Air India को क्यों बेच रही है सरकार, कंपनी की है कितनी संपत्ति और खरीददार को क्या-क्या मिलेगा, जानिए सबकुछ

लोगों के मन में एक बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार एयर इंडिया को बेच क्यों रही है? और यदि पहले भी सरकार ने इसे बेचने की कोशिश की थी तो यह बिकी क्यों नहीं? आइए समझते हैं, कि आखिर एअर इंडिया के आर्थिक हालात कैसे हैं? और क्यों इसे सरकार बेच रही है।

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घाटे से जूझ रही एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया (Air India) को बेचने की प्रक्रिया के बीच शुक्रवार को खबर आई कि सरकार ने टाटा ग्रप (Tata Group) की बोली को स्वीकार कर लिया है और  एयर इंडिया अब टाटा ग्रुप (Air India Tata Group) की हो गई है। हालांकि कुछ ही देर बाद सरकार ने एयर इंडिया के अधिग्रहण (Air india Sale) से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। निवेश एवं लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव ने बयान जारी करते हुए कहा कि जब भी कोई फैसला लिया जाएगा, मीडिया को इसकी जानकारी दी जाएगी।

 

दरअसल, 15 सितंबर को इसे खरीदने की इच्छुक कंपनियों के लिए बोली लगाने की आखिरी तारीख थी। शुक्रवार को ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि एयर इंडिया की नीलामी प्रक्रिया में टाटा ग्रुप (Tata Group) और स्पाइसजेट (SpiceJet) के चेयरमैन अजय सिंह ने एयर इंडिया को खरीदने के लिए 3 हजार करोड़ रुपए ज्यादा की बोली लगाई थी और सरकार ने इस बोली को स्वीकार कर लिया है। 68 साल बाद एक बार फिर एयर इंडिया की घर वापसी हो जाएगी, लेकिन कुछ ही देर में सरकार ने इन खबरों को खारिज कर दिया। सरकार का कहना है कि अभी इस पर फैसला नहीं हुआ है और ज‍ब होगा तो जानकारी दी जाएगी। Read Also :मोदी सरकार ने आखिरकार बेच ही दी Air India! Tata Group ने खरीदी एयर इंडिया, 68 पहले टाटा ने ही इसे शुरू किया था

 

यह दूसरा मौका है जब सरकार एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश कर रही है। इससे पहले 2018 में भी सरकार ने कंपनी में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी, लेकिन कोई खरीदार नहीं मिला था। लेकिन लोगों के मन में एक बड़ा सवाल यह है कि आखिर सरकार एयर इंडिया को बेच क्यों रही है? और यदि पहले भी सरकार ने इसे बेचने की कोशिश की थी तो यह बिकी क्यों नहीं? आइए समझते हैं, कि आखिर एअर इंडिया के आर्थिक हालात कैसे हैं? और क्यों इसे सरकार बेच रही है।

 

सरकार Air India को बेच क्यों रही है?

एयर इंडिया को सरकार क्याें बेच रही है इसे जानने के लिए हमें वर्ष 2007 में जाना होगा। वर्ष 2007 वही साल था जब सरकार ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का मर्जर कर दिया था। सरकार का कहना था कि फ्यूल की कीमत बहुज ज्यादा बढ़ रही है और प्राइवेट कंपनियों से उन्हें बहुत कॉम्पटिशन मिल रहा है, इसीलिए दो कंपनियों को मर्ज करके एक बड़ी कंपनी बनाया गया है। बस सरकार का यह कदम ही एयर इंडिया की बिक्री की वजह बन गया।

 

