कोवैक्सीन : टीकाकरण नहीं ट्रायल हुआ, वैक्सीन लगवाने वालों से सहमति पत्र पर कराए जा रहे हस्ताक्षर

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भारत में कोरोना से जंग में टीकाकरण शुरू हो गया है। 2 दिन में देश में करीब 2 लाख 23 हजार फ्रंट लाइन वरियर्स को टीका लग चुका है। 400 से ज्यादा लोगों में वैक्सीन के साइड इफेक्ट भी नजर आए। उल्टी, सर दर्द, पसीना आना और सीने में भारीपन जैसे लक्षण इन लोगों में दिखे, इनमें से 3 को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

देश में जिन दो टीकों के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी मिली है इनमें सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन शामिल हैं। कोवैक्सीन पूरी तरह स्वदेशी वैक्सीन है। वहीं कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका ने विकसित किया है, जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट बना रहा है। ऑक्‍सफोर्ड एस्‍ट्राजेनेका की वैक्‍सीन कोविशील्‍ड को लेकर आपत्तियां तो सामने नहीं आई हैं लेकिन भारत बायोटेक की कोवैक्सीन पर विपक्षी दलों समेत कई एक्सपर्ट ने सवाल उठाया है। दिल्ली में तो कुछ स्वास्थ्य कर्मियों ने कोवैक्सीन की जगह कोविशील्ड लगवाने तक की मांग की।

दरअसल कोवैक्सीन लगवाने वाले लोगों से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाए जा रहे हैं। दरअसल, इस तरह का सहमति पत्र केवल ह्यूमन या क्लिनिकल ट्रायल के दौरान भरवाया जाता है। जिसमें कहा गया है कि "मैं सरकार को वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल मोड पर खुद के टीकाकरण करने की अनुमति देता हूं।" पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर किसी लाभार्थी पर इस वैक्सीन का गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है तो उसे विशेष सरकारी या अधिकृत केंद्रों और अस्पतालों में स्तरीय चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। अगर यह साबित हो जाता है कि वैक्सीन के चलते किसी पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ा है तो भारत बायोटेक द्वारा उसे मुआवजा भी दिया जाएगा। टीका लगवाने वालों को एक फ़ैक्टशीट और 7 दिन में प्रतिकूल प्रभावों की सूचना देने के लिए एक प्रपत्र भी दिया गया है। इसमें उन्हें बुखार, सिर दर्द जैसे लक्षणों को नोट करना होगा।

सहमति पत्र में यह भी कहा गया है कि "वैक्सीन लगवाने के लिए मेरे द्वारा दी गई सभी जानकारी सरकार के टीकाकरण कार्यक्रम के लिए बनाए गए डेटाबेस में संग्रहीत की जा सकती है और सरकार द्वारा दी गई सभी जानकारी की मैं गोपनीयता बनाए रखूंगा।

सहमति पत्र पर हस्ताक्षर क्यों

भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे सकारात्मक आए हैं। यह वैक्सीन कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज पैदा करती पाई गई है, लेकिन इसके तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे अभी आने बाकी हैं। तीसरे चरण के ट्रायल के नतीजे आने से पहले ही सरकार ने इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है।

क्लीनिकल ट्रायल के चरण में वैक्सीन 

फॉर्म में यह भी कहा है कि यह समझना भी जरूरी है कि वैक्सीन लगवाने का मतलब यह नहीं है कि कोरोना से संबंधित अन्य सावधानियों का पालन करना छोड़ दिया जाए। इस बीच अब भारत बायोटेक ने कहा है कि अगर उसकी कोरोना वैक्सीन लेने के बाद किसी पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है तो वह पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा देगी। 

कोई विकल्प नहीं

वर्तमान में वैक्सीन लगवाने लाभार्थियों के पास वैक्सीन का विकल्प कोई नहीं है। दिल्ली में कई केंद्रीय सरकारी अस्पतालों - एम्स, सफदरजंग, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, कलावती सरन चिल्ड्रन हॉस्पिटल में टीकाकरण के पहले चरण में कोवैक्सीन ही लगाई गई है।

ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि कोवैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल हो रहा है या फिर टीकाकरण? अगर टीकाकरण हो रहा है तो फिर यह भरवाने की जरूरत क्या है और वैक्सीन चुनने का विकल्प क्यों नहीं? दूसरा बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि ट्रायल के लिए उपयोग होने वाली वैक्सीन की कीमत सरकार ने अदा क्यों की? ट्रायल के दौरान इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन की कीमत कंपनी की ओर से मुफ्त होती है।

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