बाबुल की राजनीति से विदाई: फिल्म इंडस्ट्री के लिए सुप्रिया बराल से बदलकर नाम रखा था बाबुल सुप्रियो

बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से सन्यास ले लिया है। उन्होंने कहा कि मैं एक महीने के अंदर सांसद के पद से इस्तीफा दे दूंगा और फिर मुझे मिला सरकारी घर खाली कर दूंगा।
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babul supriyo
बाबुल सुप्रियो राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। उन्होंने शनिवार को सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट लिखकर राजनीति छोड़ने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मैं एक महीने के अंदर सांसद के पद से इस्तीफा दे दूंगा और फिर मुझे मिला सरकारी घर खाली कर दूंगा।

 

म्यूजिकल फैमिली से आये बाबुल अपने दादा बनिकंथा एनसी बराल से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने नब्बे के दशक में हिंदी सिनेमा में प्ले बैक सिंगर के रूप में अपना करियर बनाया। खास तौर पर हिंदी, बंगाली और उड़िया भाषाओं में गाया। हालांकि उन्होंने अपने करियर 11 अन्य भाषाओं में भी सिंगिंग की है। आपको बताते हैं बाबुल के फ़िल्मी करियर की कुछ खास बातें।

 

फिल्मों के लिए बदला नाम
उन्होंने कई इंटर-स्कूल और इंटर-कॉलेज म्यूजिक कम्पोज़िशन्स जीते। वे ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन में परफ़ॉर्मर रहे। जब उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री ली, तो उन्होंने अपना नाम सुप्रिया बराल से बदलकर बाबुल सुप्रियो कर लिया।

 

दो शादियां कीं, पहली 20 साल चली
सुप्रियो की पहली पत्नी रिया से मुलाकात टोरंटो में शाहरुख खान के एक कॉन्सर्ट के दौरान हुई थी। दोनों ने 1995 में शादी की। दोनों के एक बेटी है शर्मीली, जिसका जन्म 1996 में हुआ था। शादी के 20 साल बाद सुप्रियो और रिया अक्टूबर 2015 में अलग हो गए थे। इसके बाद बाबुल ने 9 अगस्त 2016 को जेट एयरवेज की एक एयर होस्टेस रचना शर्मा से दूसरी शादी की।

 

बैंक की जॉब छोड़ चुना था सिंगिंग को करियर
बीस साल की उम्र में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में कुछ वक्त तक काम करने के बाद, सुप्रियो ने सिंगिंग को फुल टाइम करियर के रूप में चुना। वे 1992 में मुंबई आ गए। कल्याणजी ने उन्हें ब्रेक दिया और उन्हें अपने लाइव शो में विदेश में परफॉर्म करने के लिए ले गए। 1993 में उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ कनाडा और अमेरिका का टूर किया। वे 1997 और 1999 में आशा भोंसले के साथ अमेरिका भी गए। प्लेबैक सिंगिंग के अलावा, उन्होंने कई स्टेज शो भी किए हैं।

 

कहो न प्यार है...से मिला था फेम
उनकी सफलता 2000 में कहो ना... प्यार है में दिल ने दिल को पुकारा.. के साथ आई, जो ऋतिक रोशन की पहली फिल्म थी। उनके कुछ अन्य लोकप्रिय बॉलीवुड सॉन्ग्स में परी परी है एक परी (हंगामा), हम तुम (हम तुम) और चंदा चमके चम चम (फना) हैं। वे हिट टीवी शो के फॉर किशोर के एंकर रहे। उन्होंने बालाजी टेलीफिल्म्स के शो में कई ओपनिंग थीम्स को अपनी आवाज़ दी थी।

 

ये मोहब्बत कभी कम नहीं होगी
बाबुल ने एक बार कहा था कि - कई लोग सवाल खड़ा करते हैं कि सियासत में होने के बावजूद मैं गाना क्यों गाता हूं। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि जिस काम से लोगों का मन ख़ुश हो, वो करना ही चाहिए, फिर मेरी तो पहचान ही सिंगिंग है। उससे दूर होकर बाबुल का अर्थ क्या होगा?

 

साढ़े चार साल की उम्र से गाना सीख रहा हूं और ये मोहब्बत कभी कम नहीं होगी। 6 महीने पहले ही सिंगल शायरा आया, जिसके अलहदा अंदाज़ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया। मेरी जानकारी के मुताबिक, शायद मैं इकलौता ऐसा केंद्रीय मंत्री हूं, जो पद पर रहते हुए भी गायन करता है।

 

सोशल मीडिया पर लिखा- दूसरी पार्टी में नहीं जाऊंगा, बाद में पोस्ट एडिट की
बाबुल ने अपनी पोस्ट में लिखा कि मैं किसी दूसरी पार्टी में नहीं जा रहा हूं। हमेशा से बीजेपी का सदस्य रहा हूं और रहूंगा, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्होंने अपनी पोस्ट एडिट की और उससे हमेशा बीजेपी में रहने वाली लाइन हटा दी।

 

चोललाम: यानी अब चलता हूं...
अलविदा!

मैंने सब कुछ सुना- पिता, मां, पत्नी, बेटी, एक-दो प्यारे दोस्त.. सबकी राय के बाद ऐसा महसूस हुआ कि मुझे अब राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। हां, लेकिन ये भी साफ कर दूं कि मैं किसी और पार्टी में नहीं जा रहा हूं- #TMC, #कांग्रेस, #CPIM, कहीं नहीं। मुझे किसी दूसरी पार्टी के नेताओं ने फोन भी नहीं किया है। मैं कहीं नहीं जा रहा हूं। मैं एक टीम प्लेयर हूं! हमेशा एक टीम का साथ दिया है #MohunBagan (बंगाल की फुटबॉल टीम मोहन बगान) और राजनीति में सिर्फ भाजपा (पश्चिम बंगाल) का.. बस !!

