चेन्नई से कोलंबो सीधी ट्रेन का सपना होगा साकार? 5 अरब डॉलर से बनेगा पुल, श्रीलंका बोला- काम अंतिम चरण में

रामेश्वरम-तलाईमन्नार के बीच बनेगा 25 किमी का पुल, 1964 के चक्रवात ने तोड़ा था संपर्क, नए पम्बन ब्रिज से फिर जगी उम्मीद
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नई दिल्ली: भारत और श्रीलंका के बीच सीधी रेल कनेक्टिविटी का सदियों पुराना सपना एक बार फिर हकीकत के करीब आता दिख रहा है। भारत द्वारा हाल ही में नए पम्बन ब्रिज का उद्घाटन करने और श्रीलंकाई सरकार द्वारा भूमि संपर्क कार्य के अंतिम चरण में होने की बात कहने से इस महत्वाकांक्षी परियोजना को नया बल मिला है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो भविष्य में चेन्नई से कोलंबो तक सीधी ट्रेन यात्रा संभव हो सकेगी, जिसके लिए केवल रामेश्वरम (धनुषकोडी) और श्रीलंका के तलाईमन्नार के बीच लगभग 25 किलोमीटर लंबे पुल या सुरंग के निर्माण की आवश्यकता होगी।READ ALSO:-

 

क्या है योजना और वर्तमान स्थिति?
भारत और श्रीलंका के बीच सीधी रेल लाइन स्थापित करने के लिए पाक जलडमरूमध्य में स्थित एडम्स ब्रिज (राम सेतु) के समानांतर लगभग 25 किलोमीटर लंबे पुल या सुरंग का निर्माण प्रस्तावित है। यह पुल भारत के धनुषकोडी (रामेश्वरम द्वीप का अंतिम छोर) को श्रीलंका के मन्नार द्वीप पर स्थित तलाईमन्नार से जोड़ेगा। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लगभग 2 किलोमीटर लंबे अत्याधुनिक नए पम्बन ब्रिज का उद्घाटन किया गया, जो भारतीय मुख्य भूमि से रामेश्वरम द्वीप तक निर्बाध रेल संपर्क सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

उधर, श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने भी संकेत दिए हैं कि भारत के साथ भूमि कनेक्शन का काम 2024 में पूरा होने की उम्मीद है और यह अब अंतिम चरण में है। श्रीलंका के पर्यावरण सचिव बी. के. प्रभात चंद्रकीर्त ने भी पिछले महीने नई दिल्ली में भारतीय अधिकारियों के साथ बैठक की पुष्टि करते हुए कहा कि दोनों देश रेलवे लाइन और राजमार्ग कनेक्शन स्थापित करने जा रहे हैं। उन्होंने इस परियोजना पर करीब 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च होने का अनुमान भी जताया है।

 

ऐतिहासिक सपना, चक्रवात ने तोड़ा संपर्क
भारत और श्रीलंका को रेल नेटवर्क से जोड़ने का विचार ब्रिटिश शासन काल (1830 के दशक) में ही आ गया था, ताकि माल परिवहन आसान हो सके। 1914 तक, दक्षिण भारतीय रेलवे ने पुराने पम्बन ब्रिज का निर्माण पूरा कर लिया, जिससे मीटर गेज ट्रेनें धनुषकोडी तक पहुंचने लगीं और चेन्नई-कोलंबो के बीच मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी (ट्रेन + स्टीमर) का युग शुरू हुआ। यात्री चेन्नई से ट्रेन द्वारा धनुषकोडी जाते, फिर स्टीमर से पाक जलडमरूमध्य पार कर तलाईमन्नार पहुँचते और वहाँ से फिर ट्रेन पकड़कर कोलंबो जाते थे। यह 'इंडो-सीलोन बोट मेल सर्विस' दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों का प्रतीक बन गई थी।

 

हालांकि, तलाईमन्नार तक सीधे रेल पुल बनाने का ब्रिटिश कालीन प्रस्ताव लागत संबंधी चिंताओं के कारण खारिज हो गया था। बाद में, 1964 में आए भयंकर रामेश्वरम चक्रवात ने पुराने पम्बन ब्रिज और धनुषकोडी तक की रेल लाइन को बुरी तरह तबाह कर दिया, जिससे सीधी रेल कनेक्टिविटी का सपना चकनाचूर हो गया और धनुषकोडी एक वीरान टापू बनकर रह गया।

 

आधुनिक प्रयास और राजनीतिक पेंच
सीधे रेल संपर्क का पहला ठोस आधुनिक प्रयास जुलाई 2002 में हुआ जब कोलंबो ने रामेश्वरम से तलाईमन्नार तक सड़क-सह-रेल पुल का प्रस्ताव रखा और एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए। लेकिन तत्कालीन तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने सुरक्षा कारणों (LTTE के खतरे) का हवाला देते हुए इस परियोजना का कड़ा विरोध किया, जिससे यह ठंडे बस्ते में चली गई।

 

हालांकि, अब परिस्थितियां बदल रही हैं। LTTE का प्रभाव खत्म हो चुका है। केंद्र में मजबूत सरकार और हाल के वर्षों में "राम की विरासत" से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर जोर दिए जाने से माहौल सकारात्मक बना है। तमिलनाडु की राजनीतिक स्थिति भी बदली है (वर्तमान में DMK सत्ता में है, लेकिन 2026 चुनावों के लिए भाजपा-AIADMK गठबंधन की अटकलें हैं), जो शायद परियोजना के प्रति विरोध को कम कर सकती है।

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भविष्य की राह
नए पम्बन ब्रिज के चालू होने से भारत की ओर से रामेश्वरम तक रेल संपर्क बहाल हो गया है। अब केवल धनुषकोडी और तलाईमन्नार के बीच 25 किलोमीटर के समुद्री हिस्से को पाटने की चुनौती है। यदि भारत और श्रीलंका दोनों की सरकारें राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाती हैं और लगभग 5 बिलियन डॉलर के वित्तपोषण का प्रबंधन करती हैं, तो यह ऐतिहासिक रेल लिंक, जो व्यापार और संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है, भविष्य में साकार हो सकता है।
SONU

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