टिहरी बांध टूटा तो उत्तराखंड से लेकर प. बंगाल तक होगी भयानक तबाही; मेरठ बुलंदशहर तक भर जाएगा 10 मीटर तक पानी

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चमोली जिले में ऋषिगंगा और फिर धौलीगंगा पर बने हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध टूटने से गंगा और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है। इसे देखते हुए राज्य में चमोली से लेकर हरिद्वार अलर्ट जारी कर दिया गया है। वहीं, टीएचडीसी के टिहरी बांध में भी टरबाइन का संचालन बंद कर दिया गया है। टिहरी बांध से इन दिनों 200 क्यूमेक्स पानी भागीरथी नदी में छोड़ा जा रहा था लेकिन, चमोली में बांध टूटने के बाद एडीसी प्रशासन ने भागीरथ में पानी छोड़ना बंद कर दिया है। इस संबंध में टीएचडीसी प्रशासन ने नेशनल ग्रिड को भी अवगत करा दिया है। टरबाइन का संचालन बंद होने से अब कुछ समय तक टिहरी बांध से बिजली उत्पादन नहीं हो पाएगा।

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दरअसल टिहरी बांध देश का सबसे ऊंचा बांध है। इस बांध की ऊंचाई 260.5 मीटर है। उच्च भूकंप संभावित क्षेत्र में बना यह बांध उत्तराखंड के साथ ही यूपी और दिल्ली को भी रोशन कर रहा है। दिल्ली और यूपी के कुछ क्षेत्रों में बांध के जल का इस्तेमाल पेयजल और सिंचाई के लिए भी किया जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह बांध काफी अहम माना जाता है। रविवार को चमोली में आई जलप्रलय से बांध टूटने के बाद लोगों के मन में जो सबसे पहला सवाल उठ रहा है वह यही है कि अगर टिहरी बांध टूट गया तो क्या होगा। तो आज हम आपको इसी पहलू से अवगत कराने जा रहे हैं कि टिहरी बांध कितना मजबूत है और यदि इसे नुकसान हुआ तो अंजाम क्या होगा....

1972 में निर्माण, 2006 में शुरू हुआ उत्पादन

टिहरी बांध उत्तराखंड के टिहरी जिले में बना है। साल 1972 में टिहरी बांध के निर्माण को मंजूरी मिली थी और 1977-78 में बांध का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। 29 अक्टूबर 2005 को टिहरी बांध की आखिरी सुरंग बंद हुई और झील बननी शुरू हुई। जुलाई 2006 में टिहरी बांध से विद्युत उत्पादन शुरू हुआ। टिहरी बांध का झील क्षेत्र 42 वर्ग किमी लंबा है। जबकि बांध दीवार की शीर्ष पर लंबाई 575 मीटर है। बांध दीवार की शीर्ष पर चौड़ाई 25.5 मीटर से 30.5 मीटर तक फैलाव है। बांध दीवार की तल पर चौड़ाई 1125 मीटर है।

डैम के निर्माण से उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में आने वाली बाढ़ से कमी आई है। वहीं टिहरी डैम में बिजली उत्पादन से देश को हर साल 2000 करोड़ रुपये का फायदा होता है।

डिजाइन पर उठे थे सवाल, चेतावनी को किया नजरअंदाज

टिहरी बांध का डिजाइन, जिसे रूसी एवं भारतीय विशेषज्ञों ने तैयार किया है। 1977-78 में स्थानीय लोगों ने टिहरी परियोजना के विरुद्ध आन्दोलन किया था। इसके अलावा रोम स्थित भूकंप मापने संबंधी स्वतंत्र एजेंसी आइएपीजी ने भी बांध के डिजाइन पर सवाल उठाते हुए चेतावनी दी थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस सब को दरकिनार कर बांध का निमार्ण कराया। संस्था का कहना था कि यह बांध केवल 9 मिमी तीव्रता का भूकंप झेल सकता है, इससे ज्यादा तीव्रता का भूकंप आने पर यह बांध धराशायी हो जाएगा और भयानक परिणाम भुगतने होंगे। टिहरी बांध उच्च भूकंप जोन वाले क्षेत्र में बना हुआ है।

