर रखने में एक स्वस्थ जीवनशैली भी अहम भूमिका निभा सकती है। जूनोटिक बीमारियों के प्रकोप की पहचान करने में निगरानी बहुत उपयोगी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन बीमारियों से बचने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को भी मजबूत और उत्तरदायी बनाना होगा।
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