20 साल बाद 'ठाकरे + ठाकरे' एक मंच पर: क्या मराठी अस्मिता से शुरू हुई ये यात्रा निकाय चुनावों तक जाएगी? जानें चुनौतियां

वर्ली के डोम ऑडिटोरियम में 30,000 से ज़्यादा लोग राज और उद्धव ठाकरे को एक साथ देखने और उनका भाषण सुनने के लिए जुटे थे। यह महज़ भाषाई मुद्दे पर एक रैली नहीं थी, बल्कि शिवसेना की बिखरी हुई शाखाओं के फिर से एकजुट होने की कोशिश का साफ संकेत था। राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना से अलग होकर अपनी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) बनाई थी। अब दोनों ठाकरे बंधुओं के साथ आने से शिवसेना (उद्धव गुट) के एक बार फिर मजबूत होने की संभावना जताई जा रही है।
#WATCH | मुंबई: शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) द्वारा संयुक्त रैली के दौरान भाईयों, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने गले मिलकर एक दूसरे को बधाई दी। महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के लिए दो सरकारी प्रस्तावों को रद्द कर दिया है।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 5, 2025
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राजनीतिक मंच या सांस्कृतिक संदेश? इरादे साफ!
भले ही इस कार्यक्रम का विषय शिक्षा था, लेकिन मंच पर राज और उद्धव की उपस्थिति का संदेश सिर्फ शैक्षणिक नहीं, बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक था। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की मौजूदगी में मराठी अस्मिता की दुहाई दी और केंद्र व राज्य सरकारों के कुछ निर्णयों पर तीखे सवाल खड़े किए। ये स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि आने वाले निकाय चुनावों में ये दोनों भाई मिलकर सियासी रणभूमि में उतरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
पिछले दो दशकों में राज और उद्धव की राहें जुदा थीं। उद्धव ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी (MVA) बनाई, तो राज ने प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की प्रशंसा करते हुए आक्रामक हिंदुत्व और मराठी मानुस की राजनीति को धार दी।
#WATCH | Mumbai: Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray's son and party leader Aaditya Thackeray, Maharashtra Navnirman Sena (MNS) chief Raj Thackeray's son and party leader Amit Thackeray also present at the stage where both parties are holding a joint rally after the… pic.twitter.com/ACD5u9aOaD
— ANI (@ANI) July 5, 2025
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों को ही बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इस हार के बाद अब महाराष्ट्र की राजनीति में 'विरोधियों से लड़ने के लिए अपनों से समझौता' की नई सियासी बिसात बिछाई जा रही है। यह उनकी अपनी-अपनी राजनीतिक ज़मीन को फिर से मजबूत करने की एक सोची-समझी कवायद है।
- राजनीतिक गलियारों में फिलहाल दो मुख्य संभावनाओं पर चर्चा गर्म है:
- पार्टियों का विलय: उद्धव और राज की पार्टी एक हो जाए और 'एक ठाकरे, एक शिवसेना' का नारा बुलंद हो।
- चुनावी गठबंधन: मनसे और शिवसेना (उद्धव गुट) निकाय चुनावों में मिलकर लड़ें।
अगर मनसे इस गठबंधन में शामिल होती है, तो कांग्रेस और एनसीपी के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी।
- क्या कांग्रेस अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ मनसे जैसे दल को स्वीकार कर पाएगी, जिसकी मुस्लिम-विरोधी छवि और हिंदी भाषी प्रवासियों पर पुरानी टिप्पणियां विवादास्पद रही हैं?
- क्या शरद पवार इस नए गठजोड़ में मध्यस्थ की भूमिका निभा पाएंगे?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कवायद असल में मोदी-शाह की बीजेपी के खिलाफ एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मोर्चा खड़ा करने की कोशिश है। साथ ही, एकनाथ शिंदे जिन्होंने शिवसेना को तोड़कर दो-तिहाई नेताओं को अपने साथ मिला लिया था, उन्हें भी एक मजबूत जवाब देने का प्रयास है।
VIDEO | Mumbai: Addressing a joint victory gathering with Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray (@uddhavthackeray), titled 'Awaj Marathicha', MNS chief Raj Thackeray (@RajThackeray) says, “CM Fadnavis managed to do what Balasaheb Thackeray could not - bring myself and Uddhav… pic.twitter.com/AasFNDNpfB
— Press Trust of India (@PTI_News) July 5, 2025
2024 में शिवसेना (उद्धव), कांग्रेस और एनसीपी की हार के बाद जमीनी स्तर पर वापसी के लिए यह नया प्रयोग ज़रूरी हो गया था। राज ठाकरे की राजनीतिक ताकत भी दांव पर है, ऐसे में दोनों का यह गठजोड़ एक नई ऊर्जा ला सकता है।
अब तक चली आ रही "ठाकरे वर्सेज ठाकरे" की लड़ाई "ठाकरे + ठाकरे" की रणनीति में बदल सकती है। लेकिन यह राह आसान नहीं है। वैचारिक अंतर्विरोध, गठबंधन के अंदर समन्वय और सबसे बढ़कर मतदाता का विश्वास — ये तीनों पहलू इस प्रयोग की सफलता में निर्णायक साबित होंगे।
#WATCH | Mumbai: Shiv Sena (UBT) chief Uddhav Thackeray's son and party leader Aaditya Thackeray, Maharashtra Navnirman Sena (MNS) chief Raj Thackeray's son and party leader Amit Thackeray shared a hug at their party's joint rally after the Maharashtra government scrapped two GRs… pic.twitter.com/dUSf6t2NKd
— ANI (@ANI) July 5, 2025
अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना को पहली बार शहरी क्षेत्रों में एक सशक्त चुनौती मिल सकती है। हालांकि, अजित पवार की एनसीपी को अभी इससे ज़्यादा नुकसान होता नहीं दिख रहा, क्योंकि उनकी ताकत ग्रामीण मतदाताओं में ज़्यादा है, जबकि बीजेपी और शिंदे की पार्टी की ताकत शहरी मतदाताओं में अधिक है।
