डेढ़ साल के अयांश के पास सिर्फ 6 महीने का वक्त, आपने मदद नहीं की तो छोटी सी उम्र में दुनिया छोड़ देगा ये मासूम

डॉक्टरों ने कहा है कि अयांश को 6 महीने में उसे 16 करोड़ का जोलगेन्स्मा इंजेक्शन नहीं लगा तो वह छोटी सी उम्र में ही इस दुनिया से चला जाएगा। 
 

आपने कुछ दिन पहले मेरठ की बेटी इशानी के बारे में सुना था, जी हां वही इशानी जिसे स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी नाम की दुर्लभ बीमारी थी और उसे बचाने के लिए 16 करोड़ का इंजेक्शन लगना था। इशानी को तो इंजेक्शन मिल गया, लेकिन एक और बच्चा है जो इशानी जैसा ही है। 17 महीने के इस बच्चे का नाम है अयांश और इसे भी अपनी जिंदगी के लिए आपकी जरूरत है। डॉक्टरों ने कहा है कि अयांश के पास महज 6 महीने का समय और है, यदि इन 6 महीने में उसे 16 करोड़ का जोलगेन्स्मा इंजेक्शन नहीं लगा तो वह छोटी सी उम्र में ही इस दुनिया से चला जाएगा।  इस बच्चे की जिंदगी लंबी हो सकती है, लेकिन अगर आप सहयोग करेंगे। 

खिलौनों से खेलने के लिए भी अयांश को सहारे की जरूरत पड़ती है।

अयांश गुड़ग्रमा के सेक्टर 70 का रहने वाला है। अयांश के पिता प्रवीन मदान गुरुग्राम में ही टीसीएस कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जबकि मां वंदना मदान हाउस वाइफ हैं। अयांश के परिजनों ने मुताबिक जन्म के समय अयांश बिल्कुल ठीक था। 5-6 महीने तक तो सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन उसके बाद जब वह 8 महीने का था तो खुद से करवट नहीं ले पाता था। परिजनों ने एक चिकित्सक को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने दिल्ली एम्स में अयांश को दिखाया, यहां जीन टेस्टिंग में स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी का पता चला।

अयांश की कजन आशिमा ने बताया कि वह न तो बैठ पाता है न ही अपने पैरों पर चल पाता है। करवट भी अयांश की मम्मी पापा ही उसे दिलाते हैं। एक बार जिस करवट लेट जाता है उसके बाद वह अपने आप हिल-डुल भी नहीं पाता। इतना ही नहीं वह सिर्फ लिक्विड डाइट के सहारे हैं। धीरे-धीरे अयांश की हालत बिगड़ती जा रही है। डॉक्टरों का कहना है कि यदि अयांश काे जल्द इंजेक्शन नहीं लगा तो उसका बचना नामुमकिन है।

अयांश को सहारे से खड़ा करने की कोशिश करते उसके माता-पिता

अयांश के पिता प्रवीन मदान ने बताया कि अयांश को एसाएमए की सबसे खतरनाक स्टेज टाइप वन है। ऐसा होने पर बिना किसी की मदद से बच्चा सिर तक नहीं हिला पाता। हाथ-पैर ढीले रहते हैं। खाने-पीने में भी दिक्कत आती है। अभी अयांश 17 माह का है और टाइप वन से पीड़ित बच्चे को 24 माह की उम्र तक 16 करोड़ का Zolgensma इंजेक्शन लगना जरूरी होता है। इतना महंगा इंजेक्शन लगवाना किसी भी आम आदमी के बस में नहीं है, इसलिए हमने फंड जुटाने के लिए सोशल मीडिया और कुछ क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म का सहारा लिया है, लेकिन अभी भी बड़े अमाउंट की जरूरत है।

सोनू सूद से लेकर गीता फोगाट तक ने की मदद की अपील

सरकार से भी मदद की गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। हालांकि बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद, कोरियोग्राफर फरहा खान, एक्ट्रेस श्रेया सरन और पहलवान गीता फोगाट ने भी लोगों से अयांश की मदद करने की अपील की है। इन सभी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर इमोशनल वीडियो पोस्ट कर जनता से मदद की गुहार लगाई है  साथ ही खुद भी काफी मदद की है। आशिमा ने कहा कि हमें देश की जनता, खासकर गुरुग्राम, नोएडा, दिल्ली और मेरठ के लोगों से ही उम्मीद है। हम जल्द से जल्द फंड जुटा पाएंगे तो अयांश भी बाकी बच्चों की तरह बड़ा होकर स्कूल जा पाएगा, खेल पाएगा और अपने व हमारे सपनों को पूरा करेगा।