 

कुछ देर रुके.. कुछ मन में रखा, कुछ तोड़ा.. कहीं अपने काम से तुम्हें खुश किया, कहीं निराश किया। आप आकलन नहीं करेंगे। मन में आने वाले तमाम सवालों के जवाब देने के बाद कहता हूं.. अपनी तरह कहता हूं.. अब चलता हूं

 

यदि आप सामाजिक कार्य करना चाहते हैं, तो आप इसे राजनीति में आए बिना कर सकते हैं। पिछले कुछ दिनों में मैंने बार-बार सोचा और राजनीति छोड़ने का मन बनाया। मैं अपना सरकारी घर एक महीने में छोड़ दूंगा और सांसद पद से भी इस्तीफा दे दूंगा।

 

पिछले कुछ दिनों में मैं अमित शाह और जेपी नड्डा जी के पास गया और उन्हें बताया कि मैं क्या महसूस कर रहा हूं। मैं उनका प्यार कभी नहीं भूल सकता। मेरी हिम्मत नहीं उनके पास जाकर ये कहूं। मैंने काफी पहले ही फैसला कर लिया था तो अब उनके पास जाऊंगा तो लगेगा कि मैं मोलभाव कर रहा हूं और जब ये ठीक नहीं है तो मैं नहीं चाहता उन्हें गलत संकेत मिले। मैं प्रार्थना करूंगा कि वो मुझे गलत न समझें।

 

लेकिन मुझे एक सवाल का जवाब देना है क्योंकि यह प्रासंगिक है! सवाल यह है कि मैंने राजनीति क्यों छोड़ी? क्या इसका मंत्रालय छोड़ने से कोई लेना-देना है? हां है- वहां कुछ होना चाहिए! मैं घबराना नहीं चाहता, इसलिए जैसे ही इस प्रश्न का उत्तर दूंगा, यह ठीक होगा। इससे मुझे भी शांति मिलेगी।

 

झगड़े से पार्टी के वरिष्ठ नेता आहत हो रहे हैं...
तब भाजपा के टिकट से मैं अकेला था (अहलुवालियाजी के सम्मान में - दार्जिलिंग सीट में जीजेएम भाजपा की सहयोगी थी) लेकिन आज भाजपा बंगाल में मुख्य विपक्षी दल है। आज पार्टी में कई नए युवा तुर्क नेता हैं और साथ ही कई वरिष्ठ नेता भी हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि उनकी अगुआई वाली टीम यहां से काफी आगे जाएगी। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज पार्टी में किसी व्यक्ति का होना कोई बड़ी बात नहीं है और मेरा दृढ़ विश्वास है कि इसे स्वीकार करना ही सही निर्णय होगा!

 

एक और बात... बंगाल चुनाव से पहले ही कुछ मुद्दों पर राज्य नेतृत्व के साथ मतभेद थे। कुछ मुद्दे सार्वजनिक रूप से सामने आ रहे थे। कहीं न कहीं मैं इसके लिए जिम्मेदार हूं (मैंने एक फेसबुक पोस्ट पोस्ट की जो पार्टी अनुशासन की श्रेणी में आती है) अन्य नेता भी जिम्मेदार हैं। हालांकि मैं यह नहीं जानना चाहता कि आज कौन जिम्मेदार है, लेकिन असहमति और झगड़े से पार्टी के वरिष्ठ नेता आहत हो रहे हैं। यह समझने के लिए 'रॉकेट साइंस' के ज्ञान की जरूरत नहीं है कि यह किसी भी तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ता है। इस समय यह पूरी तरह से अप्रत्याशित है, इसलिए आसनसोल की जनता को अनंत आभार और प्यार देकर दूर जा रहा हूं।

 

मुझे विश्वास नहीं होता कि मैं कहीं गया था - मैं 'मैं' के साथ था, इसलिए मैं कहीं जा रहा हूं, आज ऐसा नहीं कहूंगा। कई नए मंत्रियों को अभी तक सरकारी आवास नहीं मिला है इसलिए मैं एक महीने में अपना घर छोड़ दूंगा (जितनी जल्दी हो सके - शायद उसके पहले भी)।

 

मैंने वही किया, जो 1992 में भी किया था
बाबुल सुप्रियो ने लिखा कि फ्लाइट में स्वामी रामदेवजी से एक छोटी सी बातचीत हुई थी। मुझे यह बिल्कुल पसंद नहीं आया जब मुझे पता चला कि भाजपा बंगाल में ताकत से तो लड़ेगी, लेकिन एक भी सीट जीतने की उम्मीद नहीं है। ऐसा क्यों सोचा गया। बंगाली तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी को भी प्रधानमंत्री चुना गया। इन दोनों को भी बंगाल ने प्यार दिया था। आज देश ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार माननीय नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री चुना। अगले भी वहीं होंगे। क्या बंगाल इसके उलट सोचेगा? बिल्कुल नहीं।

 

मैंने वही किया जब मैंने 1992 में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में अपनी नौकरी छोड़ दी और मुंबई भाग गया, मैंने आज भी वही किया है !!! तो फिर चलता हूं... हां कुछ बातें बाकी हैं.. शायद किसी दिन बात होगी..

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