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अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जहां भी चट्टान आधारित बांध बनते हैं वे अति सुरक्षित क्षेत्र में बनने चाहिए। प्रसिद्ध अमरीकी भूकम्प वेत्ता प्रो. ब्राने के अनुसार, “यदि उनके देश में यह बांध होता तो इसे कदापि अनुमति न मिलती।” क्योंकि यह बांध उच्च भूकम्प वाले क्षेत्र में बना है।

हरिद्वार, ऋषिकेश का नामोनिशां तक न बचेगा

भूकंप या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा की स्थिति में यदि यह बांध टूटा तो जो तबाही मचेगी, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। इस बांध के टूटने पर प. बंगाल तक इसका व्यापक दुष्प्रभाव होगा। मेरठ, हापुड़, बुलन्दशहर में साढ़े आठ मीटर से लेकर 10 मीटर तक पानी ही पानी होगा। हरिद्वार, ऋषिकेश का नामोनिशां तक नहीं बचेगा। 

पत्थर और मिट्टी से बनी हैं बांध की दीवारें
चूंकि टिहरी जिला उच्च तीव्रता वाले भूकंप जोन का क्षेत्र है इसलिए नुकसान को रोकने के लिए टिहरी बांध को रॉकफिल बनाया गया। इसके लिए टिहरी बांध की दीवार को पूरी तरह पत्थर और मिट्टी से भरकर बनाया गया। इस बांध में भागीरथी और भिलंगना नदी का पानी इकट्ठा होता है।

दिल्ली और यूपी को पेयजल उपलब्ध कराता है बांध
फिलहाल यह बांध एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करता है और वहीं 400 मेगावाट बिजली का उत्पादन कोटेश्वर बांध से होता है। इस बांध की ऊंचाई 260.5 है। वहीं इसका जलाशय 42 वर्ग किमी लंबा है। टिहरी बांध से हर दिन 2,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई और 102.20 करोड़ पेयजल दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड को उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।

2400 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य

एक हजार मेगावाट उत्पादन के लिए अभी पंप स्टोरेज प्लांट का काम किया जा रहा है। इसका काम पूरा होने के बाद टिहरी बांध पूर्ण रूप से चालू हो सकेगा और 2400 मेगावाट का बिजली उत्पादन हो सकेगा

बांध के निर्माण में डूबे थे 37 गांव

इस जल विद्युत परियोजना के लिए पुराने टिहरी शहर को जलमग्न होना पड़ा था। इसमें 125 गांवों पर असर पड़ा था। इस दौरान 37 गांव पूर्ण रूप से डूब गए थे जबकि 88 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए थे। इन इलाकों में रहने वाले लोगों को नई टिहरी और देहरादून के आस-पास के क्षेत्रों में विस्थापित किया गया था।

बांध की है तीन इकाइयां

टिहरी बांध की तीन इकाइयां हैं। पहली 1000 मेगावाट वाली टिहरी बांध इकाई, दूसरी 400 मेगावाट वाली कोटेश्वर जल विद्युत परियोजना इकाई और तीसरी 1000 मेगावाट टिहरी पंप स्टोरेज परियोजना इकाई जो अभी निर्माणाधीन है।

टिहरी बांध मध्य हिमालयी फाल्ट (दरार) पर है

हैदराबाद स्थित नैशनल जीयोफिजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक शोध के अनुसार, टिहरी बांध मध्य हिमालयी फाल्ट (दरार) पर है। यह दरार तिब्बती प्लेट से बनी है। ये प्लेट भारत को लगातार एक सदी के अंतराल में दक्षिण की ओर धकेल रही है। टिहरी बांध को 1972 में बनाया गया। तब तक हिमालय के विघटन की जानकारी उपलब्ध नहीं थी। तब इस बांध को इसी आधार पर डिजाइन किया गया था कि इस क्षेत्र में 7.2 रिक्टर स्केल से अधिक का भूकंप आ ही नहीं सकता, लेकिन लेकिन बाद के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि यहां 8.5 रिक्टर स्केल का भी भूकंप आ सकता है जो इस क्षेत्र के लिए भयानक हो सकता है। 1991 में उत्तरकाशी में 8.5 तीव्रता का भूकंप आया था।

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