1000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है निरंजनी अखाड़े के पास, महंत नरेंद्र गिरि इसी के सर्वेसर्वा थे
एक अनुमान के मुताबिक, प्रयागराज और आसपास के इलाकों में निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कीमत 300 करोड़ से ज्यादा की है, जबकि हरिद्वार और दूसरे राज्यों में संपत्ति की कीमत जोड़े तो वो हजार करोड़ के पार है।
Updated: Sep 22, 2021, 00:14 IST
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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और संगम तट स्थित लेटे हनुमान मंदिर के महंत नरेंद्र गिरि (Narendra Giri Maharaj) की सोमवार शाम संदिग्ध हालत में मौत हो गई थी। उनका शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फांसी के फंदे से लटकता मिला था। महंत की मौत के बाद उनके तीन शिष्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है। महंत द्वारा छोड़े गए कथित सुसाइड नोट में तीनों शिष्यों पर गंंभीर आरोप लगाते हुए मानसिक तौर पर परेशान होने की बात लिखी है।
वहीं महंत नरेंद्र गिरि की मौत के पीछे अखाड़े की संपत्ति के विवाद को मुख्य वजह माना जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि निरंजनी अखाड़े के पास कितनी संपत्ति है जिसके सर्वोसर्वा महंत नरेंद्र गिरी थे। निरंजनी के अखाड़े के पास प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मिर्जापुर, माउंटआबू, जयपुर, वाराणसी, नोएडा, वड़ोदरा में मठ और आश्रम हैं। एक अनुमान के मुताबिक, प्रयागराज और आसपास के इलाकों में निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कीमत 300 करोड़ से ज्यादा की है, जबकि हरिद्वार और दूसरे राज्यों में संपत्ति की कीमत जोड़े तो वो हजार करोड़ के पार है। Read Also : महंत नरेंद्र गिरि का सुसाइड नोट आया सामने : गुरु का अश्लील फोटो बनाकर वायरल करने वाला था आनंद गिरि, जानिए और क्या लिखा
निरंजनी अखाड़े की कुल संपत्ति
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प्रयागराज के अल्लापुर इलाके में बाघम्बरी गद्दी और मठ है, जो करीब 5 से 6 बीघे जमीन में है। यहां निरंजनी अखाड़े के नाम एक स्कूल और गौशाला भी है।
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दारागंज में भी अखाड़े की जमीन है, प्रयागराज में हनुमान मंदिर जिसे संगम तट पर लेटे हुए हनुमान जी के नाम से जाना जाता है, वो भी इसी बाघम्बरी मठ का ही मंदिर है
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मांडा (प्रयागराज) में 100 बीघा और मिर्जापुर के महुआरी में भी 400 बीघे से ज्यादा की जमीन बाघम्बरी मठ के नाम है।
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इसके अलावा मिर्जापुर के नैडी में 70 और सिगड़ा में 70 बीघा जमीन अखाड़े की है
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निरंजनी अखाड़े की कुंभ नगरी उज्जैन और ओंकारेश्वर में 250 बीघा जमीन, आधा दर्जन मठ और दर्जनभर आश्रम हैं
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कुंभ नगरी नासिक में 100 बीघा से अधिक जमीन, दर्जनभर आश्रम और मंदिर हैं
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बड़ोदरा, जयपुर, माउंटआबू में भी करीब 125 बीघा जमीन, दर्जन भर मंदिर और आश्रम हैं
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हरिद्वार स्थित मुख्यालय के अधीन दर्जनभर मठ-मंदिर हैं
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नोएडा में मंदिर और 50 बीघा जमीन है
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वाराणसी में मंदिर और आश्रम के साथ करोड़ों की जमीन है
900 साल पहले हुई थी निरंजनी अखाड़े की स्थापना
गौरतलब है कि निरंजनी अखाड़े की स्थापना करीब 900 साल पहले गुजरात के मांडवी में हुई थी जबकि बाघंबरी गद्दी 300 साल पुरानी है। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी। हालांकि इसका मुख्यालय प्रयागराज में है वहीं उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर और उदयपुर में भी अखाड़े ने अपने आश्रम बना रखे हैं।
डॉक्टर इंजीनियर से लेकर वकील और प्रोफेसरों हैं साधु
शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है। इनमें से कुछ डॉक्टर, कुछ वकील, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं। वर्तमान समय में लगभग निरंजनी अखाड़ा में 33 महामंडलेश्वर, 1000 के करीब साधु और 10 हजार नागा शामिल हैं।
मंहत नरेन्द्र गिरी अल्लापुर बाघम्बरी गद्दी में अधिकांश समय व्यतीत करते थे। पहली बार मार्च 2015 में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव और मठ बाघंबरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरि को सर्वसम्मति से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था। उसके बाद दोबारा उन्हें अकटूबर 2019 में अध्यक्ष चुना गया था।
1954 में हुआ अखाड़ा परिषद का गठन
वर्ष 1954 में प्रयागराज- साधु संतो की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को केंद्र सरकार की मान्यता मिली। हालांकि इसका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना बताया जाता है, लेकिन सन 1954 में संतों के आपसी टकराव को रोकने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गयी। यह भारत में संतो कें 13 अखाड़ों का एक संगठन है। अखाड़ा परिषद ही महामंडलेश्वर और बाबाओं को प्रमाणपत्र देती है। कुंभ और अर्ध कुंभ मेले में कौन अखाड़ा कब और किस समय स्नान करेगा यह अखाड़ा परिषद ही तय करती है।
देश में कुल 13 अखाड़े हैं
देश में कुल 13 अखाड़े हैं, जो तीन मतों में बंटे हैं। अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा, नया उदासीन अखाड़ा, निर्मल अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, जूना अखाड़ा शामिल हैं। किन्नर अखाड़े को शामिल करने के बाबा नरेंद्र गिरि विरोध में थे। इसी साल के शुरुआती दिनों में प्रयागराज में अखाड़ा परिषद की एक बैठक में सर्वसम्मति से त्रिकाल भवंता के परी अखाड़ा और किन्नर अखाड़े पर रोक लगा दी गई थी। यानी उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था। तब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा था कि 13 अखाड़ों के अलावा किसी भी दूसरे अखाड़े को हरिद्वार कुम्भ में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
क्यों कहते हैं अखाड़ा
दरअसल, सनातन धर्म में ये मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में धर्म की स्थापना के लिए मठ स्थापित किये थे। बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारिका पीठ के इन्हीं मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। शंकराचार्य का सुझाव था कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति संचय भी होना चाहिए। तभी से मठों में साधु तपस्या करने के साथ-साथ शारीरिक सौष्ठव पर भी ध्यान देने लगे। जानकारी के मुताबिक फिलहाल भारत में कुल 13 अखाड़े हैं, ये अखाड़े हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाजों के तहत चलते हैं और त्योहारों का आयोजन करते हैं। कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में ये अखाड़े बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं।
अखाड़ों के 3 मत
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शैव संन्यासी संप्रदाय : शिव और उनके अवतारों को मानने वाले शैव कहे जाते हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय के पास सात अखाड़े हैं। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, बाबा हनुमान घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश भी इस परिषद का सदस्य है। इसमें करीब पांच लाख साधु-संत शामिल है और ये देश का सबसे बड़ा अखाड़ा है।
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वैरागी संप्रदाय: की बारी आती है। वैरागी संप्रदाय भगवान विष्णु को मानते हैं। श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश भी परिषद में शामिल है।
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उदासीन संप्रदाय अखाड़ा: ये असल में सिख-साधुओं के संप्रदाय का आखड़ा है। ये सनातन धर्म को भी मानते हैं।