UP : जिस मामले में सपा नेता आजम खां की विधानसभा की सदस्यता रद्द हुई, कोर्ट ने उसी में किया बरी, क्या विधायकी होगी बहाल?

रामपुर की एमपी एमएलए कोर्ट की सत्र अदालत ने आजम खां को बरी कर दिया।  पिछले साल 22 अक्टूबर को ट्रायल कोर्ट ने उन्हें हेट स्पीच केस में तीन साल की सजा सुनाई थी।
 
उत्तर प्रदेश की रामपुर अदालत ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को भड़काऊ भाषण देने के मामले में बरी कर दिया है। अब सवाल यह है कि आजम खान क्या करेंगे? उन्होंने विधान सभा की अपनी सदस्यता भी खो दी है। रामपुर में भी उपचुनाव हो चुका है। उनकी जगह अब आकाश सक्सेना बीजेपी से विधायक बने हैं। READ ALSO:-नए संसद भवन पर घमासान, 19 राजनैतिक दल करेंगे बहिष्कार, लोकतंत्र पर हमले का आरोप, अब सरकार ने इस पर दिया ये बयान

 

सवाल यह है कि आजम खां के सामने अब क्या विकल्प बचा है? क्या बरी होने के बाद आजम खान को कोई कानूनी राहत मिल सकती है? कोर्ट के ताजा फैसले के बाद क्या चुनाव आयोग को अपने फैसले पर विचार करने की जरूरत है? क्या जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव होना चाहिए?

 

 

कपिल सिब्बल से सलाह लेंगे
इसी महीने हुए इस चुनाव में बीजेपी की सहयोगी अपना दल की जीत हुई है। बताया जा रहा है कि आजम खान अब इस मामले में कपिल सिब्बल से सलाह लेंगे। वे उनके अच्छे दोस्त रहे हैं। सिब्बल की मदद से वे दो साल बाद जेल से बाहर आ पाए। बदले में अखिलेश यादव की मदद से आजम खान उन्हें राज्यसभा भेजने में सफल रहे।

 

हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा सुनाई थी
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान इन दिनों काफी मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन आज उनके लिए बड़ी राहत की खबर आई है। उन्हें रामपुर में एमपी एमएलए कोर्ट के सत्र न्यायालय ने बरी कर दिया था। पिछले साल 22 अक्टूबर को ट्रायल कोर्ट ने उन्हें हेट स्पीच केस में तीन साल की सजा सुनाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आज के भाषण को लेकर उन पर केस दर्ज किया गया था।

 

फैसला 'तिनके के सहारे डूबने' का
आज के फैसले से आजम को राजनीतिक रूप से डूबने के लिए एक तिनके का सहारा मिल गया है. वैसे यूपी सरकार इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएगी। लेकिन कम से कम आजम अपने फायदे के लिए इस फैसले को भुना तो सकते हैं। वह सार्वजनिक रूप से जा सकते हैं और कह सकते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार से लेकर चुनाव आयोग तक को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं। 22 अक्टूबर को फैसला आया और 28 अक्टूबर को चुनाव कराने का फैसला भी आ गया था। सब कुछ जल्दबाजी में हुआ।