एयर इंडिया समय के साथ आगे बढ़ रही थी। 1997 में कंपनी ने अपनी वेबसाइट लॉन्च की। इसके बाद 2005 में कंपनी ने लो कॉस्ट एयरलाइंस शुरू की। वर्ष 2000 से वर्ष 2006 तक का समय कंपनी के लिए गोल्डन पीरियड था। इस दौर में एयर इंडिया बड़े मुनाफे में थी, लेकिन मर्जर होते ही कहानी बदल गई और एयर इंडिया की परेशानी भी बढ़ती गई। मर्जर का नतीजा यह हुआ कि कंपनी की आय कम होती गई और कर्ज बढ़ता गया। लगातार घाटा होने के चलते एयर इंडिया 2012 में एविएशन मार्केट में चौथे स्थान पर खिसक गई। 31 मार्च 2019 तक 60,074 करोड़ का कर्ज था। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अनुमान लगाया गया था कि एयरलाइन को 9 हजार करोड़ का घाटा हो सकता है।

 

कब शुरू हुई Air India को बेचने की प्रक्रिया

एयर इंडिया के लगातार घाटे और बढ़ते कर्ज को देखते हुए 2018 में सरकार ने एअर इंडिया के विनिवेश की तैयारी की थी। सरकार ने तय किया था कि वह एयर इंडिया में अपनी 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचेगी। इसके लिए सरकार ने कंपनियों से 31 मार्च 2018 तक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) मंगवाए गए थे, लेकिन सरकार इसका मैनेजमेंट कंट्रोल अपने पास रखने की शर्त रख रही थी, जिसके चलते किसी ने इसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई और निर्धारित तारीख तक सरकार के पास एक भी कंपनी ने EOI सब्मिट नहीं किया था।

 

इसके बाद जनवरी 2020 में एक बार फिर सरकार ने एयर इंडिया को बेचने की प्रक्रिया शुरू की। इस बार सरकार ने 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की और 17 मार्च 2020 तक कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट सब्मिट मांगे, लेकिन इसी बीच कोरोना के कारण लॉकडाउन लग गया और एविएशन इंडस्ट्री पर तगड़ी मार पड़ी। जिसके चलते सरकार ने EOI सबमिट करने की तारीख को कई बार आगे बढ़ाया, अब 15 सितंबर 2021  इसकी आखिरी तारीख निर्धारित की गई। हालांकि 2000 अटल बिहारी वाजपेयी (राजग) सरकार ने इसे बेचने की योजना बनाई। ​सरकार ने एयर इंडिया में 40% हिस्सा बेचने का फैसला किया था। इसके अलावा 10% हिस्सा कर्मचारियों को शेयर देने के रूप में और 10% घरेलू वित्तीय संस्थानों को देने का फैसला किया था।

 

सरकार एयरलाइंस में क्या-क्या बेच रही है?

  • सरकार एअर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है। इसमें एअर इंडिया एक्सप्रेस की भी 100 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है। साथ ही कार्गो और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AISATS की 50 फीसदी हिस्सेदारी शामिल है।
  • विमानों के अलावा एयरलाइन की प्रॉपर्टी, कर्मचारियों के लिए बनी हाउसिंग सोसायटी और एयरपोर्ट पर लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट भी सौदे का हिस्सा होंगे।
  • नए मालिक को भारतीय एयरपोर्ट्स पर 4400 डोमेस्टिक और 1800 इंटरनेशनल लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट मिलेंगे। साथ ही विदेशी एयरपोर्ट पर भी करीब 900 स्लॉट मिलेंगे।
  • इस डील के तहत एअर इंडिया का मुंबई में स्थित हेड ऑफिस और दिल्ली का एयरलाइंस हाउस भी शामिल है। मुंबई के ऑफिस की मार्केट वैल्यू 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा है।

 

कंपनी पर जो कर्ज है उसका क्या होगा?

DIPAM द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, जो भी एअर इंडिया को खरीदेगा, उसे इसमें से 23,286.5 करोड़ रुपए का कर्ज का बोझ उठाना होगा। बाकी का कर्ज एअर इंडिया असेट होल्डिंग को स्पेशल परपज व्हीकल के जरिए ट्रांसफर किया जाएगा। जनवरी 2020 में जारी EoI में यह शर्त लगाई गई थी।

 

इसे एअर इंडिया की घर वापसी क्यों कहा जा रहा है?

