अब खुलेगा जातियों का 'डेटा पिटारा': ऐतिहासिक जनगणना में पहली बार होगी जातिवार गिनती, सामाजिक न्याय का नया अध्याय
केंद्र सरकार का क्रांतिकारी कदम: पीएम मोदी की अध्यक्षता में CCPA ने लिया फैसला; सटीक आंकड़े योजनाओं को बनाएंगे अधिक प्रभावी, दूर होगी पारदर्शिता की कमी
Apr 30, 2025, 22:48 IST
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भारत की जनगणना के इतिहास में एक अभूतपूर्व परिवर्तन होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय पर मुहर लगा दी है, जिसके तहत अब आगामी राष्ट्रीय जनगणना अभ्यास में जाति आधारित आंकड़े भी एकत्रित किए जाएंगे। यह फैसला स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से चली आ रही उस परंपरा को तोड़ता है, जिसमें जनगणना में जातिगत विवरण को शामिल नहीं किया जाता था। सरकार का मानना है कि यह कदम देश के सामाजिक ताने-बाने को बेहतर ढंग से समझने और समाज के हर तबके को समुचित पहचान तथा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की दिशा में निर्णायक साबित होगा।READ ALSO:-🥛 दूध का भी गर्म हुआ मिज़ाज! मदर डेयरी के बाद अब अमूल ने बढ़ाए दाम, आम आदमी की जेब पर डाला असर
जनगणना का अटूट हिस्सा बनी जाति गणना:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के प्रावधानों के अनुसार, जनगणना पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है और इसे संघ सूची में शामिल किया गया है। बीते वर्षों में, यद्यपि कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण करने का प्रयास किया, लेकिन उनकी पद्धतियों, आंकड़ों की सटीकता और उद्देश्यों पर अक्सर सवालिया निशान लगते रहे हैं। इन सर्वेक्षणों को कई बार राजनीतिक लाभ से प्रेरित होने के आरोपों का सामना भी करना पड़ा है। इन चुनौतियों और विवादों को देखते हुए, केंद्र सरकार ने अब यह सुनिश्चित किया है कि जाति गणना को एक पृथक और संभावित रूप से त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया के बजाय, देशव्यापी जनगणना के मुख्य ढांचे का ही अभिन्न अंग बनाया जाए। इससे प्राप्त होने वाले डेटा की विश्वसनीयता, एकरूपता और व्यापकता अतुलनीय रूप से बढ़ेगी।
सामाजिक न्याय के स्वप्न को मिलेगी नई उड़ान:
सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय के पीछे का मूल उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तथा वंचित वर्गों की वास्तविक स्थिति का सटीक आकलन करना और उन्हें प्रभावी ढंग से मुख्यधारा में लाना है। सरकार का मानना है कि सटीक जातिवार आंकड़ों की उपलब्धता से न केवल इन वर्गों की पहचान सुनिश्चित होगी, बल्कि उनके उत्थान के लिए लक्षित और प्रभावी नीतियां बनाना संभव हो सकेगा। यह कदम देश में सामाजिक न्याय के आदर्शों को और अधिक सशक्त करेगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि विकास का फल समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। सरकार ने इस संदर्भ में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण का उदाहरण देते हुए कहा कि जब इस वर्ग को 10% आरक्षण दिया गया था, तब किसी भी जाति या समुदाय ने इसका विरोध नहीं किया। यह दर्शाता है कि जब निर्णय तर्कसंगत, निष्पक्ष और समावेशी होते हैं, तो समाज उन्हें व्यापक स्वीकार्यता देता है। जाति गणना का निर्णय भी इसी भावना के अनुरूप है।
एसईसीसी से आगे: एक समावेशी डेटा क्रांति:
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी जाति आधारित आंकड़ों के संग्रह का समर्थन किया गया था और इसके लिए एक मंत्री समूह गठित हुआ था। हालाँकि, उस प्रयास के परिणामस्वरूप केवल सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) 2011 के रूप में डेटा एकत्र किया गया था, जो मुख्य जनगणना से अलग एक सर्वेक्षण था और इसके डेटा की उपयोगिता तथा सटीकता पर कुछ सीमाएं थीं। अब मोदी सरकार ने जाति गणना को सीधे मुख्य जनगणना प्रक्रिया में एकीकृत करने का जो निर्णय लिया है, वह उस पिछले प्रयास से कहीं आगे एक निर्णायक कदम है। इससे प्राप्त होने वाले विस्तृत और विश्वसनीय आंकड़े भारतीय समाज की जटिल परतों को उजागर करेंगे और नीति निर्माताओं को जमीनी हकीकत के आधार पर योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। यह निर्णय सामाजिक समानता, समावेशी विकास और डेटा-आधारित शासन की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होने की क्षमता रखता है।
