चमोली हादसे से आई केदारनाथ त्रासदी की याद, 8 साल पहले मारे गए थे 10000 से ज्यादा लोग, लाखों हुए थे बेघर
उत्तराखंड के चमोली जिले के रैनी जोशीमठ में रविवार सुबह ग्लेशियर फट गया। इस हादसे में 150 से ज्यादा लोग लापता हैं। बताया जा रहा है कि ग्लेशियर फटने से धौली नदी में बाढ़ आ गई है। इससे चमोली से हरिद्वार तक खतरा बढ़ गया है। सूचना मिलते ही प्रशासन की टीम मौके के लिए रवाना हो गई है। वहीं, चमोली जिले के नदी किनारे बसें लोगों को गांव खाली करने के लिए पुलिस लाउडस्पीकर से अलर्ट कर रही है। कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी किनारे बसे लोग मकान खाली करने में जुटे। ऋषि गंगा और तपोवन हाईड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं।
माना जा रहा है इस हादसे में उत्तराखंड में भारी तबाही आई है। यह पहली बार नहीं है जब उत्तराखंड में जलप्रलय आई है। आज से करीब 8 साल पहले 16 जून 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के कारण जलप्रलय आई थी, इस हादसे में यह पर्यटन भूमि पुरी तरह तबाह हो गई थी और लगभग 10000 मारे गए थे, जबकि कई लोग आज तक लापता हैं। हम आपको बता रहे हैं 16 जून 2013 की उस शाम क्या हुआ था।
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क्या हुआ था 16 जून 2013 को
दरअसल 13 जून से 17 जून के बीच में उत्तराखंड में काफी बारिश हुई थी। यह बारिश सामान्य तौर बारिश से काफी ज्यादा थी, जिससे चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया। ग्लेशियर पिघलने से मंदाकिनी नदी उफान पर आ गई और इससे आई बाढ़ ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर दिया।
इसके बाद बारिश का पानी पहाड़ों से होकर सीधे केदारनाथ मंदिर में आ गया, जिससे हजारों लोग बाढ़ में बह गए। हालांकि, सबसे ज्यादा तबाही केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंड साहिब जैसे धार्मिक स्थानों में हुई। केदारनाथ के शिव मंदिर में लाशों का अंबार लग गया था।
लाखों लोग हुए थे बेघर
आंकड़े के मुताबिक 2013 में आई जलप्रलय में लगभग 10000 लोग मारे गए थे, लाखों लोग बेघर हो गए और करोड़ों रुपयों का नुकसान हो गया। अधिकतर रास्ते कट गए थे। कई पहाड़ दरकने से सबकुछ मलबे में तब्दील हो गया था। 8वीं शताब्दी में बने भगवान केदारनाथ के मंदिर को भी नुकसान पहुंचा था। रविवार को उत्तराखंड के चमोली में हुए इस हादसे।को देखकर 8 साल पहले आई उस त्रासदी की याद आ गई, जिसके बारे में सोचकर आज भी लोग सिहर जाते हैं।
10000 जवानों ने किया था रेस्क्यू
त्रासदी के दौरान बचाव कार्य में भारतीय सेना के दस हज़ार जवान, 11 हेलिकॉप्टर्स, नेवी के गोताखोर और लगभग 45 एयरफोर्स विमानों को लगाया गया था। ये आपदा उत्तराखंड के लोगों के लिए भी किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। इंडो-चीन सीमा पर तैनात होने वाले ITBP के जवानों ने एयरफोर्स और सेना के आने से पहले ही मोर्चा संभालकर कई लोगों की जिंदगी बचाई थी।
पहाड़ों पर अत्यधिक निर्माण और आवाजाही से आई थी आपदा
बादल फटने के कारण हुई बहुत तेज बारिश को इस तबाही का कारण बताया गया, लेकिन पर्यावरणविद् मानते हैं कि मानवीय कारणों से यह आपदा आई थी। पहाड़ों पर अत्यधिक निर्माण कार्य करने, बहुत अधिक पर्यटकों की आवाजाही, खनन के कारण पहाड़ों और पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा, जो इस त्रासदी का कारण बना। हालांकि, बहुत ज्यादा बारिश के कारण भी यह बाढ़ आई। यह सब इतना अचानक हुआ कि किसी को संभलने का मौका नहीं मिला।
तेजी से हुए निर्माण कार्यों के बाद हालात सुधरे और ये क्षेत्र फिर विकसित होने लगे हैं। वहीं, इस हादसे के बाद सरकार भी संभली। यात्रा पर आने वाले हर यात्री का पंजीकरण करवाना जरूरी किया गया, जिससे श्रद्धालुओं का रिकॉर्ड रखा जा सके। इस त्रासदी के 5 साल बाद देवभूमि के लोगों का जीवन पटरी पर तो लौट आया, लेकिन आज भी वे इस घटना को किसी बुरे सपने से कम नहीं समझते हैं।
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