अपनी मां वंदना मदान की गोद में मासूम अयांश

आप मदद करेंगे तो अयांश भी देख पाएगा दुनिया

अयांश को बचाया जा सकता है, लेकिन उसके लिए एक खास इंजेक्शन की जरूरत है जिसे स्विटजरलैंड की कंपनी नोवार्टिस (Novartis) जोलगेन्स्मा (Zolgensma) इंजेक्शन तैयार करती है। यह इंजेक्शन 16 करोड़ की कीमत का है और उसे अमेरिका से मंगवाया जा सकता है। अयांश के पेरेंट्स का कहना है कि अगर ये इंजेक्शन अयांश को नहीं लगाया गया तो वह इस दुनिया को ज्यादा दिन नहीं देख पाएगा इसलिए वे इस इंजेक्शन को खरीदना चाहते हैं, लेकिन एक मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यह संभव नहीं है। ऐसे में हम खबरीलाल के पाठकों से गुजारिश करते हें कि अयांश की मदद के लिए अपनी इच्छा से कुछ दान करें ताकि अयांश का इलाज हो सके और वह भी इस खूबसूरत दुनिया में अपने सपनों को साकार करे।

क्या है SMA बीमारी?
स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी (SMA) बीमारी हो तो शरीर में प्रोटीन बनाने वाला जीन नहीं होता। इससे मांसपेशियां और तंत्रिकाएं (Nerves) खत्म होने लगती हैं। दिमाग की मांसपेशियों की एक्टिविटी भी कम होने लगती है। चूंकि मस्तिष्क से सभी मांसपेशियां संचालित होती हैं, इसलिए सांस लेने और भोजन चबाने तक में दिक्कत होने लगती है। SMA कई तरह की होती है, लेकिन इसमें Type 1 सबसे गंभीर है।

स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी (SMA) एक न्यूरो मस्क्यूलर डिसऑर्डर है। यह एक जेनेटिक बीमारी है जो जीन में गड़बड़ी होने पर अगली पीढ़ी में पहुंचती है। बच्चे में यह डिसऑर्डर होने पर धीरे-धीरे उसका शरीर कमजोर पड़ने लगता है। वह चल फिर नहीं पता। शरीर की मांसपेशियों पर बच्चे का कंट्रोल खत्म होने लगता है इससे शरीर के कई हिस्सों में मूवमेंट नहीं हो पाता।

अयांश

5 तरह की होती है स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी

  • टाइप-0: यह तब होती है जब बच्चा पेट में पल रहा होता है। जन्म से ही बच्चे में जोड़ों का दर्द रहता है। हालांकि, ऐसे मामले दुनिया में कम ही सामने आते हैं।
  • टाइप-1: ऐसा होने पर बिना किसी की मदद से बच्चा सिर तक नहीं हिला पाता। हाथ-पैर ढीले रहते हैं। कुछ भी निगलने में भी दिक्कत आती है। 
  • टाइप-2: इसके मामले 6 से 18 महीने के बच्चे में सामने आते हैं। हाथ से ज्यादा असर पैरों पर दिखता है। नतीजा वो खड़े नहीं हो पाते। 
  • टाइप-3: 2-17 साल के लोगों में लक्षण दिखते हैं। टाइप-1 व 2 के मुकाबले बीमारी का असर कम दिखता है लेकिन भविष्य में व्हीलचेयर की जरूरत पड़ सकती है।
  • टाइप-4: स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी का यह प्रकार वयस्कों में दिखता है। मांसपेशियां में कमजोर हो जाती है और सांस लेने में तकलीफ होती है। हाथ-पैरों पर असर दिखता है

ऐसा होता क्यों है

स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी होने पर दिमाग की नर्व सेल्स और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में ब्रेन मसल्स (दिमाग की मांसपेशियां) को कंट्रोल करने के लिए मैसेज भेजना धीरे-धीरे बंद करने लगता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है बच्चे का खुद से हिलना-डुलना बंद हो जाता है।

इस बीमारी का अब तक कोई सटीक इलाज नहीं मिल सका है, सिर्फ दवाओं के जरिए इसका असर कम करने की कोशिश की जाती है। हालांकि, दावा किया जा रहा है कि Zolgensma इंजेक्शन के एक डोज से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है। यही इंजेक्शन अयांश को लगना है, लेकिन इसकी कीमत 22 करोड़ (6 करोड़ रुपये टैक्स) रुपये हैं। हालांकि टैक्स सरकार माफ कर देती है।