‘लाल चींटी की चटनी’ से कोरोना का इलाज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम परंपरागत उपचार का आदेश नहीं दे सकते

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि लाल चींटी और हरी मिर्च को मिलाकर बनाई गई चटनी को कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए।

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कोरोना के इलाज के लिए परंपरागत चिकित्सा या घरेलू चिकित्सा के इस्तेमाल का आदेश नहीं दिया जा सकता यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने वह याचिका खारिज कर दी जिसमें गंभीर संक्रमण के इलाज के लिए लाल लाल चींटी की चटनी (Red Ant Sauce) का इस्तेमाल करने का निर्देश देने का की मांग की गई थी।

 

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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि लाल चींटी और हरी मिर्च को मिलाकर बनाई गई चटनी को कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ता का दावा था कि ‘लाल चींटी की चटनी’ औषधीय गुणों से भरपूर होती है और इसमें फॉर्मिक एसिड, प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन बी12 और जिंक होता है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ सहित देश के आदिवासी क्षेत्रों में बुखार, खांसी, ठंड, थकान, सांस की समस्या और अन्य बीमारियों में दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है ऐसे में अब कोविड-19 के उपचार में इसके प्रभाव को परखने की जरूरत है। Read Also : Haryana: पत्नी के अत्याचारों से कम हुआ पति का 21 किलो वजन, कोर्ट ने कहा- यह मानसिक प्रताड़ना है इनका तलाक मंजूर
 

 

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'पूरे देश इसे लागू नहीं कर सकते'
याचिका पर जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सुनवाई की। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील अनिरुद्ध सांगनेरिया ने कहा कि ओडिशा हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी और उन्होंने फैसले को चुनौती दी थी। पीठ  ने ओडिशा के आदिवासी समुदाय के सदस्य नयधर पाधियाल को कोविड-19 रोधी टीका लगवाने का निर्देश देते हुए याचिका खारिज कर दी।

 

पीठ ने कहा कि
‘कई परंपरागत चिकित्सा है, यहां तक कि हमारे घरों में भी परंपरागत चिकित्सा होती है। इन उपचारों के परिणाम भी आपको खुद ही भुगतने होते हैं, लेकिन हम पूरे देश में इस परंपरागत चिकित्सा को लागू करने के लिए नहीं कह सकते हैं।’  ‘समस्या तब शुरू हुई जब हाई कोर्ट ने आयुष मंत्रालय के महानिदेशक और वैज्ञानक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) को तीन महीने के अंदर लाल चींटी की चटनी को कोविड-19 के उपचार के तौर पर इस्तेमाल के प्रस्ताव पर निर्णय लेने के लिए कहा। हम इसे खत्म करना चाहते हैं, हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहते। इसलिए विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’

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