UP : IIT कानपुर ने बनाया कृत्रिम हृदय (Artificial Heart), मरीजों ट्रांसप्लांट किया जाएगा....
आईआईटी कानपुर और देश भर के हृदय रोग विशेषज्ञों ने इस कृत्रिम हृदय को विकसित किया है। जानवरों पर परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा। परीक्षण में सफलता के बाद दो साल में इंसानों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
Dec 25, 2022, 18:05 IST
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कानपुर: आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने एक कृत्रिम हृदय तैयार किया है, जो हृदय संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए मददगार साबित होगा। आईआईटी कानपुर के निदेशक अभय करंदीकर ने कहा कि कृत्रिम हृदय का जानवरों पर परीक्षण अगले साल शुरू होगा। उन्होंने कहा, अब हृदय प्रत्यारोपण आसान होगा। गंभीर मरीजों में कृत्रिम दिल लगाया जा सकता है। आईआईटी कानपुर और देश भर के हृदय रोग विशेषज्ञों ने इस कृत्रिम हृदय को विकसित किया है। जानवरों पर परीक्षण फरवरी या मार्च से शुरू होगा। परीक्षण में सफलता मिलने के बाद दो साल में इंसानों में ट्रांसप्लांटेशन किया जा सकता है।Read Also:-मैं अटल हूं फिल्म का मोशन पोस्टर रिलीज, सामने आया बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी का फर्स्ट लुक पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के गेटअप में, ट्रांसफॉर्मेशन देख हो जाएंगे दंग
करंदीकर ने कहा कि हृदय रोग तेजी से बढ़ रहा है और बड़ी संख्या में मरीजों को हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी जा रही है। उन्होंने कहा, ''मरीजों की पीड़ा कम करने के लिए कृत्रिम हृदय विकसित किया जा रहा है।'' उन्होंने कहा, '10 वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की टीम ने दो साल में इस आर्टिफिशियल हार्ट को तैयार किया है।
उन्होंने कहा कि डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को उपकरण और प्रत्यारोपण तैयार करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, भारत 80 फीसदी उपकरण और इम्प्लांट विदेशों से आयात करता है। भारत में केवल 20 प्रतिशत उपकरणों और इम्प्लांट्स का निर्माण किया जा रहा है। दिल के मरीजों के लिए ज्यादातर इम्प्लांट और स्टेंट का आयात किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, कोविड-19 ने हमें कुछ कठिन सबक सिखाए। कोविड से पहले भारत में वेंटिलेटर नहीं बनते थे। कोरोना संक्रमितों की जान बचाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने महज 90 दिनों में तैयार किया वेंटिलेटर। भारत में दो कंपनियां वेंटिलेटर बना रही हैं। भारत में विदेशी वेंटिलेटर की कीमत 10 से 12 लाख रुपये है जबकि भारतीय वेंटिलेटर सिर्फ 2.5 लाख रुपये में बन रहा है।
उन्होंने कहा, भारत में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। प्रति एक हजार की जनसंख्या पर मात्र 8 डॉक्टर हैं। इस कमी को एक बार में पूरा नहीं किया जा सकता। हालांकि सरकार तेजी से अस्पताल और मेडिकल कॉलेज खोल रही है। लेकिन आबादी और भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से डॉक्टर-स्टाफ का संकट बना रहेगा। ऐसे में जरूरत है कि चिकित्सा व्यवस्था को तकनीक से जोड़ा जाए।