अब मकानों की छतें होंगी सफेद: मेरठ में ‘वाइट रूफिंग’ अनिवार्य, मानचित्र पास कराने के लिए जमा करना होगा शपथ पत्र व एफडीआर

मेडा की बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पर लगेगी मुहर, मानचित्र स्वीकृति के लिए शपथ पत्र और एफडीआर जमा करना होगा
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WHITE ROOF HOUSE
मेरठ: शहर में बढ़ती गर्मी और बिजली की खपत को कम करने के उद्देश्य से मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) एक महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है। मेडा अब 300 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले सभी नए भवनों के लिए 'वाइट रूफिंग' (सफेद छत) तकनीक को अनिवार्य करने की तैयारी में है। इसके तहत, भवन का मानचित्र स्वीकृत कराने के लिए आवेदन करने वाले लोगों को एक शपथ पत्र जमा करना होगा, जिसमें वे इस तकनीक को अपनाने का वादा करेंगे। यही नहीं, उन्हें एक निश्चित धनराशि की एफडीआर (फिक्स्ड डिपॉजिट रसीद) भी जमा करानी होगी, जो वाइट रूफिंग लागू करने का प्रमाण पत्र जमा करने पर वापस कर दी जाएगी। इस प्रस्ताव पर बुधवार को होने वाली मेडा की बोर्ड बैठक में अंतिम मुहर लगने की संभावना है।Read also:-मेरठ: किसान दिवस की बैठक में जिलाधिकारी डॉ. वी.के. सिंह हुए सख्त, अधिकारियों को समस्याओं के गुणवत्तापरक समाधान के दिए निर्देश

 

ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की ओर से समय-समय पर कई पहल की जाती रही हैं। इसी क्रम में मेडा भी सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। प्राधिकरण पहले से ही भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग यूनिट स्थापित करने की शर्त लागू कर चुका है। अब वाइट रूफिंग को अनिवार्य करके मेडा भवनों को और अधिक ऊर्जा-कुशल बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।

 

क्या है वाइट रूफिंग तकनीक?
वाइट रूफिंग एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग सूर्य के ताप से बचाव और गर्मी की खपत को कम करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक में छत की ऊपरी सतह को सफेद या हल्के रंग की विशेष सामग्री से ढका जाता है या फिर उस पर सफेद रंग का पेंट किया जाता है। सफेद रंग सूर्य की किरणों को परावर्तित करता है, जिससे छत गर्म नहीं होती और भवन के अंदर का तापमान अपेक्षाकृत कम बना रहता है। इसे ही 'सफेद छत' कहा जाता है।

 

वाइट रूफिंग के फायदे:
  • बिजली की बचत: छत ठंडी रहने से भवन के अंदर का तापमान कम रहता है, जिससे एयर कंडीशनर का उपयोग कम होता है और बिजली की बचत होती है।
  • तापमान में कमी: यह तकनीक सूर्य की सीधी रोशनी से घर के तापमान को कम करने में मदद करती है, जिससे गर्मी में रहने में आराम मिलता है।
  • भवन की उम्र में वृद्धि: छत पर पड़ने वाले अत्यधिक ताप से बचाव होने के कारण भवन की संरचना की उम्र भी बढ़ सकती है।
  • वातानुकूलन लागत में कमी: भवन को वातानुकूलित बनाने की प्रक्रिया में आने वाले खर्च को कम किया जा सकता है।

 

मानचित्र आवेदन के समय जमा करना होगा शपथ पत्र और एफडीआर:
मेडा के प्रभारी मुख्य नगर नियोजक, विजय कुमार सिंह ने इस संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि मानचित्र आवेदन के समय वाइट रूफिंग कराने का एफिडेविट (शपथ पत्र) लिया जाएगा। इसके साथ ही एक निश्चित धनराशि की एफडीआर भी जमा कराई जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब भवन स्वामी इस तकनीक का पालन करने संबंधी प्रमाण पत्र जमा करेगा, तभी उसकी एफडीआर वापस कर दी जाएगी। यह नियम फिलहाल 300 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले भवनों पर ही लागू होगा।

 

मेडा का यह कदम निश्चित रूप से मेरठ शहर में ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक पहल साबित होगा। अब देखना यह है कि बुधवार को होने वाली बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है या नहीं।
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विकास और पर्यावरण संरक्षण को साथ लेकर चलने की यह पहल न केवल मेरठ बल्कि देशभर के शहरी इलाकों के लिए एक आदर्श मॉडल बन सकती है। वाइट रूफिंग जैसे उपाय जहां आम जनता को राहत देंगे, वहीं भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी एक बेहतर वातावरण तैयार करेंगे।
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