सोशल मीडिया पर 'लाइक' करना अपराध नहीं, 'शेयर' करना कानूनन गलत: इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

 भड़काऊ पोस्ट लाइक करने पर IT एक्ट की धारा 67 लागू नहीं होती, अश्लील सामग्री पर ही है प्रभावी
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Allahabad High Court
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उस पर लागू होने वाले कानूनों को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी सोशल मीडिया पोस्ट को सिर्फ 'लाइक' करना सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2008 की धारा 67 के तहत आपराधिक कृत्य नहीं है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति किसी पोस्ट को 'शेयर' या 'रीट्वीट' करता है, तो उसे उसके प्रसारण के रूप में देखा जा सकता है और तब कानून की संबंधित धाराएं आकर्षित हो सकती हैं, बशर्ते पोस्ट की सामग्री उस धारा के दायरे में आती हो।Read also:-मेरठ सौरभ हत्याकांड के बाद “नीला ड्रम” बना शादी का मज़ाक — गिफ्ट में ड्रम और झुनझुना देकर हंसी में उड़ाई गई दर्दनाक घटना

 

न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने यह फैसला आगरा के एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 67 विशेष रूप से अश्लील सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से संबंधित है। इसका दायरा ऐसी सामग्री तक सीमित है जो 'कामुक' (lascivious) हो या 'कामेच्छा को उत्तेजित करने वाली' (appeals to the prurient interest) हो। सामान्य रूप से भड़काऊ या राजनीतिक प्रकृति की पोस्ट पर यह धारा लागू नहीं होती है।

 

कोर्ट ने आगरा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में इमरान नामक एक व्यक्ति के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणियां कीं।

 

क्या था पूरा मामला?
यह मामला आगरा के मंटोला थाना क्षेत्र से जुड़ा था। इमरान पर आरोप था कि उसने 'चौधरी फरहान उस्मान' नाम की फेसबुक आईडी से प्रसारित एक पोस्ट को लाइक किया था। इस पोस्ट में लोगों से आगरा कलेक्ट्रेट पर इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन करने और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने की अपील की गई थी। पुलिस का दावा था कि इस पोस्ट के बाद एक विशेष समुदाय के लगभग 600-700 लोग बिना प्रशासन की अनुमति के इकट्ठा हो गए थे और जुलूस निकाला था, जिससे क्षेत्र की शांति व्यवस्था भंग हुई थी। पुलिस ने उस सोशल मीडिया पोस्ट को भड़काऊ माना था।

 

पुलिस की कार्रवाई और आरोपी का बचाव
पुलिस ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए खुद ही इमरान के खिलाफ आईटी एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की थी और जांच के बाद अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। पुलिस का आरोप था कि इमरान ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश फैलाए, जिसके परिणामस्वरूप इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठा हुई और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती उत्पन्न हुई। सीजेएम अदालत ने इस आरोप पत्र पर संज्ञान लेते हुए इमरान को बतौर आरोपी तलब किया था।

 

इमरान ने अपने खिलाफ शुरू हुई इस आपराधिक कार्यवाही को रद्द कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इमरान के वकील ने कोर्ट में पुरजोर तरीके से यह दलील रखी कि उनके मुवक्किल ने अपने फेसबुक अकाउंट से ऐसी कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट प्रसारित नहीं की थी जो आईटी एक्ट के प्रावधानों के तहत अपराध मानी जाए।

 

इसके जवाब में, सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि भले ही इमरान के फेसबुक अकाउंट पर वर्तमान में कोई आपत्तिजनक पोस्ट न मिले हों, क्योंकि उसने उन्हें डिलीट कर दिया होगा, लेकिन जांच के दौरान व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसी ही सामग्री पाई गई थी।

 

हाईकोर्ट का गहन विश्लेषण और अंतिम निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस द्वारा तैयार की गई केस डायरी और उपलब्ध साक्ष्यों का गहनता से अध्ययन किया। कोर्ट ने पाया कि पुलिस द्वारा इकट्ठा किए गए सबूतों के अनुसार, इमरान ने वास्तव में विवादास्पद पोस्ट को केवल 'लाइक' किया था। कोर्ट ने इस बिंदु पर विशेष ध्यान केंद्रित किया कि 'लाइक' करना, पोस्ट को 'प्रकाशित' (Publish) करने या 'प्रसारित' (Transmit) करने से भिन्न है। कोर्ट के अनुसार, कोई पोस्ट तब प्रकाशित मानी जाती है जब उसे मूल रूप से डाला जाता है, और उसका प्रसारण तब होता है जब उसे आगे शेयर या रीट्वीट किया जाता है। केवल 'लाइक' बटन पर क्लिक करना इन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता।

 

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 67 की भाषा और उसके उद्देश्य का विश्लेषण किया। कोर्ट ने दोहराया कि यह धारा विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अश्लील सामग्री के आदान-प्रदान को दंडित करने के लिए है। 'कामुक' और 'कामेच्छा को उत्तेजित करने वाले' जैसे शब्दों का प्रयोग यह स्पष्ट करता है कि धारा का फोकस यौन प्रकृति की सामग्री पर है। सामान्य राजनीतिक असंतोष या विरोध से संबंधित भड़काऊ मानी जाने वाली सामग्री, भले ही वह समाज में अशांति पैदा करने की क्षमता रखती हो, सीधे तौर पर धारा 67 के दायरे में नहीं आती है।

 

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर, इलाहाबाद हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि इमरान द्वारा एक सोशल मीडिया पोस्ट को 'लाइक' करना आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत कोई अपराध नहीं था, और न ही उपलब्ध सामग्री से उसके खिलाफ कोई अन्य आपराधिक आरोप सिद्ध होता है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस रिकॉर्ड में ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला जो इमरान को सीधे तौर पर किसी आपत्तिजनक या भड़काऊ पोस्ट से जोड़ता हो, सिवाय इसके कि उसने एक पोस्ट को लाइक किया था।

 OMEGA

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने सीजेएम आगरा की अदालत में इमरान के खिलाफ लंबित समस्त आपराधिक कार्यवाही को तत्काल प्रभाव से रद्द करने का आदेश दिया। इस फैसले से सोशल मीडिया पर यूजर्स के अधिकारों और जिम्मेदारियों की व्याख्या के संबंध में कुछ हद तक स्पष्टता आई है, विशेष रूप से 'लाइक' जैसे सामान्य इंटरैक्शन के कानूनी निहितार्थों को लेकर। हालांकि, कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि पोस्ट को 'शेयर' करना एक अलग मामला है और उसके कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
SONU

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