सावधान! अपेंडिक्स कैंसर अब युवाओं को भी बना रहा शिकार, तेज़ी से बढ़ रहे मामले, बदलती लाइफ़स्टाइल बनी 'साइलेंट किलर'!

कभी बुढ़ापे की बीमारी, अब युवाओं में दस्तक; खानपान और पर्यावरण में बदलाव बढ़ा रहे खतरा, शुरुआती लक्षण पहचानना मुश्किल
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appendix cancer
एक चौंकाने वाली स्वास्थ्य चेतावनी सामने आई है! कभी दुर्लभ मानी जाने वाली अपेंडिक्स कैंसर अब सिर्फ़ बुज़ुर्गों तक सीमित नहीं रह गई है। हालिया अध्ययनों ने सनसनीखेज खुलासे किए हैं कि यह बीमारी तेज़ी से युवाओं में भी अपने पैर पसार रही है। हालाँकि इसके मामले अभी भी कम हैं, लेकिन इनकी लगातार बढ़ती संख्या स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गई है। इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण हमारी बदलती जीवनशैली, खानपान की आदतें और तेज़ी से हो रहे पर्यावरणीय बदलाव माने जा रहे हैं।

 

अपेंडिक्स: कभी सूजन की वजह, अब कैंसर का ख़तरा!
अपेंडिक्स, जो हमारे पाचन तंत्र का एक छोटा-सा हिस्सा है और बड़ी आंत से जुड़ी एक उंगली के आकार की थैली जैसी संरचना है, आमतौर पर अपेंडिसाइटिस (सूजन) के लिए जाना जाता है। वैज्ञानिक इसके सटीक कार्य को लेकर अभी भी एकमत नहीं हैं। लेकिन अब, यही अपेंडिक्स कैंसर का रूप ले रहा है, और चिंता की बात यह है कि यह कैंसर युवा पीढ़ी में तेज़ी से फैल रहा है।

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'एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन' नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। अध्ययन के अनुसार, 1970 के बाद पैदा हुए लोगों में अपेंडिक्स कैंसर के मामलों में तीन से चार गुना तक की खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है। पहले, जहाँ यह कैंसर मुख्य रूप से 50 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को प्रभावित करता था, अब इसके मरीज़ों में बड़ी संख्या में 30 और 40 साल के युवा भी शामिल हो रहे हैं।

 

हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अभी भी यह बीमारी अपेक्षाकृत कम लोगों को होती है - प्रति दस लाख लोगों में कुछ ही मामले सामने आते हैं। लेकिन, जिस रफ़्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं, उसने विशेषज्ञों को सतर्क कर दिया है और गहन शोध की आवश्यकता महसूस होने लगी है। फिलहाल, अपेंडिक्स कैंसर के मामलों में इस अप्रत्याशित वृद्धि का कोई एक स्पष्ट कारण सामने नहीं आया है, लेकिन विशेषज्ञ कुछ संभावित और महत्वपूर्ण कारकों की ओर इशारा कर रहे हैं।

 

क्यों बढ़ रहे हैं युवाओं में अपेंडिक्स कैंसर के मामले? संभावित कारण:

 

ताज़ा रिसर्च इस चिंताजनक trend के पीछे कई संभावित कारण बताती है:
  • मोटापे में वृद्धि: 1970 के दशक के बाद से मोटापे के मामलों में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है, और मोटापा कई प्रकार के कैंसर के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक माना जाता है।
  • अस्वास्थ्यकर खानपान: अत्यधिक प्रसंस्कृत भोजन (highly processed foods), मीठे कार्बोनेटेड पेय, रेड मीट और प्रोसेस्ड मांस का सेवन बहुत बढ़ गया है। ये सभी चीजें पाचन तंत्र से जुड़े कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं।
  • गतिहीन जीवनशैली: आजकल लोग कम चलते-फिरते हैं और घंटों तक कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं। शारीरिक निष्क्रियता शरीर के मेटाबॉलिज्म को बाधित करती है और कैंसर के विकास के जोखिम को बढ़ा सकती है।
  • पर्यावरणीय कारक: खाद्य उत्पादन में रसायनों का बढ़ता उपयोग, प्लास्टिक का अत्यधिक इस्तेमाल, पानी की गुणवत्ता में गिरावट और वायु प्रदूषण जैसे नए पर्यावरणीय कारक भी इस वृद्धि में योगदान दे सकते हैं।

 

अपेंडिक्स कैंसर का पता लगाना क्यों है मुश्किल चुनौती?
कैंसर सर्जन डॉ. अंशुमान कुमार इस बीमारी की पहचान में आने वाली सबसे बड़ी बाधाओं पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं, "अपेंडिक्स कैंसर की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके शुरुआती लक्षण बहुत ही अस्पष्ट और सामान्य होते हैं। मरीज़ों को शुरुआती दौर में हल्का पेट दर्द, पेट फूलना या मल त्याग की आदतों में मामूली बदलाव महसूस हो सकते हैं। ये लक्षण अक्सर अन्य सामान्य पेट की बीमारियों में भी दिखाई देते हैं, जिसके कारण इन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता और मरीज़ अक्सर डॉक्टर के पास जाने में देर कर देते हैं।"

 

डॉ. कुमार आगे बताते हैं, "कई बार तो इस कैंसर का पता तब चलता है जब किसी मरीज़ का अपेंडिसाइटिस के संदेह में ऑपरेशन किया जाता है, और सर्जरी के दौरान अपेंडिक्स में कैंसर कोशिकाओं की मौजूदगी का पता चलता है। तब तक अक्सर बीमारी काफ़ी आगे बढ़ चुकी होती है, जिससे इलाज और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।"

 

स्क्रीनिंग की कमी: एक और बड़ी समस्या
अपेंडिक्स कैंसर की पहचान में एक और बड़ी समस्या यह है कि फिलहाल इस बीमारी के लिए कोई नियमित और प्रभावी स्क्रीनिंग टेस्ट मौजूद नहीं है। यह बीमारी इतनी दुर्लभ मानी जाती है कि इसके लिए बड़े पैमाने पर जांच की व्यवस्था करना भी व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो पाया है। कोलोनोस्कोपी जैसी सामान्य आंत्र जांच भी अपेंडिक्स के अंदर तक नहीं पहुँच पाती, जिससे शुरुआती चरणों में इस कैंसर का पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए, इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानना और समय पर किसी अनुभवी डॉक्टर से परामर्श लेना ही वर्तमान में सबसे कारगर उपाय है।

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मरीजों और डॉक्टरों के लिए ज़रूरी है सतर्कता:
इस महत्वपूर्ण अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, हमारी तेज़ी से बदलती जीवनशैली और पर्यावरण के बीच अब यह बेहद ज़रूरी हो गया है कि हर व्यक्ति अपने शरीर में होने वाले किसी भी असामान्य बदलाव को नज़रअंदाज़ न करे। यदि आपको पेट में बार-बार हल्का दर्द महसूस हो, लगातार पेट फूलने की शिकायत रहे या आपके पाचन क्रिया से जुड़ी कोई भी समस्या हो, तो बिना देर किए तुरंत किसी योग्य डॉक्टर से संपर्क करें और अपनी जांच कराएं।

 

वहीं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टरों को भी अब युवा मरीज़ों में इस अपेक्षाकृत दुर्लभ कैंसर की संभावना को ध्यान में रखते हुए जांच करनी चाहिए। शुरुआती स्तर पर इस बीमारी की पहचान हो जाने से मरीज़ों के इलाज और उनके ठीक होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। लापरवाही न बरतें, सतर्क रहें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं - यही इस 'साइलेंट किलर' से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है।
SONU

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