पहलगाम आतंकी हमले के बाद सेना और पुलिस की वर्दी के दुरुपयोग पर उठे सवाल: आम नागरिक के पहनने पर है सज़ा का प्रावधान, जा सकते हैं जेल, जानें क्या हैं नियम
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में सेना की वर्दी में आए आतंकियों ने दिया वारदात को अंजाम; 2022 में बदला गया है सेना का ड्रेस कोड, बाहरी बिक्री है प्रतिबंधित
Apr 23, 2025, 20:44 IST
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जम्मू-कश्मीर/लखनऊ: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुई दुखद आतंकी घटना, जिसमें सेना और पुलिस की वर्दी पहने हमलावरों ने 26 पर्यटकों की जान ले ली, ने एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था और सैन्य/पुलिस वर्दी के अनाधिकृत उपयोग पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। वर्दी में होने के कारण पर्यटक हमलावरों की असली पहचान और मंसूबे भांप नहीं पाए, जिसका फायदा उठाकर आतंकियों ने इस क्रूर वारदात को अंजाम दिया।READ ALSO:-उन्नाव में किया कार के यार्ड में भीषण आग, 110 नई गाड़ियाँ जलकर खाक; 14 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान
इस घटना के बाद से आम लोगों में यह भ्रम और आक्रोश है कि आखिर कैसे सेना और पुलिस की वर्दी आम नागरिकों तक पहुँच जाती है, जबकि इनकी खुले बाजार में बिक्री प्रतिबंधित है। कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब दुकानों पर इन वर्दियों का बेचा जाना बैन है, तो आतंकी या आपराधिक तत्व इन्हें कैसे हासिल कर लेते हैं।
सेना के ड्रेस कोड में बदलाव और बिक्री पर रोक:
इस संबंध में कैंट एरिया के दुकानदारों ने बताया कि पहले सेना की वर्दी का कपड़ा दुकानों पर बेचा जाता था और यहीं पर वर्दी सिलवाने की भी सुविधा थी। हालाँकि, 2022 में केंद्र सरकार ने सेना के ड्रेस कोड में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। इसके तहत, सेना की वर्दी की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। अब वर्दी का कपड़ा सीधे सेना के स्टोर में ही सप्लाई होता है और वहीं से जवानों को मिलता है।
दुकानदार जगदीश राठौर ने बताया कि अब कोई भी आम नागरिक आर्मी की वर्दी नहीं पहन सकता। आर्मी ने कपड़े की बाहरी बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। पहले कुछ दुकानदार आर्मी का कपड़ा बेचने के लिए अधिकृत थे और जवान को अपना पहचान पत्र दिखाकर ही कपड़ा खरीदना और सिलवाना होता था।
एक अन्य व्यापारी विनोद कुमार ने बताया कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए पैटर्न के कपड़े को बाजार में बेचना संभव नहीं है। आर्मी का कपड़ा केवल कैंटीन में उपलब्ध है और वही व्यक्ति इसे प्राप्त कर सकता है जिसके पास संबंधित पहचान पत्र हो। बाजार में बिकने वाले कपड़े सेना की वर्दी जैसे दिख सकते हैं, लेकिन वे असली पैटर्न के नहीं होते हैं। उन्होंने बताया कि नई वर्दी के पैटर्न में कई बदलाव किए गए हैं, जैसे बेल्ट का स्टाइल और शर्ट पहनने का तरीका बदल गया है। विनोद कुमार ने यह भी कहा कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता और वे कहीं से भी, यहाँ तक कि पाकिस्तान से भी, अपने कपड़े बनवा सकते हैं। उन्होंने दुख जताया कि जब जाली नोट बन सकते हैं तो चोरी-छिपे Military जैसे कपड़े भी मिल सकते हैं।
2022 में किया गया था महत्वपूर्ण बदलाव:
