मोबाइल पर किसी की बातचीत रिकॉर्ड करना पड़ सकता है महंगा, हाईकोर्ट का अहम और महत्वपूर्ण फैसला

मोबाइल पर बातचीत के दौरान दूसरे पक्ष की अनुमति के बिना रिकॉर्डिंग नहीं की जा सकती। ऐसा करने पर सजा हो सकती है। पति-पत्नी के विवाद में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बातचीत की रिकॉर्डिंग को सबूत मानने से इनकार कर दिया है। अब निचली अदालतें भी इसे सबूत के तौर पर नहीं ले सकतीं।
 
मोबाइल फोन पर किसी से बातचीत के दौरान दूसरे पक्ष की सहमति के बिना फोन रिकॉर्ड करना महंगा साबित हो सकता है। अगर दूसरा पक्ष इसके खिलाफ शिकायत करता है तो सजा भी हो सकती है। ऐसा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है और आईटी एक्ट की धारा 72 के तहत अपराध है। अब निचली अदालतें भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार नहीं कर सकतीं जो दूसरे पक्ष की सहमति के बिना प्राप्त किया गया हो।READ ALSO:-हमास (Hamas) के आतंकियों ने मुझे गोली मार दी, आई लव यू ...मरने से पहले बोली इजरायली लड़की, इजरायल (Israel) सरकार ने जारी किया ऑडियो

 

नीरा राडिया के बहुचर्चित फोन टैपिंग मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पति-पत्नी विवाद के बीच मोबाइल रिकॉर्डिंग मामले पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि भले ही मामला निजी रिश्ते का हो, लेकिन अदालतें ऐसे सबूतों को स्वीकार नहीं कर सकतीं। हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बिना इजाजत मोबाइल फोन पर बातचीत रिकॉर्ड करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का उल्लंघन है। 

 

हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें एक खास रिकॉर्डिंग को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई थी। हाईकोर्ट ने आशंका जताते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि पति ने याचिकाकर्ता पत्नी की जानकारी के बिना चुपचाप उसकी बातचीत टैप कर ली। ऐसी कार्रवाई सीधे तौर पर संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। यह मामला छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले का है। 

 

पत्नी ने पति से गुजारा भत्ता पाने के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दी थी। पति ने फैमिली कोर्ट में पत्नी की बातचीत को रिकॉर्ड कर कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश करने की इजाजत मांगी थी। इस दौरान पति ने पत्नी के चरित्र पर आरोप लगाए थे।  फैमिली कोर्ट ने इस मांग को स्वीकार कर लिया और रिकॉर्डिंग को सबूत के तौर पर ले लिया। फैमिली कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की और आदेश को रद्द करने की मांग की। 

 

न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडे की एकल पीठ ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए आदेश में कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पति ने याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना बातचीत को रिकॉर्ड किया है, जो उसकी निजता के अधिकार और अनुच्छेद का उल्लंघन है। संविधान के 21. याचिकाकर्ता के तहत प्रदत्त अधिकारों का भी उल्लंघन है। निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 द्वारा नागरिकों को दिए गए जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। फैमिली कोर्ट ने CRPC की धारा 311 के तहत पति के आवेदन को मंजूरी देकर गलती की है। याद रहे कि पति ने फैमिली कोर्ट में पत्नी से दोबारा पूछताछ की मांग की थी और इसका आधार मोबाइल पर बातचीत की रिकॉर्डिंग थी। 

 

गौरतलब है कि अगर किसी की सहमति के बिना मोबाइल या फोन रिकॉर्डिंग की जाती है तो यह आईटी एक्ट-2000 की धारा 72 का उल्लंघन है। इस अधिनियम के तहत यदि किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, पुस्तक, रजिस्टर, पत्राचार, सूचना, दस्तावेज या अन्य सामग्री से संबंधित व्यक्ति की सहमति के बिना जानकारी प्राप्त की जाती है और उसे उसकी सहमति या जानकारी के बिना सार्वजनिक किया जाता है, तो यह धारा 72 का उल्लंघन है। इस में दो साल की सजा और एक लाख जुर्माने का प्रावधान है। आपको सज़ा और जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।