ICMR's new guideline: कोरोना के इलाज को लेकर ICMR की नई गाइडलाइन, जानिए किन दवाओं पर इलाज के लिए लगा प्रतिबंध?
इसके साथ ही कहा गया है कि स्टेरॉयड देने से कोरोना मरीजों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। बल्कि काले फंगस जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है। दूसरी लहर के दौरान, संक्रमित रोगियों को बड़ी संख्या में स्टेरॉयड देने के कारण बड़ी संख्या में काले कवक के मामले सामने आए।
डॉक्टरों के एक समूह द्वारा इन दवाओं के इस्तेमाल के खिलाफ एक खुला पत्र लिखे जाने के बाद यह फैसला लिया गया है। नए दिशानिर्देश एम्स, आईसीएमआर, कोविड-19 टास्क फोर्स और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) द्वारा जारी किए गए हैं।
आइए जानते हैं कि आईसीएमआर की नई गाइडलाइंस से किन दवाओं को हटा दिया गया है। साथ ही, Omicron से संक्रमित होने पर क्या करने की सलाह दी गई है?
जरूरी होने पर ही सीटी स्कैन कराएं
आईसीएमआर की नई गाइडलाइंस में साफ तौर पर कहा गया है कि बेहद गंभीर मरीजों का सीटी स्कैन और महंगा ब्लड टेस्ट तभी किया जाना चाहिए जब ज्यादा जरूरी हो।
स्टेरॉयड के अत्यधिक उपयोग से बचने की सलाह
नए दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि स्टेरॉयड युक्त दवाएं पहले या अधिक मात्रा में या अधिक समय तक इस्तेमाल करने पर ब्लैक फंगस जैसे सेकेंडरी इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
विभिन्न दवाओं की खुराक सलाह
नई गाइडलाइन में कोरोना के हल्के, मध्यम और गंभीर लक्षणों के लिए अलग-अलग दवाओं के डोज की सलाह दी गई है। इसमें कहा गया है कि 0.5 से 01 मिलीग्राम/किलोग्राम की दो अलग-अलग खुराक में इंजेक्शन योग्य मेथाप्रेडनिसोलोन या डेक्सामेथासोन की समकक्ष खुराक हल्के लक्षणों वाले लोगों को पांच से दस दिनों तक दी जा सकती है। एक ही दवा की दो अलग-अलग खुराक 01 से 02 मिलीग्राम/किलोग्राम गंभीर मामलों में दी जा सकती है।
तीन हफ्ते से खांसी आ रही हो तो टीबी की जांच कराएं
बिडसोनाइड लेने की भी सलाह दी गई है। यह दवा उन मामलों में दी जा सकती है जब बीमारी होने के बाद पांच दिनों तक बुखार और खांसी बनी रहती है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर किसी की खांसी दो-तीन हफ्ते से ठीक नहीं हो रही है तो उसे टीबी या इसी तरह की अन्य किसी बीमारी की जांच करानी चाहिए।
33 डॉक्टरों के समूह ने कई दवाओं के इस्तेमाल पर उठाए सवाल
दरअसल, 14 जनवरी को 33 डॉक्टरों के एक समूह ने केंद्र सरकार, राज्यों और आईएमए को पत्र लिखकर कहा था कि ऐसी दवाएं और जांच बंद कर देनी चाहिए जो कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए जरूरी नहीं हैं। पत्र में कहा गया है कि दवा नियामक और आईसीएमआर के बीच तालमेल की कमी पर भी सवाल उठाया गया। साथ ही डॉक्टरों ने कहा था कि सरकार वही गलती कर रही है जो उसने दूसरी लहर में की थी। एज़िथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन, फेविपिराविर और आइवरमेक्टिन जैसे विटामिन और दवाएं देने का कोई मतलब नहीं है। ऐसी दवाओं के प्रयोग के कारण डेल्टा की दूसरी लहर में काले फंगस के मामले सामने आए।