बोली लगाने वालों में टाटा ग्रुप भी है। 1932 में जेआरडी टाटा ने देश में टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की थी, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दुनियाभर में एविएशन सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इस मंदी से निपटने के लिए योजना आयोग ने सुझाव दिया कि सभी एयरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए। मार्च 1953 में संसद ने एयर कॉर्पोरेशंस एक्ट पास किया। इस एक्ट के पास होने के बाद देश में काम कर रही 8 एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसमें टाटा एयरलाइंस भी शामिल थी। सभी कंपनियों को मिलाकर इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया बनाई गई। एअर इंडिया को इंटरनेशनल तो इंडियन एयरलाइंस को डोमेस्टिक फ्लाइट्स संभालने का जिम्मा दिया गया। अगर एअर इंडिया को टाटा ग्रुप खरीद लेता है, तो ये एक तरह से एअर इंडिया की घर वापसी होगी।

 

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एयर इंडिया के पास कुल कितनी प्रॉपर्टी है?

31 मार्च 2020 तक एयर इंडिया की कुल फिक्स्ड प्रॉपर्टी करीब 45,863.27 करोड़ रुपये है। इसमें एयर इंडिया की जमीन, बिल्डिंग्स, एयरक्राफ्ट फ्लीट और इंजन शामिल हैं। एयर इंडिया के पास 172 एयर क्राफ्ट है, इनमें से 87 पर मालिकाना हक है। एक एयर क्राफ्ट में 187 यात्री सफर कर सकते हैं। कंपनी के पास 20 एयर बस A 321 है। देश विदेश के बड़े एयरपोर्ट्स पर कंपनी के लैंडिंग व पार्किंग स्लॉट भी हैं

 

एयर इंडिया के कर्मचारियों का क्या होगा?

सरकार ने संसद में बताया में था कि गाइडेंस के आधार पर एयर इंडिया कर्मचारियों के हितों का पूरा खयाल रखा जाएगा। साथ ही, उन्हें भी पूरी तरह सुरक्षित रखा जाएगा।

 

एयर इंडिया का 68 साल का सफर

  • 1932 में जेआरडी टाटा ने इसकी शुरुआत की। तब इसका नाम टाटा एयर लाइंस था
  • 1946 में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद टाटा एयर लाइंस का नाम बदलकर एयर इंडिया कसर दिया गया और यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई
  • 1948 में 8 जून को एयर इंडिया में अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरी। यह मुंबई से लंदन तक की फ्लाइट थी।
  • 1953 में देश की सभी प्रााइवेट एयरलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया
  • 1954 में एयर इंडिया ने टोक्यो, बैंकॉक, सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग की फ्लाइट शुरू की।
  • 1962 में एयर इंडिया दुनिया की पहली ऑल जेट एयरलाइन बनी
  • 1997 में एयर इंडिया ऑनलाइन हो गई और कंपनी ने अपनी वेबसाइट लॉन्च कर दी
  • 2000 अटल बिहारी वाजपेयी (राजग) सरकार ने इसे बेचने की योजना बनाई। ​सरकार ने एयर इंडिया में 40% हिस्सा बेचने का फैसला किया था। इसके अलावा 10% हिस्सा कर्मचारियों को शेयर देने के रूप में और 10% घरेलू वित्तीय संस्थानों को देने का फैसला किया था।
  • 2005 में एयरइंडिया एक्सप्रेस लॉन्च की गई, यह कंपनी की लो कॉस्ट एयरलाइंस थी
  • 2007 में सरकार ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया
  • 2012 में एयर इंडिया भारतीय एविएशन मार्केट में चौथे स्थान पर खिसक गई
  • 2018 में सरकार ने एयर इंडिया के 76% हिस्सेदारी बेचने का एलान किया
  • 2020 में सरकार ने एयर इंडिया की पूरी 100% हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया

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