यूपी बोर्ड का 'डिजिटल डंडा': अब ऑनलाइन हाजिरी से कसेगी छात्रों-शिक्षकों पर नकेल!

 1 जुलाई से लागू हुआ नया नियम, 75% अटेंडेंस जरूरी; पर 'गरीब छात्रों' पर मंडराया संकट
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UP SCHOOL
उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपीएमएसपी) ने प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों (कक्षा 9 से 12 तक) में पारदर्शिता और अनुशासन को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा और डिजिटल कदम उठाया है। अब छात्रों और शिक्षकों की हाजिरी ऑनलाइन पोर्टल के जरिए दर्ज की जा रही है, यह व्यवस्था 1 जुलाई से पूरे प्रदेश में लागू हो गई है।READ ALSO:-मेरठ में भाजपा नेता की बेटी पर गिरफ्तारी की तलवार: मेडिकल कॉलेज में सीट आवंटन में गड़बड़ी में डॉ. शिवानी अग्रवाल समेत 35 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज

 

क्यों जरूरी हुई ऑनलाइन अटेंडेंस?
  • यूपीएमएसपी का मानना है कि यह तकनीक-आधारित बदलाव शिक्षा व्यवस्था को और मजबूत करेगा। इसके पीछे कई अहम उद्देश्य हैं:
  • नियमित उपस्थिति: अब छात्र-छात्राएं नियमित रूप से स्कूल आएंगे। यह उन छात्रों पर लगाम लगाएगा जो सिर्फ दाखिला ले लेते हैं और स्कूल नहीं आते।
  • शिक्षकों पर भी नजर: सिर्फ छात्र ही नहीं, शिक्षकों की नियमितता पर भी ऑनलाइन नजर रखी जा सकेगी, जिससे शिक्षण गुणवत्ता में सुधार आएगा।
  • अनुशासन में सुधार: बिना किसी सूचना के लगातार गैरहाजिर रहने वाले छात्रों के लिए यह एक कड़ा अनुशासन साबित होगा।
  • डिजिटल प्रमाणन: भविष्य में छात्रों के बोर्ड परीक्षा में शामिल होने के लिए उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड अब पारदर्शी और डिजिटल रूप से प्रमाणित होगा।

 

शिक्षा विभाग के अधिकारी इस कदम को स्कूल शिक्षा में एक सकारात्मक बदलाव मान रहे हैं।

 

75% अटेंडेंस की अनिवार्यता पर 'सियापा': गरीब बच्चों का क्या होगा?
हालांकि, इस नई ऑनलाइन उपस्थिति व्यवस्था को लेकर कुछ शिक्षक और प्रधानाचार्य चिंतित हैं। उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश अध्यक्ष सुशील कुमार सिंह ने इस पर पुनर्विचार की मांग की है।

 

उनका कहना है कि माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे गरीब और मजदूर परिवारों से आते हैं। ये बच्चे अक्सर अपनी पढ़ाई के साथ-साथ परिवार की मदद के लिए मजदूरी या अन्य काम करने को मजबूर होते हैं। ऐसे में, कई बार वे हफ्ते में एक या दो दिन ही स्कूल आ पाते हैं या देरी से पहुंचते हैं।

 OMEGA

सिंह ने चिंता जताई कि अगर किसी छात्र की उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम हुई, तो उसे एडमिट कार्ड नहीं मिल पाएगा और वह बोर्ड परीक्षा से वंचित हो जाएगा। उन्होंने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस व्यवस्था पर मानवीय आधार पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है, ताकि कोई भी योग्य छात्र सिर्फ अटेंडेंस कम होने के कारण परीक्षा से बाहर न हो जाए।

 

क्या आपको लगता है कि शिक्षा में अनुशासन और पारदर्शिता जरूरी है, या गरीब छात्रों की मजबूरियों को देखते हुए नियमों में ढील मिलनी चाहिए?
SONU

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