हाईकोर्ट का फैसला: विवाहिता पुत्री मृतक पिता के आश्रित कोटे में नौकरी पाने का हकदार नहीं

याचिकाकर्ता माधवी मिश्रा के पिता इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य थे, लेकिन सेवानिवृत्त से पहले ही उनकी मौत हो गई थी। माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर मृतक पिता के आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की थी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से हो रहीं मौत नरसंहार से कम नहीं
मृतक पिता के आश्रित कोटे में नौकरी पाने का हक उसकी विवाहिता पुत्री को नहीं है। यह बात इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court)  ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कही। एक्टिंग चीफ जस्टिस एमएन भंडारी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने अपने फैसले के दौरान तीन कारण भी बताए कि क्यों विवाहिता पुत्री को मृतक पिता के आश्रित कोटे से नौकरी नहीं मिलनी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए विवाहिता पुत्री को आश्रित कोटे में नौकरी देने के 9 अगस्त 2021 को एकलपीठ द्वारा दिए आदेश को रद्द कर दिया।

 

कोर्ट ने बताए ये तीन कारण


दरअसल याचिकाकर्ता माधवी मिश्रा के पिता इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य थे, लेकिन सेवानिवृत्त से पहले ड्यूटी के दौरान ही उनकी मौत हो गई थी। माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की थी। माधवी ने विमला श्रीवास्तव केस का हवाला दिया था। जिसपर एकलपीठ ने माधवी को आश्रित कोटे में नियुक्ति देने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

 

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राज्य सरकार का पक्ष था कि 1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली कॉलेज की नियुक्ति पर लागू नहीं होती। मृतक आश्रित विनियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम1904,  इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम व 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर, पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है। राज्य सरकार की अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता सुभाष राठी ने यह भी कहा कि सामान्य श्रेणी में कोई पद खाली नहीं है। वहीं मृतक की मां विधवा पेंशन पा रही है। Read ALso :7th Pay Commission : इन कर्मचारियों के लिए बड़ी खबर, सरकार ने बदले ये नियम

 

याची के वकील की थी ये दलील

उधर माधवी मिश्रा की अधिवक्ता सीमांत सिंह का तर्क था कि सरकार ने कल्याणकारी नीति अपनाई है। उन्होंने विमला श्रीवास्तव केस का हवाला देते हुए कहा कि कोर्ट ने पुत्र-पुत्री में विवाहित होने के अंतर को अंसवैधनिक बताया था और नियमावली से अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया था।कोर्ट ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है। मान्यता प्राप्त एडेड कालेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली है ऐसे में सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली यहां पर लागू हो ही नहीं सकती।

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