उत्तर प्रदेश: बिजली निजीकरण और दरों में बढ़ोतरी के खिलाफ किसानों का 'बिजली सत्याग्रह'!

 ₹72,000 करोड़ के बकाया बिलों के बीच ₹19,600 करोड़ के 'फर्जी' घाटे का आरोप, किसान बोले - 'अब और नहीं!'
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MRT
उत्तर प्रदेश में किसानों का गुस्सा बिजली विभाग के प्रस्तावित निजीकरण और मनमानी बिजली दरों में बढ़ोतरी के खिलाफ सड़कों पर आ गया है। किसानों ने कलेक्ट्रेट पर विशाल प्रदर्शन करते हुए सरकार के खिलाफ 'बिजली सत्याग्रह' का बिगुल फूंका। उनकी मुख्य आपत्ति बिजली दरों में 30 से 45 प्रतिशत की प्रस्तावित बढ़ोतरी को लेकर है, जिसे वे पूरी तरह से अनुचित और किसान-विरोधी बता रहे हैं।READ ALSO:-यूपी में थमी मानसून की रफ्तार, भीषण उमस से बढ़ी बेचैनी; 70+ जिलों में आज गरज-चमक और वज्रपात का अलर्ट!

 

किसान नेताओं का आरोप है कि बिजली विभाग द्वारा दिखाया जा रहा 19,600 करोड़ रुपये का घाटा एक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया आंकड़ा है। उनका दावा है कि असली समस्या सरकारी विभागों और बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं पर बकाया 72,000 करोड़ रुपये से अधिक के बिजली बिल हैं, जिनकी वसूली पर सरकार का ध्यान नहीं है। किसानों का सीधा सवाल है कि जब इतनी बड़ी रकम बकाया है, तो आम जनता और किसानों पर ही दरों का बोझ क्यों डाला जा रहा है?

 

किसानों की प्रमुख मांगें: मुफ्त बिजली से लेकर गन्ना MSP तक
प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की:

 

  • निजीकरण पर रोक: किसानों ने दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगमों के प्रस्तावित निजीकरण को तत्काल रोकने की मांग की है। उनका मानना है कि निजीकरण से बिजली और भी महंगी होगी और गुणवत्ता में गिरावट आएगी।
  • बिजली दरों में कटौती और मुफ्त बिजली: प्रस्तावित 30-45% बढ़ोतरी के विरोध में किसानों ने 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और नलकूपों के बिलों की पूरी तरह से माफी की मांग की।
  • बिजली आपूर्ति में सुधार: किसानों ने नलकूपों के लिए 18 घंटे, ग्रामीण क्षेत्रों में 20 घंटे और शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने की मांग की।
  • 'अवैध टैक्स' की वापसी: प्रदर्शनकारियों ने उपभोक्ताओं से वसूले गए 31,725 करोड़ रुपये के 'अवैध टैक्स' को मौजूदा बिलों में समायोजित करने की मांग की, जिसे वे उपभोक्ताओं के साथ धोखा बता रहे हैं।
  • बुनियादी ढांचे का उन्नयन और रोजगार: जर्जर तारों, खंभों और ट्रांसफॉर्मर को बदलने की मांग के साथ-साथ, किसानों ने बिजली विभाग में खाली पड़े पदों को भरने और संविदा कर्मियों को नियमित करने की भी मांग की।
  • गन्ना किसानों की पीड़ा: प्रदर्शन में गन्ना किसानों का दर्द भी सामने आया। उन्होंने गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 500 रुपये प्रति कुंतल करने, किसानों के बकाया भुगतान को तुरंत जारी करने और बंद पड़ी चीनी मिलों को फिर से शुरू करने की मांग की।
  • ब्याज माफी: किसानों ने सहकारिता विभाग द्वारा किसानों के ऋण पर बढ़ाए गए ब्याज को वापस लेने की भी मांग की।

 OMEGA

किसानों के इस प्रदर्शन ने साफ कर दिया है कि बिजली की बढ़ती कीमतें और निजीकरण की कोशिशें उन्हें मंजूर नहीं हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किसानों की इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है। क्या किसानों का यह 'बिजली सत्याग्रह' रंग लाएगा और सरकार को अपने फैसलों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर करेगा?

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