सेना की वर्दी का दुरुपयोग आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने में होने की शिकायतों के बाद, 2008 में भी वर्दी में बदलाव किया गया था। हालाँकि, देश विरोधी ताकतें और आपराधिक तत्व अभी भी इसका दुरुपयोग कर रहे थे। इसे देखते हुए, मोदी सरकार ने 2022 में सेना के ड्रेस कोड में व्यापक बदलाव किए। नई वर्दी में नया कैमोफ्लाज पैटर्न और नए कपड़े का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही, बाजारों में इसकी बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।
सेना इस नए ड्रेस कोड की डुप्लीकेसी को रोकने के लिए भी सतर्क है। सेना की टीमें समय-समय पर सदर बाजार, तोपखाना और अन्य बाजारों में दुकानदारों और टेलर्स को हिदायत देती रहती हैं कि वे सेना का नया पैटर्न (ड्रेस कोड) किसी भी कीमत पर न बेचें। उन्हें चेतावनी दी गई है कि यदि कोई पैटर्न से मिलता-जुलता कपड़ा भी बेचने की कोशिश करेगा तो उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके चलते, अब दुकानदार सेना के ड्रेस कोड से मिलते-जुलते कपड़ों की बिक्री से पूरी तरह बच रहे हैं।
आम नागरिक द्वारा वर्दी पहनने पर नियम और सज़ा:
कानून के अनुसार, कोई भी आम नागरिक सेना और सीआरपीएफ की वर्दी की तरह दिखने वाली कॉम्बैट यूनिफॉर्म भी नहीं पहन सकता है। आम लोगों द्वारा ऐसी वर्दी पहनना एक गंभीर अपराध माना जाता है, क्योंकि इससे समाज में भ्रम की स्थिति पैदा होती है और सुरक्षा व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।
किसी भी आम नागरिक द्वारा आर्मी जैसी वर्दी पहनना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध है। ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 140 और 171 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर 500 रुपये तक का जुर्माना और अधिकतम तीन महीने तक की कैद की सज़ा हो सकती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में सभी राज्यों के सचिवों को निर्देश जारी किए थे कि जो लोग भी अनाधिकृत रूप से सशस्त्र बलों (सेना, नौसेना, वायु सेना) की वर्दी या उससे मिलती-जुलती यूनिफॉर्म पहनते हैं, उनके खिलाफ इन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाए।
सेना का आधिकारिक बयान:
मध्य कमान के जनसंपर्क अधिकारी शांतनु प्रताप सिंह ने इस संबंध में स्पष्ट किया कि पहले कुछ दुकानों को सब एरिया की तरफ से आर्मी की ड्रेस के कपड़े बेचने की अनुमति दी जाती थी। इन दुकानों पर जवान को अपना आई कार्ड दिखाना होता था और रजिस्टर में पूरा विवरण दर्ज करने के बाद ही कपड़ा मिलता था। दुकानदार को जवान की आईडी की फोटोकॉपी भी रिकॉर्ड के तौर पर रखनी होती थी। हालाँकि, जब यह शिकायतें सामने आने लगीं कि सेना की वर्दी जैसे दिखने वाले कपड़े आम लोग पहनने लगे हैं, तो आर्मी के ड्रेस कोड में बदलाव कर दिया गया। अब आर्मी की वर्दी का कपड़ा सीधे सेना के स्टोर में ही सप्लाई होता है और जवानों को पहचान पत्र दिखाने पर वहीं से वर्दी मिलती है। इसलिए, अब बाहर सेना की वर्दी की बिक्री बिल्कुल भी नहीं हो सकती है।
कुल मिलाकर, पहलगाम जैसी घटनाओं ने एक बार फिर सैन्य और पुलिस वर्दी के अनाधिकृत उपयोग के गंभीर खतरे को उजागर किया है। सरकार ने नियमों को सख्त किया है और सेना ने अपनी वर्दी की सप्लाई चेन को नियंत्रित किया है, लेकिन अभी भी चोरी-छिपे तरीके से ऐसी वर्दियों का निर्माण और दुरुपयोग एक चुनौती बना हुआ है, जिससे निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को लगातार सतर्क रहने की आवश्यकता है। साथ ही, आम नागरिकों को भी यह समझना होगा कि सैन्य या पुलिस जैसी दिखने वाली वर्दी पहनना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था के लिए जोखिम भरा भी हो सकता है।
