जिंदा रहते अपनी तेरहवीं की, अपने ही हाथों से लोगों को मृत्युभोज करवाया...फिर 24 घंटे के अंदर हुई मौत, पोस्टमॉर्टम ने सब को..... 

 गांव में तेरहवीं थी। सैकड़ों लोगों जुटे थे। उस आदमी ने अपना ही मृत्युभोज में करीब 700 लोगों को खाना खिलाया और फिर अगले 24 घंटे में हो गई मौत। 
 
वह गाँव में तेरहवीं थी। और सैकड़ों लोग जमा हुए थे। आमतौर पर ऐसे मौकों पर लोगों के मन में सम्मान और चेहरे पर दुख के भाव होते हैं, लेकिन यहां तेरहवीं के भोज में आए सभी लोगों के मन में उत्सुकता थी। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस व्यक्ति की तेरहवीं की जा रही थी। वह व्यक्ति लोगों को खुद अपने हाथों से खाना खिला रहा था।  व्यक्ति ने करीब 700 लोगों को खाना खिलाया और उनका स्वागत भी किया।  इसके बाद जो हुआ उसे देखकर हर कोई हैरान रह गया। READ ALSO:-मेरठ : मवाना में पुल‍िस के साथ मुठभेड़ में घायल हुए बदमाश की उपचार के दौरान मौत, परिजनाें ने किया हंगामा.....

अगले 24 घंटे में मौत हो गई
इस तरह की तेरहवीं की खूब चर्चा हुई। लोग हैरान थे, इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि उनके होश उड़ गए। अपनी तेरहवीं का भोज करवाने के अगले 24 घंटे के अंदर ही उस व्यक्ति की मौत हो गई। तेरहवीं संस्कार करने के बाद रात को वह व्यक्ति सोता है और फिर वह फिर कभी नहीं उठा। सुबह वह अपने बिस्तर पर मृत पाया गया।

 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या मिला?
व्यक्ति की मौत की सूचना पुलिस को दी गई। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर व्यक्ति का पोस्टमार्टम कराया। बताया जा रहा है कि व्यक्ति की मौत किसी बाहरी कारण से नहीं, बल्कि दिल का दौरा पड़ने से हुई है। अंतिम संस्कार के बाद वह व्यक्ति इस दुनिया से चला गया।

 

मामला कहां है
यह मामला उत्तर प्रदेश के एटा जिले का है। एटा के मुंशी नगर निवासी 55 वर्षीय हाकिम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन इससे पहले उन्होंने जो किया उसने सभी को चौंका दिया। हाकिम सिंह ने अपनी तेरहवीं स्वयं करने का निर्णय लिया। 700 कार्ड छपवाकर लोगों में बांटे। तेरहवीं के लिए हाकिम सिंह ने आधा बीघे जमीन बेच दी। कार्यक्रम का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया गया। लोग पहुंचे और उन्होंने अपने हाथों से खाना खिलाया। अपना पिंडदान किया। और फिर अगले ही दिन हाकिम सिंह इस दुनिया से चले गये। 

 

ऐसा उन्होंने क्यों किया?
हाकिम सिंह ने बड़ी उम्र में शादी की, लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें छोड़ दिया। परिवार में भाई-भतीजे थे, जिनसे झगड़ा होता रहता था। भाई-भतीजे हाकिम सिंह की संपत्ति हासिल करना चाहते थे क्योंकि उनका कोई परिवार नहीं था, लेकिन हाकिम सिंह समय-समय पर जमीन बेचकर अपना खर्च चलाते थे। भाई-भतीजों को यह मंजूर नहीं था। इस कारण कलह हो गई। हाकिम सिंह के मन में था कि कहीं ऐसा न हो कि वह मर जाये और उसके भाई-भतीजे उनकी तेरहवीं तक न करें। अत: हाकिम सिंह ने अपने जीवित रहते ही तेरहवीं करने का निश्चय किया। वही हुआ जो हाकिम सिंह ने योजना बनाई थी। अगले ही दिन तेरहवीं को उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने सभी को चौंका दिया।