प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में सीना ठोककर बोला झूठ, विपक्ष को घेरने के चक्कर में दहेज और बाल विवाह के खिलाफ हुए आंदोलनों को भी भुला दिया

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लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों के पक्ष में कई तर्क दिए। विपक्ष के यह कहने पर कि कानून नहीं मांगे थे, तो दिए क्यों? इस पर मोदी ने बाल विवाह, ट्रिपल तलाक, दहेज आदि का जिक्र करते हुए कहा कि ये कानून भी किसी ने नही मांगे थे, फिर भी बनाए गए। लेना-देना आपकी मर्जी, किसी ने आपके गले तो नहीं मढ़ा! मोदी ने कहा कि सामंती दौर गया, जब सरकार को जनता को बिना मांगे देना होगा।

हालांकि विपक्ष को घेरने के चक्कर में प्रधानमंत्री मोदी एक बहुत बड़ी चूक कर गए और सीना ठोककर झूठ बोल। दरअसल मोदी ने दहेज, ट्रिपल तलाक और बाल विवाह कानून के लिए यह कहा कि ये कानून बिना मांगे मिले हैं, जबकि असलियत यह है कि इन कानूनों को लागू करवाने के लिए देश में बड़े आंदोलन हुए और लंबी लड़ाई लड़ी गई। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को घेरने के चक्कर में इतिहास में दर्ज इन बड़े आंदोलनों को ही भुला दिया।

किसान आंदोलन पर सख्त हुए मोदी, बोले - किसान बताएं कौन सा हक छिन गया

आइए आपको बताते हैं दहेज, ट्रिपल तलाक और बाल विवाह कानून कब बने और इन्हें लागू कराने के लिए किसने आंदोलन किया।

दहेज प्रतिषेध अधिनियम : 10 साल आंदोलन चला
वर्ष 1961 में दहेज प्रथा के खिलाफ कानून (Dowry Prohibition Act) बना था, लेकिन लोगों का कहना था कि यह कानून बहुत लचीला था। इस कानून में सख्त प्रावधानों को शामिल करने के लिए 1972 में शहादा आंदोलन शुरू हुआ। 3 साल बाद 1975 में प्रोग्रेसिव ऑर्गेनाइजेशन ऑफ वुमन (Progressive organization of women) ने हैदराबाद में आंदोलन शुरू किया। इसमें 2 हजार महिलाएं शामिल थीं। 1977 में इस आंदोलन को दिल्ली की महिलाओं का साथ मिला।

1979 में दिल्ली की सत्यरानी चंदा की बेटी की दहेज के लिए जलाकर हत्या कर दी गई, जिसके बाद उन्होंने कड़े कानूनों के लिए मोर्चा खोल दिया। 1983 में डावरी एक्ट को संशोधित किया गया। इसके तहत दहेज की मांग और दहेज के लिए होने वाली हिंसा की रोकथाम के लिए कानून सख्त किया गया।

बाल विवाह कानून के लिए राजा राममोहन ने की थी मांग
बाल विवाह देश की एक बहुत बड़ी कुरीति था। छोटी उम्र में बच्चों का विवाह कर दिया जाता था। छोटी उम्र में मां बनने के कारण कई बच्चियों की मौत हो जाती थी। बाल विवाह को रोकने के लिए राजा राममोहन राय ने आंदोलन शुरू किया। उनकी मांग थी कि कम उम्र की लड़कियों के विवाह पर रोक लगाई जाए। उनकी मांग पर 28 सितंबर 1929 में ब्रिटिश सरकार ने बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम-1929 (Child Marriage Restraint Act-1929) को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया (Imperial Legislative Council of India) में पास किया था।

इसके तहत लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई। बाद में हरविलास शारदा की पहल पर इस कानून में संशोधन कर लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कों के लिए 21 साल की गई। इस अधिनियम को 'शारदा अधिनियम' के नाम से भी जाना जाता है।

तीन तलाक कानून बनाने के लिए मुस्लिम महिलाओं ने की थी मांग
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाई थी। पांच जजों की पीठ ने तुरंत तलाक देने के इस रिवाज को असंवैधानिक करार दिया था।कोर्ट ने यह फैसला उत्तराखंड की शायरा बानो की याचिका पर सुनाया था। शायरा को उनके पति ने तीन बार तलाक लिख कर चिट्टी भेजी थी, जिसके बाद उन्होंने शायरा छोड़ दिया था। इसी के बाद शायरा ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। तब शायरा की याचिका के साथ चार और मुस्लिम महिलाओं की ऐसी ही याचिकाएं जोड़ दी गई थीं।

25 जुलाई को लोकसभा ने मुस्लिम वुमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल को पारित कर दिया। यह बिल तीन तलाक के नाम से चर्चित है। यह कानून भी सरकार ने अपने आप नहीं बल्कि कई मुस्लिम महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद बनाया था।

नाम वैल्थ क्रिएटर्स का, बचाव अडाणी-अंबानी का
प्रधानमंत्री ने किसानों के निशाने पर आए अडाणी और अंबानी जैसे उद्यमियों का भी बचाव किया। उन्होंने किसी उद्यमी का नाम लिए बिना कहा कि देश के लिए प्राइवेट सेक्टर भी जरूरी है। पीएम ने कोरोना वैक्सीन की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देश आज मानवता के काम आ रहा है तो इसमें प्राइवेट सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान है। देश के लिए वैल्थ क्रिएटर्स जरूरी हैं। निजी क्षेत्र के खिलाफ अनुचित शब्दों का इस्तेमाल करने से अतीत में कुछ लोगों को वोट मिल सकते थे, लेकिन अब वह समय नहीं।

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