अब डिफाल्टर को भी मिल सकेगा लोन, RBI के फैसले का फायदा आम आदमी को मिलेगा। 

दरअसल, कोविड के दौरान डिफॉल्टर होने से बचने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोरेटोरियम की घोषणा की थी। उसके बाद भी देश के लाखों लोग बैंकों के डिफाल्टर हो गए, जो पैसे की कमी के कारण न तो अपने क्रेडिट कार्ड का भुगतान कर सके और न ही अपना व्यक्तिगत ऋण चुका सके। इस वजह से उनका क्रेडिट स्कोर भी खराब हो गया।
 
अगर आप किसी न किसी वजह से बैंक लोन डिफॉल्ट कर चुके हैं और विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में आ गए हैं तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से बड़ी राहत भरी खबर है। अब बैंक ऐसे डिफाल्टरों से बातचीत कर निपटारा करेंगे और 12 महीने का समय देकर उनका पैसा निकाल लेंगे। उसके बाद यदि वह व्यक्ति ऋण लेना चाहता है तो वह बंदोबस्ती की राशि जमा कर दुबारा ऋण प्राप्त कर लेगा। दरअसल, कोविड के दौरान डिफॉल्टर होने से बचने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मोरेटोरियम की घोषणा की थी।READ ALSO:-UP : फोन पर किया नाबालिग का ब्रेनवॉश, फिर अपहरण कर और बारी-बारी से किया रेप; अपहृत लड़की मिली उत्तराखंड से; 54 साल के शाह आलम ने बरेली से किया अगवा

 

उसके बाद भी देश के लाखों लोग बैंकों के डिफाल्टर हो गए, जो पैसे की कमी के कारण न तो अपने क्रेडिट कार्ड का भुगतान कर सके और न ही अपना व्यक्तिगत ऋण चुका सके। इस वजह से उनका क्रेडिट स्कोर भी खराब हो गया। जिसकी वजह से उन्हें सेटलमेंट के बाद भी मुश्किल से लोन मिल पा रहा था। अब आरबीआई के इस फैसले से आम डिफॉल्टरों को काफी राहत मिलेगी. आइए आपको भी बताते हैं कि आरबीआई ने किस तरह आम लोगों को राहत देने की कोशिश की है।

 

विलफुल डिफाल्टर को लेकर आरबीआई के नए नियम
भारतीय रिजर्व बैंक ने कोविड के बाद विलफुल डिफॉल्टर्स की संख्या में लगातार इजाफा देखा है। बैंकों का एनपीए भी बहुत बढ़ गया। इस दौरान सरकार ने कॉरपोरेट राइट ऑफ भी किया। जिसकी काफी आलोचना भी हुई थी। ऐसे में आरबीआई के सामने कड़ी चुनौती थी कि ऐसे डिफॉल्टरों की संख्या कैसे कम की जाए? आरबीआई ने अब इस गुत्थी को एक सिरे से सुलझा दिया है। सिर्फ शब्द समाधान से काम नहीं चलेगा, कहा जा सकता है कि लोगों को बड़ी राहत मिली है। आरबीआई ने बैंकों से ऐसे डिफॉल्टर्स के साथ समझौता करने और 12 महीने का कूलिंग पीरियड देकर अपना पैसा निकालने को कहा है। यह पहली ऐसी बात है जिससे देश में छोटे डिफॉल्टरों की संख्या घटेगी।

 

अब दूसरी समस्या यह है कि सेटलमेंट तो हो ही रहा है, बैंक और डिफॉल्टर आपस में सेटलमेंट कर लेते हैं और उसके बाद डिफॉल्टर कर्ज मुक्त हो जाता है, लेकिन अगर उसे दोबारा लोन की जरूरत हो तो उसे आसानी से लोन नहीं मिल पाता है। उस समय बैंकों की राय होती है कि CIBIL में सेटलमेंट दिख रहा है। भले ही सिबिल स्कोर 800 तक पहुंच जाए, बैंकों की नजर में वह नकारात्मक प्रोफाइल वाला व्यक्ति है। आरबीआई इस गुत्थी को सुलझाने में सफल रहा है। यानी अगर डिफॉल्टर 12 महीने में पूरा सेटलमेंट कर लेता है तो उसके बाद वह दोबारा कर्ज पाने का हकदार हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि सेटलमेंट पूरा होने के बाद कर्जदारों को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा या फिर बैंक संकोच नहीं कर पाएंगे।

 

क्या CIBIL में लोन सेटलमेंट की मुहर नहीं लगेगी?
एक और सवाल है, जिसका सामना लाखों लोग कोविड काल में कर रहे हैं, वह यह है कि अगर डिफॉल्टर पूरे सेटल पैसे को आरबीआई की नई सेटलमेंट प्रक्रिया में चुका देता है, तो इस सेटलमेंट की ठप्पा सिबिल में दिखाई देगा या नहीं? क्योंकि अब बैंक इस बात का सहारा लेकर नया कर्ज देने देने को तैयार नहीं हो रहा है। तो क्या आरबीआई की इस प्रक्रिया के जरिए सेटलमेंट के बाद इस ठप्पे को हटाया जाएगा या नहीं इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं मिली है।