स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को दी जाएगी भू-समाधि, जानें क्या है षोडसी प्रक्रिया का विधान

ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को शाम 4 बजे भूसमाधि दी जाएगी। गुजरात स्थित द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड स्थित ज्योतिश पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती रविवार दोपहर ब्रह्मलीन हो गये थे।

 

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती हिन्दू धर्म के सबसे बडे धर्म गुरु रहे हैं। उनका रविवार शाम लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर आश्रम में सोमवार शाम 4 बजे उन्हें भू समाधि दी जाएगी। उनके अंतिम दर्शन के लिए हज़ारो भक्त पहुँच रहे है झोतेश्वरधाम। 

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शंकरचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को इस वजह से दी जाएगी भू समाधि

आमतौर हिन्दू धर्म में किसी की मौत के बाद उन्हें जलाकर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन साधुओं का अंतिम संस्कार ऐसे नहीं किया जाता। उन्हें समाधि दी जाती है। माना जाता है कि मौत के बाद भी साधू-संत का शरीर परोपकार करता रहता है। वहीं, शरीर को जलाने से किसी को लाभ नहीं होता। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। यही वजह है कि इनका अंतिम संस्कार करने के लिए जलाने की जगह जमीन या जल में समाधि दी जाती है। 

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कैसे दी जाएगी भू समाधि

  1. भू-समाधि देने के लिए 6 फीट लम्बा, 6 फीट गहरा और 6 फीट चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है। फिर उसकी गाय के गोबर से लिपाई की जाती है।
  2. कुछ मामलों में समाधि देने से पहले हवन करने की भी परंपरा रही है। इसके बाद गड्ढे में नमक डाला जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि शरीर आसानी से गल सके।
  3. समाधि देने से पहले उन्हें नहलाया जाता है। फिर उनका शृंगार किया जाता है यानी उन्हें वही वस्त्र पहनाए जाते हैं जो वो आमतौर पर पहनते हैं।
  4. उन्हें चंदन का तिलक लगाया जाता है और रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है। शरीर पर भस्म लगाने के बाद ही उन्हें समाधि तक ले जाया जाता है।
  5. समाधि के दौरान उनके शरीर पर घी का लेप किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि छोटे-छोटे जीव शरीर की ओर आकर्षित हो सकें।
  6. समाधि के लिए बनाए गए गड्ढे में उनके शरीर के साथ उनका कमंडल, रुद्राक्ष की माला और दंड को भी रखा जाता है।
  7. सबसे अंत में मंत्रों के उच्चारण के साथ मिट्टी भरी जाती है और इस तरह उन्हें भू-समाधि दी जाती है।

क्या है षोडसी प्रक्रिया का विधान

आम व्यक्तियों के लिए मृत्यु के 13 दिन बाद तेरहवीं की परंपरा है। लेकिन साधू-संतों को भू-समाधि देने के बाद षोडसी प्रक्रिया पूरी की जाती है. पोडसी की प्रक्रिया के तहत समाधि के 16वें दिन भंडारा किया जाता है