इलाहाबाद हाई कोर्ट से शायर मुनव्वर राना को बड़ा झटका, गिरफ्तारी पर रोक लगाने से साफ इनकार
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने राना के वकील से पूछा, ‘आप (राना) इस तरह की टिप्पणी क्यों करते हैं। आप जो काम करते हैं, वह क्यों नहीं करते हैं।’
Sep 4, 2021, 10:33 IST
| इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने वाल्मीकि समुदाय की तालिबान से तुलना करने के मामले में हजरतगंज कोतवाली में शायर मुनव्वर राना के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने राना की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अपना काम करना चाहिए और किसी भी समुदाय पर टिप्पणी नहीं करना चाहिए। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव (Justice Ramesh Sinha and Justice Saroj Yadav) की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए राना के वकील से पूछा, ‘आप (राना) इस तरह की टिप्पणी क्यों करते हैं। आप जो काम करते हैं, वह क्यों नहीं करते हैं।’
शायर मुनव्वर राना (Munawwar Rana) ने अदालत में सरोकार फाउंडेशन के उपाध्यक्ष पीएल भारती (PL Bharti, Vice President of Sarrokar Foundation) द्वारा उनके खिलाफ 20 अगस्त को दर्ज कराई गई प्राथमिकी को चुनौती दी थी और मामले की विवेचना के दौरान अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। भारती ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि ‘राना ने कहा है कि तालिबान भी 10 साल बाद वाल्मीकि होगा। यह कथन भगवान वाल्मीकि और उनके अनुयायियों का अपमान करने के समान है जो उन्हें अपने भगवान के रूप में मानते हैं। यह पूरे दलित समुदाय का भी अपमान है।’
राना के वकील ने कोर्ट से कहा उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारती ने लखनऊ के हजरतगंज थाने(Hazratganj Police Station Lucknow) में दर्ज प्राथमिकी शायर मुनव्वर पर आरोप लगाया था। राना के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता क्योंकि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और आपराधिक मामला दर्ज करके इसे दबाया नहीं जा सकता है। वकील ने यह भी दलील दी कि राजनीतिक कारणों से मामला दर्ज किया गया लिहाजा अदालत को दखल देना चाहिए।
याचिका का विरोध करते हुए शासकीय अधिवक्ता एसएन तिलहरी ने तर्क दिया कि बोलने का अधिकार निर्बाध नहीं है और राना ने देश में दलित समुदाय की भावनाओं का अपमान करने और उन्हें भड़काने के लिए बयान दिया। राना के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी और नसीहत दी कि उन्हें इस तरह की टिप्पणी करने के बजाय अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।