मोबाइल धोखाधड़ी पर DoT का 'सर्जिकल स्ट्राइक': नंबर वेरिफिकेशन पर लगेगा शुल्क, आपकी जेब पर पड़ेगा असर?

 साइबर सुरक्षा नियमों में बड़े बदलाव का प्रस्ताव, 1.5 से 3 रुपये तक लगेगा चार्ज; बैंकों ने शुरू की 'फ्रॉड' नंबरों को डीएक्टिवेट करने की तैयारी
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DOT propose new rule
मोबाइल फोन नंबरों से जुड़ी बढ़ती धोखाधड़ी और साइबर अपराधों पर लगाम कसने के लिए दूरसंचार विभाग (DoT) ने कमर कस ली है। एक बड़े कदम के तहत, DoT ने साइबर सुरक्षा नियमों में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा है। 24 जून को जारी किए गए नए ड्राफ्ट के अनुसार, फोन नंबर वेरिफिकेशन के लिए एक नया और केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म बनाया जाएगा। इस प्लेटफॉर्म में वे सभी संस्थाएं शामिल होंगी जिनके पास ग्राहक वेरिफिकेशन का लाइसेंस है। हालांकि, इस नए नियम से एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है: मोबाइल नंबर वेरिफिकेशन के लिए लगने वाला शुल्क कंपनियां वहन करेंगी या इसका सीधा बोझ आम यूज़र्स की जेब पर पड़ेगा? यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन आशंका है कि आपको इसके लिए भुगतान करना पड़ सकता है।READ ALSO:-योगी सरकार का बड़ा 'नाम' परिवर्तन: यूपी के 5 प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों को मिली नई पहचान!

 

क्या है MNV प्लेटफॉर्म और TIUE एंटिटीज का खेल?
दूरसंचार विभाग ने MNV (मोबाइल नंबर वेरिफिकेशन) प्लेटफॉर्म को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। यह प्लेटफॉर्म अधिकृत संस्थाओं और लाइसेंसधारियों को यह जांचने में मदद करेगा कि कोई फोन नंबर वास्तव में डेटाबेस में मौजूद है या नहीं और क्या वह किसी वैध यूज़र या कंपनी द्वारा उपयोग किया जा रहा है।

 

ड्राफ्ट में उन संस्थाओं का भी जिक्र है जो यूज़र को वेरिफाई करने के लिए फोन नंबर या लेन-देन का उपयोग करती हैं। इन संस्थाओं को TIUE (टेलिकम्युनिकेशन आइडेंटिफायर यूजर एंटिटी) कहा जाएगा। इसका मतलब है कि अब हर उस एंटिटी को नंबर वेरिफिकेशन के लिए इस नए प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना होगा, जो किसी भी तरह से मोबाइल नंबर का उपयोग करके यूज़र की पहचान सत्यापित करती है।

 

कितना होगा 'वेरिफिकेशन टैक्स' और कौन भरेगा बिल?
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नए नियमों में वेरिफिकेशन शुल्क का भी प्रस्ताव है:-
  • यदि कोई एंटिटी राज्य या केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत है, तो उसे प्रति फोन नंबर वेरिफिकेशन के लिए ₹1.50 (डेढ़ रुपया) का भुगतान करना होगा।
  • वहीं, निजी एंटिटीज द्वारा प्रति नंबर वेरिफिकेशन रिक्वेस्ट के लिए ₹3 (तीन रुपए) का शुल्क लिया जाएगा।

 

यह सबसे बड़ा अनुत्तरित प्रश्न है कि मोबाइल नंबर वेरिफिकेशन के लिए इस शुल्क का अंतिम भुगतान कौन करेगा? क्या यह लागत सीधे सेवाओं का उपयोग करने वाले यूज़र्स से वसूली जाएगी, या कंपनियां इसे अपनी परिचालन लागत में शामिल करेंगी? हालांकि, इस बात की प्रबल संभावना है कि यह वेरिफिकेशन चार्ज अंततः आम लोगों की जेब पर भार डाल सकता है, क्योंकि कंपनियां अक्सर ऐसी लागतों को ग्राहकों पर स्थानांतरित कर देती हैं।

 

आगे क्या? बैंकों की तैयारी और 'फ्रॉड' नंबरों का खेल खत्म!
दूरसंचार विभाग ने इस ड्राफ्ट के जारी होने के 30 दिनों के भीतर सभी संबंधित पक्षों से प्रतिक्रियाएं मांगी हैं। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर ही अंतिम नियम बनाए जाएंगे। नए नियमों से सरकारी अधिकृत एजेंसियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को गैर-दूरसंचार संस्थाओं से भी व्यक्तियों के लेन-देन का विवरण एकत्र करने का अधिकार मिलने की उम्मीद है, जिससे धोखाधड़ी की जांच और रोकथाम में काफी मदद मिलेगी।

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इस बीच, रिपोर्ट्स बताती हैं कि बैंकों ने इस नए मैकेनिज्म के लिए पहले ही पायलट प्रोजेक्ट की टेस्टिंग शुरू कर दी है। यह मैकेनिज्म उन नंबरों को 'फ्लैग मार्क' करेगा जो पहले किसी धोखाधड़ी गतिविधि में इस्तेमाल किए गए होंगे। इतना ही नहीं, ऐसे फ्लैग मार्क किए गए नंबर को 90 दिनों के लिए डीएक्टिवेट कर दिया जाएगा। 90 दिन बाद, उस नंबर से संबंधित धोखाधड़ी हिस्ट्री खुद-ब-खुद डिलीट हो जाएगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अगर वह नंबर किसी दूसरे यूज़र को अलॉट होता है तो उसे किसी भी तरह की दिक्कत न हो। यह कदम मोबाइल धोखाधड़ी के खिलाफ एक मजबूत 'सुरक्षा कवच' का काम करेगा।
SONU

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